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________________ हासेन स्फुटे र्मुरः ॥४-११४।। हासेन करणेन यः स्फुटिस्तस्य मुरादेशो वा भवति ।। मुरइ । हासेन स्फुटति । । अर्थः- 'मुस्कराना, सामान्य रूप से हँसना' अर्थक संस्कृत धातु 'स्फुट्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'मुर' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'फुट' की भी प्राप्ति होगी। जैसे:- हासेन स्फुटति - मुरइ अथवा फुटइ = वह हँसी के कारण से प्रसन्न होता है अथवा खिलती है ।।४ - ११४।। मण्डोश्चिञ्च-चिञ्चअ - चिञ्चिल्ल, रोड - टिविडिक्काः ।।४-११५।। मण्डेरेते पञ्चादेशा वा भवन्ति ।। चिञ्च । चिञ्चअइ । चिञ्चिल्ल । रीड । टिविडिक्कइ । मण्डइ । अर्थ:- 'मंडित करना, विभूषित करना शोभा युक्त बनाना' अर्थक संस्कृत - धात् 'मण्डय' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से पाँच धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) चिञ्च, (२) चिञ्चअ, (३) चिञ्चिल्ल, (४) रोड और (५) टिविडिक्क । पक्षान्तर में 'मण्ड' की भी प्राप्ति होगी। उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:मण्डयति=(१) चिञ्चइ, (२) चिञ्चअइ (३) चिञ्चिल्लइ, (४) रीडइ, (५) टिविडिक्कर, पक्षान्तर में मण्डइ =वह मंडित करता है, वह शोभा युक्त बनाता है ।।४ - ११५ ।। तुडे स्तोड - तुट्ट - खुट्ट - खुडोक्खु डोल्लुक्क णिलुक्क-लुक्कोल्लू राः ।।४-११६।। प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 249 डेरे वादेशा वा भवन्ति ।। तोडइ । तुट्टइ। खुवृइ । खुडइ। उक्खुडइ। उल्लुक्कइ । णिलुक्कइ । उल्लूरइ । तुडइ॥ अर्थः- ‘तोड़ना, खंडित करना, टुकड़ा करना' अर्थक संस्कृत - धातु 'तुड़' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से नव धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है :- (१) तोड़, (२) तुट्ट, (३) खुट्ट, (४) खुड, (५) उक्खुड, (६) उल्लुक्क, (७) णिलुक्क, (८) लुक्क और (९) उल्लूर । पक्षान्तर में 'तुड' भी होगा। उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:- तुडति=(१) तोडइ, (२) तुट्टइ, (३) खुट्टइ, (४) खुडइ, (५) उक्खुडइ, (६) उल्लुक्कइ, (७) णिल्लुक्कइ, (८) लुक्कइ, (९) उल्लुरइ, पक्षान्तर में (१०) तुडइ = वह तोड़ता है, वह खंडित करती है अथवा वह टुकड़ा करता है । । ४ - ११६ ।। घूर्णो घुल- घोल - घुम्म-पहल्लाः।।४-११७।। घूर्णेरेते चत्वार आदेशा भवन्ति । घुलइ । घोल । घुम्मइ । पहल्लाइ ।। अर्थः-‘घूमना, काँपना, डोलना, हिलना' अर्थक संस्कृत - धातु 'घूर्ण' के स्थान पर प्राकृत भाषा में चार (धातु-) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वे इस प्रकार है:- (१) घुल, (२) घोल, (३) घुम्म और (४) पहल्ल । उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं- धूणति = (१) घूलई, (२) घोलइ (३) घुम्मई और (४) पहल्लई = वह घूमता है अथवा वह काँपती है, वह डोलता है, वह हिलता है ।। ४-११७।। विवृतेर्ढसः।।४-११८।। विवृतेस इत्यादेशो वा भवति ।। ढंसइ । विवट्टइ || अर्थः- ‘धंसना, धंसकर रहना, (गिर पड़ना)' अर्थक संस्कृत धातु 'विवृत्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'ढप' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से विवट्ट भी होगा। जैसे:- विवर्तते-ढंसइ अथवा विवट्टइ-वह धंसता है, वह धंस कर रहती है (अथवा वह गिर पड़ती है) ।।४ - ११८ ।। क्वथेरट्टः ।।४-११९।। Jain Education International क्कथेरट्ट इत्यादेशो वा भवति ।। अट्टइ। कढइ ।। अर्थः- ‘क्वाथ करना' ‘उबालना - पकाना' अर्थक संस्कृत - धातु 'क्कथ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में में विकल्प For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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