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140 प्राकृत व्याकरण
अर्थ::- इस सूत्र में अकारान्त शब्दों के अतिरिक्त आकारान्त, इकारान्त, उकारान्त आदि षड- लिंग वाले शब्दों के लिये विभक्तिबोधक प्रत्ययों से संबंधित ऐसी विधि का उल्लेख किया गया है जो कि पहले नहीं कही गई है। तदनुसार सर्वप्रथम इस सर्व सामान्य विधि की उद्घोषणा की गई है। कि 'जिन आकारान्त आदि शब्दों के लिये पहले जो प्रत्ययविधि नहीं बतलाई गई है; उसको अकारान्त शब्द के लिये कही गई 'प्रत्यय-विधि' के समान ही इन आकारान्त आदि शब्दों के लिये भी समझ लेना चाहिये। इस व्यापक अर्थवाली घोषणा के अनुसार 'जस्', अम्, शस्' आदि विभक्तिबोधक प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत भाषा में अकारान्त शब्दों में जुड़ने वाले प्रत्ययों की कार्य-विधि और प्रभाव - शीलता इन आकारान्त आदि शब्दों के लिये भी जान लेना चाहिये । इस व्यापक विधि सूचना को यहां पर 'कार्यातिदेश' शब्द से उल्लिखत किया गया है। सर्वप्रथम सूत्र-संख्या ३-४ 'जस् - शसो लुकृ' का कार्यातिदेशता का उदाहरण देते हैं:- प्रथमा विभक्ति के बहुवचन के उदाहरण:- मालाः, गिरय, गुरवः, सख्यः, बधहः राजन्ते - माला, गिरी, गुरु, सही, वहू, रेहन्ति = मालाऐं, पहाड़, गुरुजन, सखियां और बहुऐं सुशोभित हो रही हैं। इसी प्रकार से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के उदाहरण यों हैं:- माला; गिरीन, गुरुन्', सखीः वधूः प्रेक्ष=माला, गुरु, सही, वहू पेच्छ - मालाओं को, पहाड़ों को, गुरु-जनों को, सखियों को और बहुओ को देखो। इन प्रथमा और द्वितीय विभक्ति के बहुवचन के उदाहरणों में आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त और ऊकारान्त पुल्लिंग एवं स्त्रीलिंग के शब्दों में अकारान्त शब्द की प्रत्यय - विधि भी कार्य-शील होती है; ऐसा ज्ञान कराया गया है।
'अमोस्य' (३-१) सूत्र - की कार्य- अतिदेशना के उदाहरण इस प्रकार हैं:- गिरिम्' गुरुम् ' सखीम्; वधूम, ग्रामण्यम, खलप्वम् प्रेक्ष= गिरिं, गुरुं, सहिं, वहुं, गामणिं खलपुं पेच्छ-पहाड़ को, गुरु को, सखी को, वधू को, ग्राम- मुखिया को और खलिहान साफ करने वाले को देखो। इन उदाहरणों में भी अकारान्त शब्द के समान ही द्वितीया विभक्ति के एकवचन में प्रयुक्त होने वाले प्रत्यय की कार्यशीलता प्रदर्शित की गई है।
'टा- आमोर्ण' (३--६) सूत्र की कार्य- अतिदेशता का स्वरूप प्रदर्शक उदाहरण इस प्रकार है:- हाहाकृतम- हाहाण कयं=गन्धर्व से, अथवा देव से किया गया है। यह तृतीया विभक्ति के एकवचन का उदाहरण हुआ; षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में होने वाले कार्यातिदेश के उदाहरण निम्न प्रकार से हैं:- मालानाम्, गुरुणाम्, गिरीणाम्, सखीनाम्, वधूनाम, धनम् = मालाण, गिरीण, गुरुण, सहीण, वहूण धणं = माआओं को, पहाड़ों का, गुरु जनों का, सखियों का, बहुओं का धन । तृतीया विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय 'टा' से सम्बन्धित दो सूत्र पहले कहे गये हैं; जो कि इस प्रकार हैं:- टोणा, (३-२४) और 'टा-ङस्-डे रदादिदेद्वा दो सूत्र पहले कहे गये हैं; जो इस प्रकार हैं:- टो ण, (३-२) और 'टा ङस् - डे रदादिदेद्वा तु ङसेः (१-२९); इनकी कार्य-विधि इनकी वृत्ति में बतलाये गये विधान के अनुसार ही समझ लेना चाहिये। तृतीया विभक्ति के बहुवचन के रूपों के निर्माण हेतु जो सूत्र - भिसो हि हिँ हिं; (३-७) कहा गया है; उसका कार्यातिदेश इन आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारान्त पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग वाले शब्दों के लिए भी प्राप्त होता है; यह ध्यान में रहे। उदाहरण इस प्रकार हैं:- मालाभि:, गिरिभिः, गुरुभिः, सखीभिः, वधूभिः कृतम्=मालाहि, गिरीहि, गुरुहि, सहीहि, वहूहि कयं = मालाओं से, पहाड़ों से, गुरु-जनों से, सखियों से, वधुओं से किया है। इसी प्रकार से इन शब्दों में 'हिँ, और 'हिं' प्रत्ययों की संप्राप्ति भी तृतीया विभक्ति के बहुवचन के निर्माण हेतु की
है। जैसे कि मालाहिँ, मालाहि, गुरुहिँ, गुरुहिं इत्यादि ।
पञ्चमी विभक्ति के एकवचन के रूपों के निर्माण हेतु जो सूत्र ङसेस् त्तो- दो-दु-हि- हिन्तो-लुकः (२-८) कहा गया है; उसका कार्यातिदेश इन आकारान्त, इकारान्त उकारान्त आदि स्त्रीलिंग वाले शब्दों के लिए भी होता है। उदाहरण इस प्रकार है: - मालायाः, बुद्धया, बुद्धेः, धेन्वाः, धंनोः आगतः-मालाओ, मालाउ, मालाहिन्तो, बुद्धिओ, बुद्धीउ, बुद्धीहिन्तो,
ओ, धेणू, धेहिन्तो आगओ = माला से, गाय से, बुद्धि से आया हुआ है। इस सम्बन्ध में सूत्र - संख्या ३ -१२६ और ३ - १२७ में उल्लिखित नियम का भी ध्यान रखना चाहिये; जैसा कि आगे बतलाया जाने वाला है। तदनुसार 'लुक् प्रत्यय का और हि प्रत्यय का' इन शब्दों के लिये अभाव होता है। सूत्र - संख्या ३ - ३० के अनुसार आकारान्त शब्दों के लिये पञ्चमी विभक्ति में प्राप्तव्य प्रत्यय 'आ' का भी निषेध होता है।
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