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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 163 का उदाहरण इस प्रकार है:- न म्रिये-न मरं-मैं नहीं मरता हूं अथवा मैं नहीं मरती हूँ; यहां पर प्राकृत में मरामि के स्थान पर प्राप्त रूप 'मरं' यह निर्देश करता है कि 'मि' प्रत्यय के स्थान पर उपर्युक्त विधानानुसार हलन्त 'म्' की ही प्रत्यय रूप से प्राप्ति हुई है। यों अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये। ___ हसामि संस्कृत का वर्तमानकाल का तृतीय पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी हसामि ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१५४ से मूल प्राकृत धातु 'हस्' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर' 'अ' को 'आ' की प्राप्ति और ३-१४१ से प्राप्त प्राकृत धातु 'हसा' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय'मि' के समान ही प्राकत में भी 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप हसामि सिद्ध हो जाता है। वेप संस्कृत का वर्तमानकाल का तृतीय पुरुष का एकवचनान्त आत्मनेपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप वेवामि होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३१ से मूल संस्कृत धातु वेप में स्थित 'प्' के स्थान पर 'व् की प्राप्ति; ४-२३९ से प्राप्त हलन्त धातु 'वेव्' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५४ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति और ३-१४१ से प्राप्त प्राकृत धातु वेवा' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृत आत्मनेपदीय प्रत्यय 'इ' के स्थान पर प्राकृत में 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप वेवामि सिद्ध हो जाता है। ___ हे बहु-ज्ञानक! संस्कृत का संबोधन का एकवचनान्त पुल्लिंग विशेषण का रूप हैं। इसका प्राकृत-रूप हे बहु जोणय! होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-८३ से 'ज्ञ,-ज्+ब' में स्थित 'ब्' व्यंजन का लोप होने से 'ज्ञा' के स्थान पर प्राकृत में 'जा' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क्' व्यंजन का लोप, १-१८० से लोप हुए व्यंजन 'क्' के पश्चात् शेष रहे 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति और ३-३८ से संबोधन के एकवचन में प्रथमा विभक्ति के समान ही ३-२ के अनुसार प्राकृत प्रत्यय 'डो-ओ' का अभाव होकर प्राकृत रूप हे बहु-जाणय! सिद्ध हो जाता है। रोषितुम् संस्कृत का हेत्वर्थ कृदन्त का रूप है। इसका प्राकृत रूप रुसिउं होता है। इसमें सूत्र-संख्या-४-२३६ से मूल संस्कृत-धातु 'रूष' में स्थित हस्व स्वर 'उ' को प्राकृत में दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति, १-२६० से 'ष' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति, १-१७७ से 'त्' व्यंजन का लोप और १-२३ से अन्तिम हलत 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप रुसिउं सिद्ध हो जाता है। शक्नोमि संस्कृत का वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप सक्कं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; ४-२३० से 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति; प्राकृत में गण भेद का अभाव होने से संस्कृत धातु 'शक' में पंचम-गण-द्योतक विकरण प्रत्यय 'नो-२नु-नु' का प्राकृत में अभाव; तदनुसार शेष रूप से प्राप्त धातु 'सक्क' में ३-१४१ की वृत्ति से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में प्राकृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'मि' में स्थित हस्व स्वर 'इ' का लोप होकर हलन्त रूप से प्राप्त 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त हलन्त प्रत्यय 'म्' को अनुस्वार की प्राप्ति होकर क्रियापद का रूप 'सक्क' सिद्ध हो जाता है। 'न' अव्यय की सिद्धि सूत्र-संख्या १-६ की गई है। निये संस्कृत का वर्तमानकाल का तृतीय पुरुष का एकवचनान्त आत्मनेपदीय षष्ठ-गणीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप मरं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२३४ से मूल संस्कृत धातु 'मृ' में स्थित 'ऋ' के स्थान पर प्राकृत में 'अर' की प्राप्ति होकर प्राकृत में 'मर' अंग रूप की प्राप्ति; तत्पश्चात् ३-१४१ की वृत्ति से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृत के आत्मनेपदीय प्रत्यय 'इ' के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'मि' में स्थित हस्व स्वर 'इ' का लोप होकर हलन्त रूप से प्राप्त 'म्' प्रत्यय की अनुस्वार की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त हलन्त 'म्' को अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकृत क्रिया पद का रूप मरं सिद्ध हो जाता है। ३-१४१।। बहुष्वाद्यस्य न्ति न्ते इरे।। ३-१४२।। त्यादीनां परस्मैपदात्मनेपदानामाद्यत्रय संबन्धिनो बहुषु वर्तमानस्य वचनस्य स्थाने न्ति न्ते इरे इत्यादेशा; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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