SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 98 : प्राकृत व्याकरण अर्थात् उसके द्वारा कहा गया है। तस्मात् तेन कर-तल-स्थित-तो णेण कर-यल-टुिआ अर्थात् उस कारण से उसके द्वारा हथेली पर रखी हुई (वाक्य अधूरा है)। भणितम् च तया भणिअंच णाए अर्थात् उसके द्वारा-(उस स्त्री के द्वारा)- कहा गया है। तैः कृतम्=णेहिं, कयं अर्थात् उसके द्वारा किया गया है। ताभिः कृतम=णाहिं कयं अर्थात् उनके द्वारा किया गया है। ताभिःकृतम्=णाहिं कयं अर्थात् उन (स्त्रियों) के द्वारा किया गया है। इन उदाहरणों में यह समझाया गया है कि पुल्लिंग अवस्था में अथवा स्त्रीलिंग अवस्था में (भी) अनेक विभक्तियों में तथा एकवचन में अथवा बहुवचन में (भी) संस्कृत सर्वनाम 'वद्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' अंग रूप (अथवा स्त्रीलिंग में 'णा' अंग रूप) आदेश प्राप्ति कभी-कभी पाई जाती है यह उपलब्धि प्रांसगिक हैं। और ऐसी स्थित को 'वृत्ति' में लक्ष्यानुसारेण' पद से अभिव्यक्त किया गया है। तम् संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूपान्तर (कभी-कभी) णं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-७० से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' अंग की आदेश प्राप्ति; ३-५ द्वितीया विभक्ति . के एकवचन में पुल्लिग में संस्कृत के समान ही प्राकृत में भी 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर णं रूप सिद्ध हो जाता है। 'पेच्छ' (क्रियापद) रूप की सिद्ध सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है। शोचति संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप सोअइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; १-१७७ से 'च' का लोप और ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की आदेश-प्राप्ति होकर 'सोअइ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'अ' (अव्यय) की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७७ में की गई है। 'ण' (सर्वनाम) रूप की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है। रघुपतिः संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप रहुवई होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'घ्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; १-२३१ से 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त्' का लोप और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में इकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'स्' के स्थान पर प्राकृत में अंग के अन्त में स्थित हस्व स्वर 'इ'को दीर्घ 'इ' की प्राप्ति होकर रहुवई रूप सिद्ध हो जाता है। हस्तोनामित-मुखी संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप हत्थन्नामिअ-मुहि होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-४५ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्त् के स्थान पर 'थ्' की प्राप्ति; २=८७ से प्राप्त 'थ्' को द्वित्व 'थ्थ' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व'थ्' के स्थान पर 'त्' की प्राप्ति; १-५४ से दीर्घ स्वर 'ओ' के स्थान पर 'आगे संयुक्त व्यञ्जन 'त्रा' का सद्भाव होने से ह्रस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'त्' का लोप और १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप हत्थुन्नामिअ-मुही सिद्ध हो जाता है। ताम् संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त स्त्रीलिंग के सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'णं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-७० से मूल संस्कृत सर्वनाम 'तद्' के स्थान पर प्राकृत में स्त्रीलिंग में ‘णा' अंग रूप की आदेश प्राप्ति; ३-३६ से प्राप्तांग णा' में स्थित दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर आगे द्वितीया एकवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से हस्व 'अ' की प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में प्राप्तांग 'ण' में संस्कृत प्रत्यय 'म्' के समान ही प्राकृत में भी 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकृत स्त्रीलिंग रूप 'णं' सिद्ध हो जाता है। त्रिजटा संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप तिअडा होता है। इसमें सूत्र-संख्या -२-७९ से 'त्रि' में स्थित 'र' का लोप; १-१७७ से 'ज्' का लोप; १-१९५ से 'ट्' के स्थान पर -'ड्' की प्राप्ति और १-११ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि-स्' का प्राकृत में लोप होकर तिअडा रूप सिद्ध हो जाता है। तेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप णेण होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-७० से मूल संस्कृत सर्वनाम 'तद्' के स्थान पर 'ण' अंग रूप की आदेश प्राप्ति; ३-१४ से प्राप्तांग ‘ण' में स्थित अन्त्य For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy