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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 239 भुवेर्हो हुव-हवाः।।४-६०।। भुवो धातोर्हो हुव हव इत्येते आदेशा वा भवन्ति ॥ होइ। होन्ति हुवइ। हुवन्ति। हवइ। हवन्ति। पक्षे। भवइ। परिहीण विहवो। भविउं। पभवइ। परिभवइ। संभवइ।। क्वचिदन्यदपि। उन्भुअइ। भत्त। __ अर्थः- ‘होना' अर्थक संस्कृत-धातु 'भू-भव्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'हो, हुव और हव' ऐसे तीन धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'भ=भव्' का 'भव' रूपान्तर भी होगा। जैसे:- भवति-होइ, हुवइ और हवइ अथवा भवइ-वह होता है। बहुवचन के उदाहरण इस प्रकार हैं:- भवन्ति होन्ति, हुवन्ति और हवन्ति अथवा भवन्ति-वे होते हैं।
कुछ प्रकीर्णक उदाहरण वृत्ति में इस प्रकार दिये गये हैं:(१) परिहीन-विभवः परिहीण विहवो-धन-वैभव से हीन हुआ। इस उदाहरण में भव' के स्थान पर 'हव' रूप को
प्रदर्शित किया गया है। (२) भवितुम् भविउं होने के लिये। इस हेत्वर्थ-कृदन्त के रूप में संस्कृत-धातु-रूप 'भव्' के स्थान पर प्राकृत
भाषा में भी 'भव्' रूप को ही प्रदर्शित किया गया है। (३) प्रभवति-पभवइ-वह समर्थ होता है, वह पहुंचता है अथवा वह उत्पन्न होता है। इस वर्तमान-कालिक क्रियापद ___ में संस्कृत धातु रूप 'प्र+भव' के स्थान पर प्राकृत भाषा में भी 'प+भव' का प्रयोग किया गया है। (४) परिभवति-परिभवइ-वह पराजय करता है अथवा तिरस्कार करता है। यहाँ पर भी 'भव' के स्थान पर भव'
रूप का ही प्रदर्शन किया गया है। संभवति-संभवइ-(अ) वह उत्पन्न होता है, (ब) संभावना होती है अथवा (स) उत्कट संशय होता है। इस उदाहरण में भी 'भव' ही प्रदर्शन किया गया है।
कहीं-कहीं पर 'भू-भव्' के स्थान पर उपर्युक्त रूपों के अतिरिक्त अन्य रूप भी देखे जाते हैं। जैसे:उद्भवति-उब्भुअइ-वह उत्पन्न होता है। इस उदाहरण में 'भूभव्' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में भुअ रूप का प्रयोग प्रदर्शित किया गया है। ऐसे विभिन्न तथा अनियमित रूपों के संबंध में 'बहुलं' सूत्र की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिये।
कभी-कभी सर्वथा अनियमित रूप भी 'भू-भव' के प्राकृत भाषा में देखे जाते हैं। जैसे-'भूतम् भत्त' =उत्पन्न हुआ। यह कर्मणि भूतकृदन्त का रूप है। ऐसे रूपों की प्राप्ति 'आर्षम्' सूत्र से सम्बन्धित है; ऐसा समझना चाहिये ।। ४-६०।।
अविति हुः ॥४-६१॥ विद्वजे प्रत्यये भुवो हु इत्यादेशो वा भवति।। हुन्ति। भवन्। हुन्तो। अवितीति किम्। होइ।।
अर्थः- 'वि' उपसर्ग नहीं होने की स्थिति में 'भू-भव' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'हु' धातु रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-भवन्ति-हुन्ति-वे होते हैं। भवन्-हुन्ता होता हुआ। इन उदाहरणों में भव' के स्थान पर 'हु' का प्रयोग प्रदर्शित किया गया है।
प्रश्न:- “वि' उपसर्ग का निषेध क्यों किया गया है?
उत्तरः- जहाँ पर 'वि' उपसर्ग पूर्वक अर्थ होगा वहां पर 'भू भव' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में हु' की आदेश प्राप्ति नही होगी। जैसे-भवति-होइ-वह विशेष प्रकार से होता है। यों यहाँ पर 'हुरूप का निषेध कर दिया गया है।।४-६१ ।।
पृथक-स्पष्टे णिव्वडः॥४-६२।। पृथग्भूते स्पष्टे च कर्तरि भुवो णिव्वड इत्यादेशो भवति।। णिववडइ। पृथक स्पष्टो वा भवतीत्यर्थः॥
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