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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 155 पादान्तिम मत्-सहितेभ्यः संस्कृत पंचमी विभक्ति का बहुवचनान्त विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप पायन्तिमिल्ल सहिआण है। इसमें सत्र-संख्या १-१७७ से 'द' व्यंजन का लोप: १-१८० से लोप हए 'द' व्यञ्जन के पश्चात् शेष रहे हुए 'आ' को 'या' की प्राप्ति; १-८४ से प्राप्त 'या' में स्थित दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर आगे संयुक्त व्यञ्जन 'न्ति' का सद्भाव होने से हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति; २-१५९ से संस्कृत प्रत्यय 'मत्' के स्थान पर प्राकृत में 'इल्ल' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१० से प्राप्त प्राकृत रूप 'पायन्तिम' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के आगे प्राप्त प्रत्यय 'इल्ल' में स्थित स्वर 'इ' का सद्भाव होने से लोप; १-५ से प्राप्त प्राकृत रूप 'पायन्तिम्+इल्ल' में संधि होकर प्राकृत रूप पायन्तिमिल्ल की प्राप्ति, १-१७७ से 'सहित' में स्थित 'त' व्यञ्जन का लोप; ३-१३४ से पञ्चमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति के प्रयोग करने की आदेश प्राप्ति; ३–१२ से प्राकृत प्राप्त रूप 'पायन्तिमिल्ल-सहिअ' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के स्थान पर षष्ठी विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय का सद्भाव होने से दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति और ३-६ से प्राप्त प्राकृत रूप 'पायन्तिमिल्ल-सहिआ' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत-पद पायन्तिमिल्ल सहिआण की सिद्धि हो जाती है। पृष्ठे संस्कृत सप्तमी विभक्ति का एकवचनान्त नपुंसकलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप पिट्रीए है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२८ से 'ऋ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; २-७७ से 'ष' लोप; २-८९ से लोप हुए '' के पश्चात् शेष रहे हुए 'ठ' को द्वित्व 'ठ्ठ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्ति पूर्व'' के स्थान पर 'ट्' की प्राप्ति; १-३५ की वृत्ति से मूल संस्कृत शब्द पृष्ठ को नपुंसकलिंगत्व से प्राकृत में स्त्रीलिंगत्व की प्राप्ति; तदनुसार ३-३१ और २-४ से प्राकृत में प्राप्त शब्द 'पिट्ठ' में स्त्रीलिंगत्व-द्योतक प्रत्यय 'डी-ई की प्राप्ति; ३-१३४ से संस्कृत सप्तमी विभक्ति के स्थान पर प्राकृत में षष्ठी विभक्ति के प्रयोग करने की आदेश प्राप्ति; तदनुसार ३-२९ से प्राप्त प्राकृत स्त्रीलिंग रूप पिट्टी में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस्-अस्' के स्थान पर 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत-रूप पिट्ठीए सिद्ध हो जाता है। ___केश-भारः संस्कृत प्रथमा विभक्ति का एकवचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप केस-भारो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-ओ' की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप केस-भारो सिद्ध हो जाता है।।३-१३४।। द्वितीया-तृतीययोः सप्तमी ।। ३–१३५ द्वितीया तृतीययोः स्थाने क्वचित् सप्तमी भवति।। गामे वसामि। नयरे न जामि। अत्र द्वितीयायाः।। मई वेविरीए मलिआई। तिसु तेसु अलकिया पहुवी। अत्र तृतीयायाः।। ___ अर्थः- प्राकृत भाषा में कभी-कभी द्वितीया विभक्ति और तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग भी पाया जाता है। उदाहरण इस प्रकार है:-ग्रामम् वसामि=गामे वसामि अर्थात् मैं ग्राम में वसता हूँ; नगरम् न यामि=नयरे न जामि अर्थात् मैं नगर को नहीं जाता हूं; इन उदाहरणों में संस्कृत में प्रयुक्त द्वितीया विभक्ति के स्थान पर प्राकृत में सप्तमी का प्रयोग किया गया है। तृतीया के स्थान पर सप्तमी के प्रयोग के दृष्टान्त इस प्रकार है:- मया वेपित्रा मृदितानि-मइ वेविरीए मली आई-कांपती हुई मेरे द्वारा वे मृदित किये गये हैं। त्रिभिःतैः अलंकृता पृथ्वी-तिसु तेसु अलकिया पुहनी-उन तीनों द्वारा पृथ्वी अलंकृत हुई है। इन दृष्टान्तों में संस्कृत तृतीया विभक्ति के स्थान पर प्राकृत में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग दृष्टिगोचर हो रहा है। यों प्राकृत में कभी-कभी और कहीं-कहीं पर विभक्तियों के प्रयोग में अनियमितता पाई जाती है। ग्रामम् संस्कृत द्वितीया विभक्ति का एकवचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप गामे है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से '' का लोप; ३-१३५ से द्वितीया के स्थान पर प्राकृत में सप्तमी विभक्ति के प्रयोग करने की आदेश प्राप्ति; ३-११ से प्राप्त प्राकृत शब्द 'गाम' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'डे=' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गामे रूप सिद्ध हो जाता है। वसामि संस्कृत के वर्तमानकालीन तृतीय पुरुष का एकवचनान्त अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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