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164 प्राकृत व्याकरण
भवन्ति ।। हसन्ति। वेवन्ति । हसिज्जन्ति । रमिज्जन्ति । गज्जन्ते खे मेहा। बीहन्ते रक्खसाणं च ।। उप्पज्जन्ते कइ-हिअय- पायरे कव्व रयणाइं । । दोण्णि वि न पहुप्पिरे बाहूं न प्रभवत इत्यर्थः । विच्छुहिरे । विक्षुभ्यन्तीत्यर्थः ॥ क्वचिद् इरे एकत्वेपि। सूसइरे गामचिक्खक्लो । शुष्यतीत्यर्थः ॥
अर्थः- संस्कृत भाषा में प्रथम (पुरुष अन्य पुरुष) के बहुवचन में वर्तमानकाल में प्रयुक्त होने वाले परस्मैपदीय और आत्मनेपदीय प्रत्यय 'अन्ति' और 'अन्ते' के स्थान पर प्राकृत में 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। उदाहरण इस प्रकार हैं: हसन्ति-हसन्ति-वे हँसते हैं अथवा हँसती हैं। वेपन्ते-वेवन्ति-वे कांपते हैं अथवा वे कापती हैं। हासयन्ति=हसिज्जन्ति-वे हँसाये जाते अथवा वे हँसाई जाती हैं। रमयन्ति = रमिज्जन्ति-वे खेलाये जाते हैं अथवा खेलायी जाती हैं। गर्जन्ति खे मेघाः- गज्जन्ते खे मेहा - बादल आकाश में गर्जना करते हैं। बिभ्यति राक्षसेभ्यः - बीहन्ते रक्खसाणं- वे राक्षसों से डरते हैं अथवा डरती हैं। उत्पद्यन्ते कवि - हृदय सागरे काव्य रत्नानि - उप्पज्जन्ते कइ - हिअय- सायरे कव्व-रयणाइं-कवियों के हृदय रूप समुद्र में काव्य रूप रत्न उत्पन्न होते रहते हैं । द्वौ अपि न प्रभवतः बाहू-दोण्णि वि न पहुप्पिरे बाहू=दोनों हो भुजाऐं प्रभावित नहीं होती हैं। विक्षुभ्यन्ति = विच्छुहिरे - वे घबराते हैं अथवा वे घबड़ाती हैं। वे चंचल होती हैं। इन उदाहरणों को देखने से पता चलता है कि संस्कृत परस्मैपदीय अथवा आत्मनेपदीय प्रत्ययों के स्थान पर वर्तमानकाल प्रथमपुरुष के बहुवचन में प्राकृत में 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्ययों की प्राप्ति हुआ करती है। कहीं-कहीं पर वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के बहुवचन में प्राकृत में बहुवचनीय प्रत्यय 'इरे' की प्राप्ति भी देखी जाती है। उदाहरण इस प्रकार है:- शुष्यति ग्राम - कर्दमः- सुसइरे गाम - चिक्खलो = गांव का कीचड़ सूखता है। इस उदाहरण में संस्कृत क्रियापद 'शुष्यति' एकवचनात्मक है तदनुसार इसका प्राकृत रूपान्तर सूसइ अथवा सूसर होना चाहिये था, किन्तु 'सुसइरे' ऐसा रूपान्तर करके प्राकृत बहुवचनात्मक प्रत्यय 'इरे' की संयोजना की गई है। ऐसा प्रसंग कभी-कभी ही देखा जाता है; सर्वत्र नहीं। 'बहुलम्' सूत्र के अन्तर्गत ही समझना चाहिये ।
हसन्ति संस्कृत का वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष का बहुवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी हसन्ति ही होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३ -१४२ से प्राकृत धातु 'हस' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के बहुवचन में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हसन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
वेपन्ते संस्कृत का वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष का बहुवचनान्त आत्मनेपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत-रूप वेवन्ति होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-२३१ से मूल धातु 'वेप' में स्थित 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; तत्पश्चात् प्राप्तांग 'वेव' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के बहुवचन में संस्कृत में आत्मनेपदीय प्राप्त 'अन्ते=न्ते' के स्थान पर प्राकृत में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत-रूप वेवन्ति सिद्ध हो जाता है।
हासयन्ति संस्कृत का वर्तमानकाल का प्रथमपुरुष रूप बहुवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप हसिज्जन्ति होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३ - १६० से मूल धातु हस में भाव-विधि अर्थ में 'इज्ज' प्रत्यय की पाप्ति; १-१० से ‘हस' धातु में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के आगे प्राप्त प्रत्यय 'इज्ज' की 'इ' होने से लोप; १-५ से हलन्त 'हस्' के साथ में आगे रहे हुए प्रत्यय रूप 'इज्ज' की संधि होकर 'हसिज्ज' अंग की प्राप्ति और ३-१४२ से प्राप्तांग, 'हसिज्ज' में वर्तमानकाल के बहुवचनात्मक प्रथमपुरुष में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हसिज्जन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
मन्ति संस्कृत का वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष का बहुवचनान्त भाव - विधि द्योतक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप रमिज्जन्ति होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३ - १६० से मूल - धातु 'रम' में भाव - विधि द्योतक 'इज्ज' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१० से ‘रम' धातु में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के आगे प्राप्त प्रत्यय 'इज्ज' की 'इ' होने से लोप; १-५ से हलन्त 'रम्' के साथ में आगे रहे हुए प्रत्यय रूप 'इज्ज' की संधि होकर ' रमिज्ज' अंग की प्राप्ति और ३-१४२ से प्राप्तांग ' रमिज्ज' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के बहुवचन में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रमिज्जन्ति रूप सिद्ध हो जाता है। 'गज्जन्ते' 'खे' और 'मेहा' तीनों रूपों की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - १८७ में की गई है।
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