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________________ 'अम्हे' (सर्वनाम) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३- १०६ में की गई है। 'स्मः' अत्थि रूप की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है। 'अम्हो' (सर्वनाम) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३- १०६ में की गई है। 'वच्छेण' (प्राकृत पद) की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-६ में की गई है। 'वच्छेसु' (प्राकृत-पद) की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - १५ में की गई है। 'सव्वे' 'जे' 'ते' और 'के' चारों रूपों की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५८ में की गई है । । ३ -१४७ ।। अत्थिस्त्यादिना ।। ३-१४८।। प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित 173 अस्तेःस्थाने त्यादिभिः सह अत्थि इत्यादेशो भवति ।। अत्थि सो। अत्थि ते । अत्थि तुमं । अत्थि तुम्हे अत्थि अहं । अत्थि अम्हे | अर्थ:- संस्कृत-धातु 'अस्' के प्राकृत रूपान्तर में वर्तमानकाल के एकवचन के और बहुवचन के तीनों पुरुषों के प्रत्ययों की संयोजना होने पर तीनों पुरुषों के दोनों वचनों में उक्त धातु' 'अस्' तथा प्राप्त प्रत्ययों के स्थान पर समान रूप से एक ही रूप 'अत्थि' की आदेश प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार हैं: - (१) सः अस्ति = सो अत्थि= वह है; (२) तौ स्तः अथवा ते सन्ति=ते अस्थि-वे दोनों अथवा वे (सब) है; (३) त्वमसि तुमं अस्थि-तू है; (४) युवाम् स्थः अथवा यूयम् स्थ=तुम्हे अत्थि=तुम दोनों अथवा तुम (सब) हो; (५) अहम् = अस्मि = अहं अस्थि- मैं हूँ और (६) आवाम् स्वः अथवा वयम् स्मः= :- अम्हे अत्थि = हम दोनों अथवा हम (सब) है। यों 'अस्' धातु के वर्तमानकाल के तीनों पुरुषों में और दोनों वचनों में सूत्र-संख्या ३-१४६ - १४७ - १४८ के अनुसार प्राकृत भाषा में निम्न प्रकार से रूप होते हैं: पुरुष एकवचन बहुवचन प्रथम अत्थि अत्थि द्वितीय सि और अतिथ अत्थि तृतीय म्हि और अथि म्हो; म्ह और अस्थि इस प्रकार 'अस्' धातु के प्राकृत भाषा में आदेश प्राप्ति रूप पाये जाते हैं, और केवल आदेश प्राप्ति एक रूप 'अत्थि' ही तीनों पुरुषों के दोनों वचनों में समान रूप से प्रयुक्त होकर इष्ट- ताप्पर्य को प्रदर्शित कर देता है। 'अस्ति = अत्थि' (क्रियापद) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या २- ४५ में की गई है। 'सो' (सर्वनाम - पद) की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-८६ में की गई है। 'सन्ति (और स्तः) संस्कृत के वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष बहुवचनान्त ( और द्विवचनान्त क्रम से) परम्मैपदीय अकर्मक क्रियापद के रूप है। इन दोनों का प्राकृत रूप अत्थि ही होता है। इनमें सूत्र - संख्या ३ -१४८ से दोनों रूपों के स्थान पर 'अस्थि' रूप सिद्ध हो जाता है। 'असि=अत्थि' (क्रियापद) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - १४६ में की गई है। (सर्वनाम) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-५८ में की गई है। 'तुम' (सर्वनाम) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ -१४६ में की गई है। 'स्थः और स्थ' संस्कृत के वर्तमानकाल के द्वितीय पुरुष के क्रम से द्विवचनान्त तथा बहुवचनान्त परम्मैपदीय अकर्मक क्रियापद के रूप है। इनका प्राकृत रूप अत्थि' होता है। इनमें सूत्र - संख्या ३-१४८ से दोनों रूपों के स्थान पर 'अत्थि' रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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