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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 97 पर 'आगे तृतीया विभक्ति एकवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से पूर्वोक्त रीति से प्राप्तांग 'इमे में ततीया विभक्ति के एकवचन में पल्लिंग में संस्कत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर 'ण' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर द्वितीय रूप इमेण भी सिद्ध हो जाता है। एतेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप एदिणा और एदेण होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'एतद्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'द्' का लोप; ४-२६० से 'त' के स्थान पर 'द' की प्राप्ति; और ३-६९ से प्रथम रूप में 'एद' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकत में वैकल्पिक रूप से 'डिणा-इणा' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप एदिणा सिद्ध हो जाता है। ___ द्वितीय रूप-(एतेन=) एदेण में उपर्युक्त रीति से प्राप्तांग 'एद' में सूत्र-संख्या ३-१४ से अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया विभक्ति एकवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से 'एदे' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर 'ण' प्रत्यय की (आदेश) प्राप्ति होकर द्वितीय रूप एदेण सिद्ध हो जाता है। ___ केन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप किणा ओर केण होते हैं इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकृत में 'क' अंग की आदेश प्राप्ति; और ३-६९ से प्राप्तांग 'क' में तृतीया विभक्ति के एकवचन पुल्लिग में संस्कृत प्रत्यय 'टा के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डिणा-इणा प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप किणा सिद्ध हो जाता है। 'केण' की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४१ में की गई है। येन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप जिणा और जेण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'यद्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'द् का लोप; १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति और ३-६९ से प्राप्तांग 'ज' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में पुल्लिग में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डिणा इणा' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप जिणा सिद्ध हो जाता है। जेण की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३६ में की गई है। तेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप तिणा और तेण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'द्' का लोप; और ३-६९ से प्राप्तांग 'त' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डिणा-इणा' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'तिणा' सिद्ध हो जाता है। तेण की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३३ में की गई है। ३-६९ ।। तदो णः स्यादौ क्वचित्।।३-७०॥ तदः स्थाने स्यादौ परे 'ण' आदेशो भवति क्वचित् लक्ष्यानुसारेण। णं पेच्छ। तं पश्येत्यर्थः। सोअइ अणं रहुवई। तमित्यर्थः।। स्त्रियामपि। हत्थुन्नामिअ-मुही णं तिअडा। तां त्रिजटेत्यर्थः।। णेण भणि। तेन भणितमित्यर्थः।। तो णेण कर-यल-ट्ठिआ। तेनेत्यर्थः।। भणिअंच णाए। तयेत्यर्थः।। णेहिं कयं। तैः कृतमित्यर्थः।। णाहिं कयं। ताभिः कृतमित्यर्थः॥ ___ अर्थः- कभी-कभी लक्ष्य के अनुसार से अर्थात् संकेतित पदार्थ के प्रति दृष्टिकोण विशेष से संस्कृत सर्वनाम 'तद्' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में विभक्ति-बोधक प्रत्ययों के परे रहने पर 'ण' अंग रूप आदेश की प्राप्ति (वैकल्पिक रूप. से) हुआ करती है। जैसे:- तम् पश्य=णं पेच्छ अर्थात् उसको देखो। शोचति च तम् रघुपतिः-सोअइ अ णं रघुवई अर्थात् रघुपति उसकी चिन्ता करते हैं-शोक करते हैं। स्त्रीलिंग में भी 'तद्' सर्वनाम के स्थान पर 'ण' अथवा 'णा' अंग रूप आदेश को प्राप्ति पाई जाती हैं जैसे हस्तोन्नामित-मुखी ताम् त्रिजटा-हत्थुन्नामिअ-मुही णं तिअडा अर्थात् हाथ द्वारा ऊंचा कर रखा मुँह को जिसने ऐसी त्रिजटा नामक राक्षसिनी ने उस (स्त्री) को (वाक्य अधूरा है)। तेन भणितम्=णेण भणिअं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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