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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित 143 ३-६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' (= नाम्) के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप 'मालाण' सिद्ध हो जाता है।
गिरीणाम् संस्कृत षष्ठी विभक्ति का बहुवचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप गिरीण होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३-१२ से मूल प्राकृत शब्द गिरि में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' के आगे षष्ठी विभक्ति के बहुवचनार्थ में संस्कृत प्रत्यय 'आम्= णाम्' के स्थान पर प्राकृत 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गिरीण रूप सिद्ध हो जाता है।
गुरूणाम् संस्कृत षष्ठी विभक्ति का बहुवचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप गुरुण होता है। इसमें भी उपर्युक्त गिरीण रूप के समान ही सूत्र - संख्या ३ - १२ और ३-६ से क्रम से अन्त्य ह्रस्व स्वर को दीर्घता की प्राप्ति एवं षष्ठी बहुवचनार्थ में प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुरूण रूप सिद्ध हो जाता है।
सखीनाम् संस्कृत षष्ठी विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप सहीण होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-१८७ से 'ख्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-६ से प्राप्त रूप 'सही' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचनार्थ में संस्कृत प्रत्यय ‘आम्=नाम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप 'सहीण' सिद्ध हो जाता है।
वधूनाम् संस्कृत षष्ठी विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप वहूण होता है। इसमें भी उपर्युक्त सहीण के रूप के समान ही सूत्र - संख्या १ - १८७ और ३-६ से क्रम से 'धू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और षष्ठी बहुवचनार्थ में प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वहूण रूप सिद्ध हो जाता है।
'धणं' संज्ञा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-५० में की गई है।
मालाभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप मालाहि होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३ - ७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप मालाहि सिद्ध हो जाता है।
गिरिभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप गिरीहि होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३ - १६ से मूल प्राकृत शब्द गिरि में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' के आगे तृतीया बहुवचनान्त प्रत्यय का सद्भाव होने से दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय भिस् के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप गिरीहि सिद्ध हो जाता है।
गुरुभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप गुरुहि होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३ - १६ से मूल शब्द गुरु में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'उ' के आगे तृतीया बहुवचनान्त प्रत्यय का सद्भाव होने से दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुरुहि रूप सिद्ध हो जाता है।
सखीभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप सहीहि होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १८७ से 'ख्' के स्थान पर 'ह्' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सहीहि रूप सिद्ध हो जाता है।
धूभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप वहूहि होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-१८७ से ' ध्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वहूहि रूप सिद्ध हो जाता है।
'क' रूप को सिद्धि सूत्र - संख्या १ - १२६ में की गई है।
मालायाः संस्कृत पंचमी विभक्ति का एकवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसके प्राकृत रूत मालाओ, मालाउ, मालाहिन्तो होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ३-८ से और ३- १२४ के निर्देश से पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय ' ङसि = अस= याः' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'ओ, उ, हिन्तों प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से प्राकृत रूप मालाओ, मालाउ, मालाहिन्तो सिद्ध हो जाते हैं।
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