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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 131
मे मई मम मह महं मज्झ मज्झं अम्ह अम्हं ङसा ।। ३ - ११३ ॥ अस्मदो डसा षष्ठयेकवचनेन सहितस्य एते नवादेशा भवन्ति ।। मे मइ मम मह महं मज्झ मज्झं अम्ह अम्हं धणं ।।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङस्=अस्' के प्राकृत स्थानीय प्रत्यय 'स्स' प्राप्त होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के ही आदेश - प्राप्त संस्कृत रूप 'मम' अथवा 'में' के स्थान पर प्राकृत में षष्ठी एकवचनार्थ में नव रूपों की क्रम से आदेश प्राप्ति हुआ करती है। जो कि इस प्रकार हैं:- मम अथवा मे मे, मइ, मम, मह, महं, मज्झ, मज्झं, अम्ह और अम्हं अर्थात् मेरा । उदाहरण:- मम अथवा मे धनम्-मे मइ-मम-मह- महं- मज्झ - मज्झं- अम्ह अम्हं धणं अर्थात् मेरा धन ।
मम अथवा म संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप नव होते हैं :- मे, मइ, मम, मह, महं, मज्झ, मज्झं अम्ह और अम्हं । इनमें सूत्र - संख्या ३ - ११३ से मूल संस्कृत शब्द 'अस्मद्' के षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राप्त रूप मम अथवा मे के स्थान पर प्राकृत में उपर्युक्त नव ही रूपों की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से ये नव ही रूप 'मे, मइ, मम, मह, महं, मज्झ, मज्झं, अम्ह और अम्ह' सिद्ध हो जाते हैं।
'धणं' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५० में की गई है । । ३ - ११३ । ।
णो मज्झ अम्ह अम्हं अम्हे अम्हो अम्हाण ममाण महाण मज्झाण आमा।। ३-११४।।
अस्मद् आमा सहितस्य एते एकादशादेशा भवन्ति ।। णे णो मज्झ अम्ह अम्हं अम्हे अम्हो अम्हाण ममाण महाण मज्झाण धणं ।। क्त्वा - स्यादेर्ण-स्वोर्वा (१-२७) इत्यनुस्वारे अम्हाणं । ममाणं । महाणं । मज्झाणं । एवं च पञ्चदश रूपाणि ॥
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'अस्माकम् अथवा नः' के स्थान पर प्राकृत में अर्थात् प्राकृत मूल शब्द और प्राप्त प्रत्यय 'ण' दोनों के ही स्थान पर क्रम से ग्यारह रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे ग्यारह ही रूप इस प्रकार हैं:- अस्माकम् अथवा नःणे, णो, मज्झ, अम्ह, अम्हं, अम्हे, अम्हो, अम्हाण, ममाण, महाण, और मज्झाण। उदाहरण इस प्रकार है:- अस्माकम् अथवा नः धनम् = णे णो- मज्झ - अम्ह-अम्हं-अम्हे-अम्होअम्हाण-ममाण-महाण-मज्झाण धणं अर्थात् हम सभी का (अथवा हमारा ) धन ( है ) । सूत्र - संख्या १ - २७ में ऐसा विधान प्रदर्शित किया गया है कि-षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्राकृत प्रत्यय 'ण' के ऊपर अर्थात् अन्त में वैकल्पिक रूप से अनुस्वार की प्राप्ति हुआ करती है; तदनुसार उपर्युक्त ग्यारह रूपों में से आठवें रूप से प्रारम्भ करके ग्यारहवें रूप तक अर्थात् इन चार रूपों के अन्त में स्थित एवं षष्ठी विभक्ति के बहुवचन के अर्थ में संभावित प्रत्यय 'ण' पर वैकल्पिक रूप से अनुस्वार की प्राप्ति होती है; जो कि इस प्रकार है:- अम्हाणं, ममाणं, महाणं और मज्झाणं । यों अस्माकम् अथवा नः' के प्राकृत रूपान्तर में उपर्युक्त ग्यारह रूपों में इन चार रूपों की और संयोजना करने पर प्राकृत में षष्ठी-विभक्ति के बहुवचन में कुल पन्द्रह रूप होते हैं।
‘अस्माकम' अथवा ‘नः' संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक ) सर्वनाम रूप हैं। इसके प्राकृत रूप पन्द्रह होते हैं। णे णो, मज्झ, अम्ह, अम्हं, अम्हे, अम्हो, अम्हमाण, ममाण, महाण, मज्झाण, अम्हाणं, ममाण, महा और मज्झाणं। इनमें से प्रथम ग्यारह रूपों में सूत्र - संख्या ३ - ११४ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत मूल शब्द 'अस्मद्' में प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' के योग से प्राप्त रूप 'अस्माकम् अथवा नः' के स्थान पर उक्त प्रथम ग्यारह रूपों की आदेश प्राप्ति होकर 'णे' णो, मज्झ, अम्ह, अम्हं, अम्हे, अम्हो, अम्हाण, ममाण, महाण और मज्झाण इस प्रकार प्रथम ग्यारह रूप सिद्ध हो जाते हैं।
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