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________________ 236 : प्राकृत व्याकरण अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय 'ण्यन्त' सहित 'विकसित कराना, फैलाना' अर्थक संस्कृत धातु 'विकोश' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'पक्खोड' धातु रूप की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में विकोशय के स्थान पर विकोस रूप की भी प्राप्ति होगी। जैसे- विकोशयति-पक्खोडइ अथवा विकोसइ-वह विकसित कराता है, वह फैलाता है ।।४-४२ ॥ रोमन्थे रोग्गाल - वग्गोलौ ।।४-४३ ।। रोमन्थेर्नामधातोर्ण्यन्तस्य एतावादेशौ वा भवतः ।। ओग्गालइ । वग्गोल | रोमन्थइ ।। अर्थ:- 'चबाई हुई वस्तु को पुनः चबाना' इस अर्थ में काम आने वाली धातु 'रोमन्थ' के साथ जुड़े हुए प्रेरणार्थक प्रत्यय 'ण्यन्त' पूर्वक सम्पूर्ण धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में ' ओग्गाल और वग्गोल' आदेश की प्राप्ति विकल्प से होती है। पक्षान्तर में 'रोमन्थ' का सद्भाव भी होगा। जैसे- रोमन्थयति = ओग्गालइ, वग्गोलइ अथवा रोमन्थइ = वह चबाई हुई वस्तु को पुनः चबाता है - वह पगुराता है ॥४-४३।। कमेर्णिहुवः।। ४-४४॥ कमेःस्वार्थेण्यन्तस्य णिहुव इत्यादेशो वा भवति।। णिहुवइ। कामेइ।। अर्थः-स्वार्थ में प्रेरणार्थक प्रत्यय 'ण्यन्त' पूर्वक संस्कृत - धातु कम् के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'णिहुव' की आदेश प्राप्ति विकल्प से होती है। प्रेरणार्थक णिच् प्रत्यय की संयोजना से 'कम' धातु का रूप 'काम' हो जायेगा। जैसे:कामयते=णिहुवइ अथवा कामेइ = वह अपने लिये काम भोगों की इच्छा करता है; अथवा इच्छा कराता है।।४-४४।। प्रकाशेर्णुव्वः ।। ४-४५।। प्रकाशेर्ण्यन्तस्य णुव्व इत्यादेशो वा भवति ।। णुव्वइ । पयासेइ || अर्थः-प्रेरणार्थक प्रत्यय ‘ण्यन्त' सहित संस्कृत-धातु 'प्रकाश' के स्थान पर प्राकृत भाषा में णुव्व की प्राप्ति विकल्प से होती है। पक्षान्तर में 'पयास' रूप की भी प्राप्ति होगी। जैसे:- प्रकाशयति-णुव्वइ अथवा पयासेइ = वह प्रकाश करवाता है ।४-४५ ।। कम्पेर्विच्छोलः।।४-४६॥ कम्पेर्ण्यन्तस्य विच्छोल इत्यादेशो वा भवति । विच्छोलइ । कम्पेई । अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय ‘ण्यन्त' सहित संस्कृत धातु कम्प के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'विच्छोल' की भी प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'कम्प' की भी प्राप्ति होगी। जैसे- कम्पयति- विचेलई अथवा कम्पई-वह कंपाता है, वह धुजवाता है ॥ ४-४६॥ आरोपेर्वल || ४-४६॥ आरूहे पर्यन्तस्य वल इत्यादेशो वा भवति ।। वलइ । आरोवे ।। अर्थः-प्रेरणार्थक प्रत्यय ' ण्यन्त' सहित संस्कृत - धातु आरूह के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'वल' की प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में आरोव को भी प्राप्ति होगी। जैसे:-आरोहयति-वलइ अथवा आरोवेइ = वह चढवाता है। ।।४-४७।। दोलेरङ्खोलः ।।४ - ४८॥ दुःस्वार्थे ण्यन्तस्य रङ्खोल इत्यादेशो वा भवति ।। रङ्खोल । दोलई ।। अर्थः- स्वार्थ रूप में प्रेरणार्थक प्रत्यय ' ण्यन्त' सहित संस्कृत धातु दुल् के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'रङ्खोल' की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'दोल' की भी प्राप्ति होगी। जैसे- दोलयति = रङ्खोलइ अथवा दोलइ-वह हिलाता है अथवा वह झुलाता है ।।४-४८ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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