________________
248 : प्राकृत व्याकरण 'पडिअग्ग' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अणुवच्च' भी होगा। उदाहरण क्रम से यों हैं:-अनुव्रजति-पडिअग्गइ पक्षान्तर में अणुवच्चइ-वह अनुसरण करता है, वह पीछे जाती है ।। ४-१०७।।
अर्जेविंढवः ॥ ४-१०८।। अर्जेविढव इत्यादेशो वा भवति।। विढवइ। अज्जइ॥
अर्थः- उपार्जन करना, पैदा करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'अर्ज' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'विढव' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अज्ज' भी होगा। उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:अर्जयति-विढवइ पक्षान्तर में अज्जइ-वह उपार्जन करता है, अथवा वह पैदा करती है ॥४-१०८।
युजो जुञ्ज जुज्ज-जुप्पाः ।।४-१०९।। युजो जुञ्ज जुज्ज जुप्प इत्यादेशा भवन्ति।। जुञ्जइ। जुज्जइ। जुप्पइ।।
अर्थः-'जोड़ना, युक्त करना' अर्थक संस्कृत धातु 'युज्', के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'जुञ्ज, जुज्ज और जुप्प' ऐसे तीन धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'जुज' की भी प्राप्ति होगी। जैसे:युज्यते=(१) जुञ्जइ, (२) जुज्जइ, (३) जुप्पइ पक्षान्तर में जुजइ-वह जोड़ता है, वह युक्त करता है ।।४–१०९।।
भुजो भुञ्ज-जिम-जेम कम्माण्ह-चमढ-समाण-चड्डाः ।। ४-११०॥ भुज एतेऽष्टादेशा भवन्ति।। भुञ्जइ। जिमइ। जेमइ। कम्मेइ। अणहइ। समाणइ चमढइ। चड्डइ।।
अर्थः- 'भोजन करना, खाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'भुज्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से आठ (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। (१) भुञ्ज, (२) जिम, (३) जेम, (४) कम्म, (५) अण्ह, (६) चमढ़, (७) समाण और (८) चड्ड। वैकल्पिक पक्ष होने से 'भुज' की भी प्राप्ति होगी। इनके उदाहरण इस प्रकार है:- भुनक्ति (अथवा) भुङक्ते= (१) भुञ्जइ, (२) जिमइ, (३) जेमइ, (४) कम्मेइ, (५) अण्हइ, (६) चमढइ, (७) समाणइ, (८) चड्डइ, पक्षान्तर में भुजइ-वह भोजन करता है, वह खाती है।। ४--११०।।
वोपेन कम्मवः ।। ४-१११॥ उपेन युक्तस्य भुजेः कम्मव इत्यादेशो वा भवति।। कम्मवइ। उवहुज्जइ।।
अर्थः- 'उप' उपसर्ग सहित भुज् धातु के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'कम्मव' (धातु-) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'उवहुज्ज' की भी प्राप्ति होगी। उदाहरणा यों हैं:- उपभुनक्ति-कम्मवइ अथवा पक्षान्तर में उवहुज्जइ-वह उपभोग करता है ।। ४-१११।।
घटेर्गढः॥४-११२॥ घटतेर्गढ इत्यादेशो वा भवति।। गढइ। घडइ।।
अर्थः- ‘बनाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'घट्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'गढ़' (धातु-) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने स 'घड' की भी प्राप्ति होगी। जैसेः- घटति (अथवा घटते)= गढइ अथवा अथवा घडइ-वह बनाता है।।४-११२।।।
समो गलः।।४-११३॥ सम्पूर्वस्य घटते र्गल इत्यादेशो वा भवति।। संगलइ। संघडइ।।
अर्थः- 'सम्-सं' उपसर्ग सहित संस्कृत-धातु 'घट्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'गल' (धातु-) रूप की आदेश प्राप्ति होती है, यों संस्कृत-धातु 'संघट' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'संगल' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होगी। जैसे:- संघटते-संगलइ अथवा संघडइ-वह संघटित करता है, वह मिलाती है ।। ४-११३।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org