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________________ 186 : प्राकृत व्याकरण और वह यह है कि- हम (सब) स्पष्ट रूप से बोलते हैं- स्पष्ट रूप से कहते हैं। इस प्रकार से अन्य अकारान्त-धातुओं के भी अन्त्यस्थ 'अकार' को वैकल्पिक रूप से 'आ अथवा इ अथवा ए' की प्राप्ति होने के कारण से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन के प्रत्यय 'मो-मु-म' परे रहने पर बारह-बारह रूप बनते है। प्रश्नः- अकारान्त-धातुओं के लिये ही ऐसा विधान क्यों किया गया है? अन्य स्वरान्त धातुओं के अन्त्यस्थ स्वर के सम्बन्ध में ऐसा विधान क्यों नहीं बतलाया गया हैं? उत्तरः-अन्य स्वरान्त धातुओं के अन्त्यस्थ स्वर को आगे वर्तमानकाल के प्रययों के परे रहने पर किसी भी प्रकार की स्वरात्मक-आदेश प्राप्ति नहीं पाई जाती है; अतएव प्रचलित परम्परा के प्रतिकूल विधान कैसे बनाया जा सकता है? जैसे कि:- तिष्ठामः-ठामो-हम ठहरते हैं; भवामः होमो-हम होते हैं; इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि 'ठा' और हो' धातु क्रम से आकारान्त और औकारान्त हैं; अतएव इन अथवा ऐसी ही अन्य धातुओं के अन्त्यस्थ स्वर 'आ अथवा ओ अथवा अन्य स्वर' को आगे पुरुष बोधक प्रत्ययों के परे रहने पर भी 'अकार' के समान 'आ अथवा इ अथवा ए अथवा अन्य स्वर' आत्मक वैकल्पिक आदेश प्राप्ति नहीं होती है। इसलिये केवल धातुस्थ अन्त्य 'टकार' के संबंध में ही ग्रन्थकार ने उक्त विधि-विधान बनाना उचित समझा है और अन्य अन्त्यस्थ स्वरों के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के विधि-विधान की आवश्यकता का अनुभव नहीं किया है। भणामः संस्कृत का अकर्मक रूप है। इसके प्राकृत रूप बारह होते हैं :- भणमो, भणमु, भणम, भणामो, भणामु, भणाम, भणिमो, भणिमु, भणिम, भणेमो, भणेमु और भणेम। इनमें से प्रथम तीन रूपों में सूत्र-संख्या ३-१४४ से मूल प्राकृत धातु भण' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'मस्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'मो-मु-म' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से 'भणमो, भणमु और भणम सिद्ध हो जाते है। भणामो, भणामु और भणाम में सूत्र-संख्या ३-१५४ से मूल प्राकृत धातु 'भण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अकार' के स्थान पर 'आकार' की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति और ३-१४४ से प्रथम तीन रूपों के समान हो 'मो-मु-म' प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति होकर चौथा, पाँचवा और छट्टा रूप भणामो, भणामु और भणाम सिद्ध हो जाते हैं। __ भणिमो, भणिमु और भणिम में सूत्र-संख्या ३-१५५ से मूल प्राकृत धातु 'भण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अकार' के स्थान पर 'इकार' की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति और ३-१४४ से प्रथम तीन रूपों के समान ही 'मो-मु-म' प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति होकर सातवां, आठवां और नववां रूप भणिमो, भणिमु और भणिम सिद्ध हो जाते हैं। भणमो. भणेम और भणेम में सत्र-संख्या ३-१५८ से मल प्राकृत धात् 'भण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'ए' की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति और ३-१४४ से प्रथम तीन रूपों के समान ही 'मो-म-म' प्र पत्ययों की कम से प्राप्ति होकर दशवां, ग्यारहवां और बारहवां रूप भणेमो, भणेमु और भणेम सिद्ध हो जाता है। __ तिष्ठामः संस्कृत का क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप ठामो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-१६ से मूल संस्कृत धातु 'स्था' के आदेश प्राप्ति रूप 'तिष्ठ्' के स्थान पर प्राकृत में 'ठा' रूप की आदेश प्राप्ति और ३-१४४ से आदेश प्राप्त प्राकृत धातु 'ठा' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'मस्' के स्थान पर प्राकृत में 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत-क्रियापद का रूप 'ठामो' सिद्ध हो जाता है। भवामः संस्कृत क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप होमो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल-संस्कृत-धातु 'भू भव्' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' रूप की आदेश प्राप्ति और ३-१४४ से आदेश-प्राप्त प्राकृत धातु 'हो' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'मस्' के स्थान पर प्राकृत में मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत क्रियापद का रूप होमो सिद्ध हो जाता है।।३-१५५।। क्ते ॥३-१५६॥ __ ते परतोत इत्त्वं भवति। हसिओ पढिओ नविआ हासिओ पाढिओ। गयं नयमित्यादि तु सिद्धावस्थापेक्षणात्॥ अत इत्येव। झायं। लुओ हू।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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