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238 : प्राकृत व्याकरण
आलीङोली ॥४-५४।। आलीयतेः अल्ली इत्यादेशो भवति।। अल्लियइ। अल्लीणो।।
अर्थ :- 'आ' उपससे सहित 'ली' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'अल्ली' रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे- आलीयते अल्लियइ-वह आता है, वह प्रवेश करता है, वह आलिङ्गन करता है। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:आलीनः-अल्लीणो=आया हुआ, प्रवेश किया हुआ, थोड़ा-सा झुका हुआ ।। ४-५४||
निलीङोर्णिलीअ-णिलुक्क-णिरिग्घ-लुक्क-लिक्क-ल्हिक्काः॥४-५५।। निलीङ् एते षडादेशा वा भवन्ति।। णिलीअइ। णिलुक्कइ। णिरिग्घइ। लुक्कइ। लिक्कइ। ल्हिक्कइ। निलिज्जइ।।
अर्थः- भेटना अथवा जोड़ना अर्थ में प्रयुक्त होने वाली संस्कृत धातु 'नि+ली निली' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से छह धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वे क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) णिलीअ, (२) णिलुक्क, (३) णिरिग्घ, (४) लुक्क, (५) लिक्क और (६) ल्हिक्क। ___ वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'निली' के स्थान पर 'निलिज्ज' रूप की भी प्राप्ति होगी। सभी के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- निलीयते-णिलीअइ, णिलुक्कइ, णिरिग्घइ, लुक्कइ, लिक्कइ ल्हिक्कइ अथवा निलिज्जइ-वह भेटता है, वह मिलाप करता है।।४-५५।।
विलीङेविरा।।४-५६।। विलीउर्विरा इत्यादेशो वा भवति।। विराइ। विलिज्जइ॥
अर्थः- 'नष्ट होना, निवृत्त होना' आदि अर्थक संस्कृत-धातु 'वि+लो' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'विरा' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'वि+ली' के स्थान पर 'विलिज्ज' रूप की भी प्राप्ति होगी। जैसे:- विलीयते-विराइ अथवा विलिज्जइ-वह नष्ट होता है अथवा वह निवृत्त होता है ।। ४-५६।।
रुतेस्ज -रुण्टौ ।।४-५७।। रौतेरेतावादेशौ वा भवतः।। रुञ्जइ। रुण्टइः रवइ।।
अर्थः- आवाज करने अर्थक संस्कृत धातु 'रू' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'रुञ्ज और रुण्ट' की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'रु' के स्थान पर 'रव' की भी प्राप्ति होगी। जैसे:- रौति रुञ्जइ, रुण्टइ अथवा रवइ-वह आवाज करता है ।। ४-५७।।।
श्रुटे हणः।।४-५८।। शृणोते र्हण इत्यादेशो वा भवति।। हणइ। सुणइ।।
अर्थः- सुनने अर्थक संस्कृत-धातु 'श्रु' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'हण' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'श्रु' का 'सुण' रूपान्तर भी होगा। जैसे:- शृणोति-हणइ अथवा सुणइ-वह सुनता है।।४-५८॥
धूगे (वः ॥४-५९।। धुनाते धुंव इत्यादेशो वा भवति।। धुवई। धुणइ।।
अर्थः- 'कंपाना-हिलाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'धू' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'धुव' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में धू' का धुण रूपान्तर भी होगा। जैसेः- धुनाति-धुवइ अथवा धुणइ-वह कंपाता है-वह हिलाता है।।४-५९।।
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