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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 87 ३–५९ से प्राप्तांग ‘एअ' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'प्रिंस' प्रत्यय की प्राप्ति होकर एअस्सि रूप सिद्ध हो जाता है । ३ - ६० ।।
आमो डेसिं । । ३ - ६१॥
सर्वादेरकारान्तात्परस्यामो डेसिमित्यादेशो वा भवति । सव्वेसिं। अन्नेसिं । अवरेसिं । इमेसिं । एएसिं। जेसिं । तेसिं। सिं। पक्षे। सव्वाण । अन्नाण। अवराण । इमाण। एआण। जाण । ताण । काण।। बाहुलकात् स्त्रियामपि । सर्वासाम् । सव्वेसिं।। एवम् अन्नेसिं तेसिं ॥
- प्राप्त प्रत्यय
अर्थः- सर्व (=सव्व) आदि अकारान्त सर्वनामों के प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'डेसिं' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। प्राकृत में आदेश-प्र ‘ङेसिं' में स्थिति 'ड्' इत्संज्ञक है; तदनुसार अंग रूप प्राकृत सर्वनाम शब्दों में स्थित अन्त्य 'अ' स्वर की इत्संज्ञा होने से इस अन्त्य 'अ' लोप हो जाता है एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त सर्वनाम रूप अंग में उक्त षष्ठी बहुवचन-बोधक प्रत्यय' डेसिं=एसिं' की संयोजना होती है। जैसे:- सर्वेषाम् = सव्वेसिं अथवा पक्षान्तर में सव्वाण । अन्येषाम्-अन्नेसिं अथवा पक्षान्तर में अन्नाण। अपरेषाम् = अवरेपिं अथवा पक्षान्तर में अवराण । एषाम् - इमेसि अथवा पक्षान्तर में इमाण । एतेषाम् = एएसिं अथवा पक्षान्तर में एआण । येषाम् = जेसिं अथवा पक्षान्तर में जाण । तेषाम् = तेसिं अथवा पक्षान्तर में ताण । केषाम् = केसिं अथवा पक्षान्तर में काण। 'बहुलं' सूत्र के अधिकार से अकारान्त सर्वनामों के अतिरिक्त आकारान्त स्त्रीलिंग वाले सर्वनामों
षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर (प्राकृत में) 'डेसि = एसिं' प्रत्यय की प्राप्ति देखी जाती है। जैसे:- सर्वासाम् = सव्वेसिं अर्थात् सभी (स्त्रियों) के । अन्यासाम् = अन्नेसिं अर्थात अन्य (स्त्रियों) के । तासाम्-तेसिं अर्थात् उन (स्त्रियों) के। इस प्रकार 'बहुलं' सूत्र के आदेश से आकारान्त स्त्रीलिंग वाले सर्वनामों में भी 'एसिं' प्रत्यय की प्राप्ति हो सकती है।
सर्वेषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप सव्वेसिं और सव्वाण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या २- ७९ से मूल संस्कृत शब्द 'सर्व' में स्थित 'र' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'र्' के पश्चात् रहे हुए 'व' को द्वित्व 'व्व' की प्राप्ति और ३-६१ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डेसिं= एसिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप सव्वेसिं सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप- (सर्वेषाम् =) सव्वाण में ' सव्व' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् प्राप्तांग 'सव्व' में सूत्र - संख्या ३ - १२ से अन्त्य 'अ'को आगे षष्ठी बहुवचन - बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'आ' की प्राप्ति और ३-६ षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर (प्राकृत में) 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप सव्वाण भी सिद्ध हो जाता है।
अन्येषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप अन्नेसिं और अन्नाण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या २- ७८ से मूल संस्कृत शब्द 'अन्य' में स्थित 'य' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'य्'के पश्चात् रहे हुए 'न' को द्वित्व 'न्न' की प्राप्ति और ३ - ६१ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्'के स्थान पर प्राकृत वैकल्पिक रूप से 'डेसिं= एसिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप अन्नेसिं सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप- (अन्येषाम्) अन्नाण में 'अन्न' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् प्राप्तांग 'अन्न' में सूत्र - संख्या ३-१२ से अन्त्य 'अ' को 'आगे' षष्ठी बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से 'आ' की प्राप्ति और ३-६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप अन्नाण भी सिद्ध हो जाता है।
अपरेषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप अवरेसिं और अवराण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या १-२३१ से मूल संस्कृत शब्द 'अपर' में स्थित 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति और
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