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________________ 160 : प्राकृत व्याकरण की संयोजना की जाती है; तब वे शब्द नामार्थक नहीं रहकर धातु-अर्थक बन जाते हैं; यों धातु-अंग की प्राप्ति होने पर तत्पश्चात् उनमें कालवाचक तथा पुरुष-बोधक प्रत्यय जोड़े जाते है। ऐसे धातु-रूपों से तब 'इच्छा, आचरण, अभ्यास' आदि बहुत से अर्थ प्रस्फुटित होते हैं। जहां अपने लिये किसी वस्तु की इच्छा की जाय वहां 'इच्छा' अर्थ में उस वस्तु के बोधक नाम के आगे 'क्यच-य' प्रत्यय लगाकर तत्पश्चात् कालवाचक प्रत्यय जोड़े जाते हैं। उदाहरण इस प्रकार है:पुत्रीयति= (पुत्र+ई+य+ति) वह अपने पुत्र होने की इच्छा करता है। कवीयति=(कवि+ई+य+ति) अपने आप कवि बनना चाहता है। कीयति =खुद कर्ता बनना चाहता है। राजीयति आप राजा बनना चाहता है; इत्यादि। कभी-कभी 'क्यचः=य' व्यवहार करना अथवा समझना' के अर्थ में भी आ जाता है। जैसे:- पुत्रीयति छात्रम् गुरु: गुरु अपने छात्र के साथ पुत्रवत् व्यवहार करता है। प्रसादीयति कुट्यां भिक्षुः भिखारी अपनी झोपड़ी को महल जैसा समझता है। जहां एक पदार्थ किसी दूसरे जैसा व्यवहार करे; वहां जिसके सदृश व्यवहार करता हो, उसके वाचक-नाम के आगे 'क्यङ्-य' प्रत्यय लगाया जाता है एवं तत्पश्चात् कालबोधक प्रत्ययों की संयोजना होती है। जैसे:- शिष्यः पुत्रायते शिष्य पुत्र के समान व्यवहार करता है; गोपः कृष्णायते गोप कृष्ण के समान व्यवहार करता है। विद्वायते वह विद्वान् के सदृश व्यवहार करता है प्रश्नयति वह प्रश्न करता है; मिश्रयति मिलावट करता है; लवणयति-वह खारा जैसा करता है। वह लवण रूप बनाता है। पुत्रति वह पुत्र जैसा व्यवहार करता है; पितरति-वह पिता जैसा व्यवहार करता है। इसी प्रकार से गुणायन्ते, दोषायन्ते, द्रुमायत्ते, दुःखायते, सुखायते' इत्यादि सैकड़ों नाम धातु रूप हैं। उक्त क्यङ्ग' और कयङष्' के स्थानीय प्रत्यय 'य' का प्राकृत में लोप हो जाता है और तत्पश्चात् प्राकृत कालबोधक प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। उदाहरण इस प्रकार हैं:- अगुरुः गुरुः भवति-गुरुयति गरूआइ वह गुरु नहीं होते हुए भी गुरु बनता है; यह 'क्यङ्का उदाहरण हुआ। 'क्यक्ष' का उदाहरण यों है:-गुरुः इव आचरति गुर्वायते-गुरुआअइ=(वह गुरु नहीं होता हुआ भी) गुरु जैसा आचरण करता है। वृत्तिकार ने दो उदाहरण और दिये हैं; जो कि इस प्रकार हैं:- दमदमीयति-दमदमाइ-वह नगारा रूप बनता है; दमदमायते दमदमाअइ-वह नगारा जैसा शब्द करता है। लोहितीयति लोहिआइ-वह रक्त वर्ण वाला बनता है। लोहितायते लोहिआअइ-वह रक्त वर्णीय बनने की इच्छा करता है। इसी प्रकार से अन्य संज्ञाओं पर से बचने वाले धातुओं के रूपों को भी समझ लेना चाहिये। अंग्रेजी-भाषा में इसको 'Denominative' प्रक्रिया अथवा NominalVerbal प्रक्रिया कहते है। गुरुयति संस्कृत का वर्तमानकालीन प्रथमपुरुष का एकवचनान्त नाम-धातु रूप से निर्मित क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप गरूआइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से पद में रहे हुए आदि वर्ण 'गु' के 'उ' को 'अ' की प्राप्ति; १-४ से रू' में स्थित दीर्घ स्वर 'ऊ के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति; ३-१३८ से नाम-धातु-द्योतक प्रत्यय 'य' का लोप; ३-१५८ की वृत्ति से लोप हुए 'य' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' प्रत्यय के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुरुआइ रूप सिद्ध हो जाता है। गुर्वायते= (गुरु+आयते) संस्कृत का वर्तमानकालीन प्रथमपुरुष का एकवचनान्त नाम-धातु रूप से निम्रित क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप गुरुआअइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१०७ से पद में रहे हुए आदि वर्ण 'गु' के 'उ' को 'अ' की प्राप्ति; तत्पश्चात् उत्तरार्ध प्रत्ययात्मक पद 'आयते' में स्थित 'य' प्रत्यय का ३-१३८ से लोप और १-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत आत्मनेपदीय प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुरुआअइ रूप सिद्ध हो जाता है। __दमदमीयति संस्कृत का वर्तमानकालीन प्रथमपुरुष का एकवचनान्त नाम-धातु रूप से निर्मित क्रियापद का रूप है इसका प्राकृत रूप दमदमाइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१३८ से नाम-धातु द्योतक प्रत्यय 'य' का लोप; ३-१५८ की वृत्ति से लोप हुए 'य' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' प्रत्यय के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति; १-१० से पदस्थ वर्ण 'मी' में स्थित दीर्घ स्वर 'ई' का आगे प्रत्ययात्मक स्वर 'आ' का सद्भाव होने से लोप; १-५ से लोप हुए स्वर 'ई' के पश्चात् शेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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