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86 : प्राकृत व्याकरण
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तस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप तहिं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-११ मूल संस्कृत शब्द 'तत्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'त्' का लोप और ३-६० से प्राप्तांग 'त' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तहिं रूप सिद्ध हो जाता है।
कस्याम् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप काहिं होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति; ३ - ३१ एवं २-४ से प्राप्तांग 'क' में स्त्रीलिंग-प्रबोधक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३ - ६० से प्राप्तांग 'का' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर काहिं रूप सिद्ध हो जाता है।
यस्याम् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप जाहिं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - २४५ से मूल संस्कृत शब्द 'यत' में स्थित 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; १ - ११ से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'त्' का लोप; ३-३१ एवं २-४ से प्राप्तांग 'ज' में स्त्रीलिंग-प्रबोधक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-६० से प्राप्तांग 'जा' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि=इ' स्थान पर प्राकृत में हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जाहिं रूप सिद्ध हो जाता है।
तस्याम् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप ताहिं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - ११ से मूल संस्कृत शब्द 'तत् में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'तू' का लोप; ३ - ३१ एवं २-४ से प्राप्तांग 'त' में स्त्रीलिंग-प्रबोधक ‘आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३ - ६० से प्राप्तांक 'ता' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर ताहिं रूप सिद्ध हो जाता है।
'सव्वस्सि' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-५९ में की गई है।
'सव्वम्मि' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५९ में की गई है।
'सव्वत्थ' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५९ में की गई है।
कस्याम् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम स्त्रीलिंग का रूप है। इसके प्राकृत रूप काए और कीए होते हैं। इनमें उपर्युक्त विधि-अनुसार प्राप्तांग 'का' में सूत्र- संख्या ३-३१ से और ३-३२ से स्त्रीलिंग-प्रबोधक 'आ' प्रत्यय के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ङी=ई प्रत्यय की प्राप्ति और ३- २९ से क्रम से प्राप्तांग 'का' और 'की' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय ‘ङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप काए और कीए सिद्ध हो जाते हैं।
यस्याम् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप जाए और जीए होते हैं। इनमें उपर्युक्त विधि अनुसार प्राप्तांग 'जा' में सूत्र - संख्या ३ - ३१ से एवं ३-३२ से स्त्रीलिंग - बोधक 'आ' प्रत्यय के स्थान पर वैकल्पिक रूप से ‘ङी=ई' प्रत्यय की प्राप्ति और ३ - २९ से क्रम से प्राप्तांग 'जा' और 'जी' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि = ई' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप जाए और जीए सिद्ध हो जाते हैं।
तस्याम् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप ताए और तीए होते हैं। इनमें उपर्युक्त विधि-अनुसार प्राप्तांग 'ता' में सूत्र - संख्या ३ - ३१ से एवं ३-३२ से स्त्रीलिंग - प्रबोधक 'आ' प्रत्यय के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ङी =ई' प्रत्यय की प्राप्ति और ३- २९ से क्रम से प्राप्तांग 'ता' और 'ती' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि = इ' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप ताए और तीए सिद्ध हो जाते हैं।
अस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप इमस्सि होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३-७२ से संस्कृत सर्वनाम रूप 'इदम्' के स्थान पर 'इम' आदेश - प्राप्ति और ३-५९ से प्राप्तांग 'इम' में विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'स्सिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर इमस्सि रूप सिद्ध हो जाता है।
एतस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप एअस्सि होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - ११ से मूल संस्कृत- सर्वनाम 'एतद्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'द्' का लोप; १-१७७ से 'त्' का लोप और
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