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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 277 उपर्युक्त आठों ही धातुओं के उभय-स्थिति वाचक उदाहरण वर्तमान-काल में क्रम से इस प्रकार हैं:चीयते चिव्वइ अथवा चिणिज्जइ-उससे इकट्ठा किया जाता है। (२) जियते जिव्वइ अथवा जिणिज्जइ-उससे जीता जाता है। (३) श्रूयते-सुव्वइ अथवा सुणिज्जइ उससे सुना जाता है। (४) स्तूयते-थुव्वइ अथवा थुणिज्जइ-उससे स्तुति की जाती है। (५) हूयते-हुव्वइ अथवा हुणिज्जइ-उससे हवन किया जाता है (६) लूयते-लुव्वइ अथवा लुणिज्जइ-उससे लूणा जाता है उससे काटा जाता है। (७) पूयते-पुव्वइ अथवा पुणिज्जइ-उससे पवित्र किया जाता है और (८) धूयते धुव्वइ अथवा धुणिज्जइ-उससे धूना जाता है अथवा उससे कंपा जाता है। इन उदाहरणों को ध्यान-पूर्वक देखने से विदित होता है कि जहां पर 'व्व' प्रत्यय का आगम है, वहां पर 'ण' और 'इज्ज' का लोप है तथा जहां पर 'ण' और 'इज्ज' प्रत्यय है वहां पर 'व्व' प्रत्यय नहीं है। भवष्यित्-काल में भी ऐसे ही उदाहरण स्वयमेव कल्पित कर लेने चाहिये। विस्तार भय से केवल नमूना रूप एक उदाहरण वृत्ति में दिया गया है, जो इस प्रकार है:- चीयिष्यते-चिव्विहिइ (अथवा चिणीज्जिहिइ)=उससे इकट्ठा किया जायेगा। अन्य ऐसे ही उदाहरणों के संबंध में वृत्ति में 'इत्यादि' शब्द से यह भलामण दी गई है की बाकी के उदाहरणों को स्वयम् ही सोच ले।।४-२४२।। म्मश्चेः।।४-२४३॥ चगः कर्मणि भावे च अन्ते संयुक्तो मो वा भवति।। तत्सनियोगे क्यस्य च लुक्॥ चिम्मइ। चिव्वइ। चिणिज्जइ। भविष्यति। चिम्मिहिइ। चिविहिइ। चिणिज्जिहिइ।। अर्थः- 'इकट्ठा करना' अर्थक धातु 'चि' के कर्माणिभावे प्रयोग में काल-बोधक प्रत्यय जोड़ने के पूर्व विकल्प से संयुक्त अर्थात् द्वित्व 'म्म' की आगम-प्राप्ति विकल्प से होती है और ऐसा होने पर कर्मणि भावे-प्रयोग-बोधक प्रत्यय 'व्व' अथवा 'ईअ' अथवा -'इज्ज' का लोप हो जाता है। यों 'चि' धातु में 'म्म, व्व, ईअ, इज्ज' चारों के प्रत्ययों में से भी किसी एक का प्रयोग कर्मणि -भावे अर्थ में किया जा सकता है। परन्तु यह ध्यान में रहे कि 'म्म अथवा व्व' प्रत्यय का सद्भाव होने पर सूत्र-संख्या ४-२४१ से प्राप्त होने वाले ‘णकार' व्यञ्जनाक्षर की प्राप्ति नहीं होगी। ऐसा बोध वृत्ति में दिये गये 'च' अव्वय से जानना उदाहरण इ स प्रकार है:- चीयते-चिम्मइ, चिव्वइ, चिणिज्जइ अथवा चिणिअइ-उससे इकट्ठा किया जाता है। भविष्यत्-काल संबंधी उदाहरण इस प्रकार हैं:चीयिष्यते-चिम्मिहिइ, चिव्विहिइ, चिणिज्जिहिइ, (अथवा चिणीअहिइ)-उससे इकट्ठा किया जायगा। बाकी के उदाहरण खुद ही जान लेना।।४-२४३।। हन्खनोन्त्यस्य।।४-२४४॥ अनयोः कर्म भावे न्त्यस्य द्विरूत्तो मो वा भवति।। तत्संनियोगे क्यस्य च लुक्॥ हम्मइ, हणिज्जइ। खम्मई, खणिज्जइ। भवष्यिति। हम्मिहिइ। हणिहिइ। खम्मिहिइ। खणिहिइ।। बहुलाधिकारात् हन्तेः कर्तर्यपि॥ हम्मइ। हन्तीत्यर्थः।। क्वचिन्न भवति।। हन्तव्व।। हन्तूण। हओ।।। ____ अर्थः- संस्कृत धातु "हन् और खन्" के प्राकृत-रूपान्तर में कर्मणि-भावे प्रयोग में अन्त्य हलन्त "नकार" व्यञ्जनाक्षर के स्थान पर द्विरुक्त अर्थात् द्वित्व ‘म्म' की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है और इस प्रकार द्वित्व 'म्म' के आदेश प्राप्ति होने पर कर्मणि-भावे-बोधक प्राकृत-प्रत्यय 'ईअ और इज्ज' का लोप हो जाता है। जहां पर द्वित्व "म्म" की प्राप्ति नहीं होगी। वहां पर कर्मणि-भावे-बोधक प्रत्यय 'ईअ' अथवा 'इज्ज' का सद्भाव रहेगा। जैसे:- हन्यते-हम्मइ अथवा हणिज्जइ-वह मारा जाता है। खन्यते-खम्मइ अथवा खणिज्जइ वह खोदा जाता है। भविष्यत्-कालीन उदाहरण यों हैं:- हनिष्यते हम्मिहिइ-वह मारा जायेगा। हनिष्यति; (हनिष्यते)-हणिहिइ वह मारेगा अथवा वह मारा जायेगा। खनिष्यते-खम्मिहिइ-वह खोदा जावेगा। खनिष्यति; खनिष्यते-खणिहिइ-वह खोदेगा; अथवा वह खोदा जावेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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