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________________ 130 : प्राकृत व्याकरण अनुसार इसका रूप 'मत्तो' बनता है; इसलिये ग्रंथकार वृत्ति में लिखते हैं कि संस्कृत में पंचमी विभक्ति के एकवचन में 'अस्मद्' के प्राप्त रूप 'मत्' को प्राकृत-अंगरूप की अवस्था मानकर 'तो' प्रत्यय लगाकर 'मत्तो' रूप बनाने की भूल नहीं कर देना चाहिये। बल्कि यह ध्यान में रखना चाहिये कि प्राकृत रूप 'मत्तो' की प्राप्ति अंगरूप 'मत्त' से प्राप्त हुई है। ___ 'मत् अथवा मद्' संस्कृत पञ्चमी एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'मइत्तो, ममत्तो, महत्तो और मज्झत्तो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१११ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के स्थान पर पञ्चमी के एकवचन में प्रत्ययों की संयोजना होने पर प्राकृत में उक्त चारों अंग रूपों की क्रम से प्राप्ति एवं ३-५ से प्राप्तांग चारों में पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङसि-अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'तो' आदि प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति होकर उक्त चारों रूप 'मइत्तो, ममत्तो, महत्तो और मज्झत्तो क्रम से सिद्ध हो जाते हैं। 'आगओ' रूप की सिद्धि १-२०९ में की गई है। मत्तः संस्कृत विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप मत्तो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकत-रूप मत्तो सिद्ध हो जाता है।।३-१११।। _ममाम्हो भ्यसि ॥ ३-११२।। अस्मदो भ्यसि परतो मम अम्ह इत्यादेशौ भवतः। भ्यसस्तु यथा प्राप्तम्॥ ममत्तो। अम्हत्तो। ममाहिन्तो। अम्हाहिन्तो। ममासुन्तो। अम्हासुन्तो। ममेसुन्तो। अम्हेसुन्तो। अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद् के प्राकृत रूपान्तर में पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'भ्यस्' के स्थान पर प्राकृत प्राप्तव्य प्रत्यय त्तो, दो, दु हि, हिन्तो और सुन्तो' प्राप्त, होने पर मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से दो अंग रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे अंग रूप इस प्रकार है:- 'मम और अम्ह । इस प्रकार आदेश प्राप्त इन दोनों अंगों में से प्रत्येक अंग में पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्त रूप 'अस्मत्' के प्राकृत रूपान्तर में बारह रूप होते हैं; जो कि क्रम से इस प्रकार हैं: संस्कृत अस्मत् (मम के रूप) ममत्तो, ममाओ, ममाउ, ममाहि, ममाहिन्तो और ममासुन्तो। (अम्ह के रूप)=अम्हन्तो, अम्हाओ, अम्हाउ, अम्हाहि, अम्हाहिन्तो और अम्हासुन्तो। सूत्र-संख्या ३-१५ से उपर्युक्त प्राप्तांग 'मम' और 'अम्ह' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से 'हि, हिन्तो और सुन्तो' प्रत्यय प्राप्त होने पर हुआ करती है; तदनुसार प्रत्येक अंग रूप के तीन-तीन रूप और होते है; जो कि इस प्रकार हैं: मम के रूप ममेहि, ममेहिन्तो और ममेसुन्तो। अम्ह के रूप=अम्हेहि, अम्हेहिन्तो और अम्हेसुन्तो। यों उपर्युक्त बारह रूपों में इन छह रूपों को और जोड़ने से पञ्चमी बहुवचन में संस्कृत रूप 'अस्मत्' के प्राकृत में कुल अठारह रूप होते हैं। ग्रंथकार ने वृत्ति में अस्मत्' के केवल आठ प्राकृत रूप ही लिखे हैं; अतएव इन आठों रूपों की साधनिका निम्न प्रकार से है:___ अस्मत् संस्कृत पञ्चमी बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत आठ रूप इस प्रकार हैं:-ममत्तो, अम्हत्तो, ममाहिन्तो, अम्हाहिन्तो, ममासुन्तो, अम्हासुन्तो, ममेसुन्तो और अम्हेसुन्तो। इनमें सूत्र-संख्या ३-११२ से पंचमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के स्थान पर प्राकृत में दो अंग रूप 'मम और अम्ह' की प्राप्ति; तत्पश्चात् तीसरे रूप से प्रारम्भ करके छटे रूप तक दोनों अंगों में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर सूत्र-संख्या ३-१३ से वैकल्पिक रूप से 'आ' की प्राप्ति एवं सातवें तथा आठवें दोनों अंगों में स्थित अन्त्य स्वर, 'अ' के स्थान पर सूत्र-संख्या ३-१५ से (वैकल्पिक रूप से) 'ए' की प्राप्ति और ३-९ से उपर्युक्त आठों अंग रूपों में पंचमी विभक्ति के बहुवचन में क्रम से 'तो, हिन्तो और सुन्तो प्रत्ययों की प्राप्ति होकर आठों ही रूप-ममत्तो, अम्हत्तो, ममाहिन्तो, अम्हाहिन्तो, ममासुन्तो, अम्हासुन्तो, ममेसुन्तो और अम्हेमुन्तो' सिद्ध हो जाते हैं।।३-११२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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