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230 : प्राकृत व्याकरण
ज्ञो जाण-मुणौ ।।४-७॥ जाणत ॥ण मुण इत्यादेशौ भवतः।। जाणइ। मुणइ। बहुलाधिकारात् क्वचित् विकल्पः। जाणि णाय। जाणिऊण। णाऊण। जाणणं। णाणं। मणइ इति तु मन्यतेः॥ । ___ अर्थ:-जानने रूप ज्ञानार्थक धातु 'झा' के स्थान पर प्राकृत में नित्यरूप से 'जाण और मुण' इन दो धातुओं की क्रम से आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-जानाति-जाणइ अथवा मुणइ वह जानता है। बहुलं' सूत्र का सर्वत्र अधिकार होने से कहीं-कहीं पर विकल्प से 'ज्ञा' से प्राप्त रूप 'णा' भी देखा जाता है। जैसे:- ज्ञातं-जाणिअं अथवा णायं-जाना हुआ। ज्ञात्वा जाणिऊण अथवा णाऊण जान करके। ज्ञानम्-जाणणं अथवा णाणं-जानना रूप ज्ञान। यों वैकल्पिक-स्थिति का भी ध्यान रखना चाहिये।
प्राकृत में जो ‘मणइ रूप देखा जाता है; उसकी प्राप्ति तो 'मानने-स्वीकार करने, अर्थक संस्कृत धातु 'मन्' से हुई है। जैसे- मन्यते-मणइ-वह मानता है अथवा वह स्वीकार करता है। यों मण धातु को जाण और मुण धातुओं से पृथक् ही समझना चाहिये। ।।४-७||
उदो ध्मो धुमा॥४-८॥ उदः परस्य ध्मो धातो—मा इत्यादेशो भवति।। उद्धुमाइ॥
अर्थः- उद् उपसर्ग जुड़ा हुआ है जिसकी, ऐसी 'ध्मा' धातु के स्थान पर प्राकृत में 'धुमा' रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-उद्धमति-उद्धमइ-वह प्रदीप्त करता है; वह तपाता है।।४-८।।
श्रदो धो दहः।। ४-९॥ श्रदःपरस्य दधातेर्दह इत्यादेशो भवति।। सद्दहइ। सद्दहमाणो जीवो।।
अर्थः- श्रुत् अव्यय के साथ संस्कृत धातु 'धा के प्राप्त रूप 'दधाति' में रहे हुए 'दधा' अंश के स्थान पर प्राकृत में 'दह' रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे- श्रद्दधाति-सद्दहइ-वह श्रद्धा करता है, वह विश्वास करता है। श्रद्धमानो जीवः सद्दहमाणो जीवो श्रद्धा करता हुआ जीव आत्मा।। ४-९।।।
पिबेः पिज्ज-डल्ल-पट्ट-घोटाः।। ४-१०।। पिबते रेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति।। पिज्जइ। डल्लइ। पट्टइ। घोट्टइ। पिअइ।।
अर्थः- संस्कृत धातु 'पा=पिब' के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'पिज्ज, डल्ल, पट्ट और घोट्ट' इन चार आदेशों की प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पिब् के स्थान पर 'पिअ रूप भी होता है। उदाहरण इस प्रकार है:- पिबति-पिज्जइ, डल्लइ, पट्टइ और घोट्टइ वह पीता है; वह पान करता है। पक्षान्तर में पिबति के स्थान पर पिअइ रूप की प्राप्ति भी होगी।।४-१०॥
उद्वातेरोरुम्मा वसुआ ॥४-११।। उत्पूर्वस्य वातेः ओरुम्मा वसुआ इत्येतावादेशौ वा भवतः ओरुम्माइ। वसुआइ। उव्वाइ।।
अर्थः-उत् उपसर्ग सहित 'वी' धातु के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'आरुम्मा और वसुआ रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में उद्वा-उद्वा' के स्थान पर 'उव्वा' रूप भी होगा। उदाहरण यों है:-उद्वाति-ओरुम्माइ, वसुआइ और उव्वाइ-वह हवा करता है।।४-११।।
__ निद्रातेरोहीरोङ् घौ ।। ४–१२।। निपूर्वस्य द्राते:ओहीर उङ्घ-इत्यादेशौ वा भवतः।। ओहीरइ। उङ्घइ। निद्दाइ।
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