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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 161 रहे हुए हलन्त व्यंजन 'म्' में आगे स्थित प्रत्ययात्मक दीर्घ स्वर 'आ' की संधि; यों प्राप्त नाम-धातु रूप दमदमा में ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत परस्मैपदीय प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर दमदमाइ रूप सिद्ध हो जाता है। दमदमायते संस्कृत का वर्तमानकालीन प्रथमपुरुष का एकवचनान्त नाम-धातु रूप से निर्मित क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप दमदमाअइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१३८ से नाम धातु द्योतक प्रत्यय "य" का लोप और ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत आत्मनेपदीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में "इ'' प्रत्यय की प्राप्ति होकर दमदमाअइ रूप सिद्ध हो जाता है। लोहितीयति संस्कृत का वर्तमानकालीन प्रथमपुरुष का एकवचनान्त नाम धातु रूप से निर्मित क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप लोहिआइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१३८ से नाम-धातु द्योतक प्रत्यय "य" का लोप; ३-१५८ की वृत्ति से लोप हुए “य्" के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' प्रत्यय के स्थान पर "आ" की प्राप्ति; १-१७७ से "त्" व्यंजन का लोप; १-१० से लोप हुए “त्'' व्यंजन के पश्चात् शेष रहे हुए दीर्घस्वर 'ई' का आगे नाम-धातु द्योतक प्रत्यय "अ" का सद्भाव होने से लोप; एवं प्राप्त रूप "लोहिआ' में ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत परस्मैपदीय प्रत्यय "ति" के स्थान पर प्राकृत में "इ" प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप लोहिआइ सिद्ध हो जाता है। लोहितायते संस्कृत का वर्तमानकालीन प्रथमपुरुष का एकवचनान्त नाम-धातु-रूप से निर्मित क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत-रूप लोहिआअइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से "त्" का लोप; ३-१३८ से नाम-धातु-द्योतक प्रत्यय “य्' का लोप, और ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृतीय-आत्मनेपदीय प्रत्यय "ते" के स्थान पर प्राकृत में "इ'' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत-रूप लोहिआअइ सिद्ध हो जाता है।।३-१३८।। त्यादिनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ ।। ३-१३९॥ त्यादीनां विभक्तीनां परस्मैपदानामात्मनेपदानां च सम्बन्धिनः प्रथमत्रयस्य यदाद्यं वचनं तस्य स्थाने इच् एच् इत्येतावादेशौ भवतः।। हसइ। हसए। वेवइ। वेवए। चकारौ इचेचः(४-३१८) इत्यत्र विशेषणार्थो। अर्थः- संस्कृत भाषा में धातुएँ दस प्रकार की होती हैं; जो कि 'गण' रूप से बोली जाती है; वैसा गण-भेद प्राकृत भाषा में नहीं पाया जाता है। प्राकृत भाषा में तो सभी धातुएँ एक ही प्रकार की पाई जाती है; जो कि मुख्यतः स्वरान्त ही होती है; थोड़ी सी जो भी व्यञ्जनान्त है; उनमें भी सूत्र-संख्या ४-२३९ से अन्त्य हलन्त व्यंजन में विकरण प्रत्यय "अ" की संयोजना करके उन्हें अकारान्त रूप में परिणत कर दिया जाता है। इस प्रकार प्राकृत भाषा में सभी धातुएँ स्वरान्त ही एवं एक ही प्रकार की पाई जाती है। संस्कृत-भाषा में "परस्मै पद और आत्मने पद" रूप से प्रत्ययों में तथा धातुओं में जैसा भेद पाया जाता है, प्राकृत भाषा में वैसा नहीं है; तदनुसार प्राकृत भाषा में काल-बोधक एवं पुरुष-बोधक प्रत्ययों की श्रेणी एक ही प्रकार की है। संस्कृत के समान "परस्मैपदीय और आत्मनेपदीय" प्रत्ययों को भिन्न-भिन्न श्रेणी का प्राकृत में अभाव ही जानना। इसी प्रकार से संस्कृत में जैसे दस प्रकार के लकार होते हैं; वैसे प्रकार के लकारों का भी प्राकृत में अभाव है; किन्तु प्राकृत भाषा में वर्तमानकाल, भूतकाल; भविष्यकाल आज्ञार्थक, विधि अर्थक और क्रियातिपत्ति अर्थात् लुङ्-लकार यों कुल छह लकारों के प्रत्यय ही प्राकृत में पाये जाते हैं। सूत्र-संख्या ३-१५८ में आज्ञार्थक लकार के लिए शब्द का प्रयोग किया गया है और ३-१६५ में विधिलिंग के लिए सप्तमी शब्द का प्रयोग हुआ है। इस सूत्र में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन के प्रत्ययों का निर्देश किया गया है; तदनुसार संस्कृत भाषा में परस्मैपदीय और आत्मनेपदीय रूप से प्रयुक्त होने वाले प्रत्यय ति' और 'ते' के स्थान पर प्राकृत में "इच्=इ" और "एच-ए" प्रत्ययों की प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार हैं:- हसति-हसइ और हसए वह हंसता है अथवा वह हंसती है। वेपते-वेवइ और वेवए-वह काँपता है अथवा वह काँपती है। उपर्युक्त "इच् और एच् प्रत्ययों में जो हलन्त चकार लगाया गया है; उसका यह तात्पर्य है कि आगे सूत्र-संख्या ४-३१८ में इनके सम्बन्ध में पैशाची भाषा की दृष्टि से 'पंचमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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