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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 85 अर्थः- इदम् इम और एतत् एअ सर्वनामों के अतिरिक्त अन्य सर्व-सव्व आदि अकारान्त सर्वनामों के प्राकृत रूपान्तर में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इ के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'हिं आदेश की प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:- सवस्मिन् सव्वहिं। अन्यस्मिन् अन्नहि। कस्मिन् कहिं। यस्मिन् जहिं और तस्मिन्=तहिं। 'बहुलम् सूत्र के अधिकार से ही 'किम्"यत्' और 'तत्' सर्वनामों के स्त्रीलिंग रूपों में भी सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इके स्थान पर प्राकृत में 'हिं प्रत्यय की प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:- कस्याम काहिं यस्याम जाहि तस्याम ताहिं। 'बहलम' सत्र के अधिकार से ही 'किम' 'यत' और 'तत' सर्वनामों के स्त्रीलिंगत्व के निर्माण में सत्र-संख्या ३-३३ के विधान से प्राप्त स्त्रीलिंग बोधक प्रत्यय 'डी-ई की प्राप्ति उपर्युक्त 'काहिं, जाहिं, जाहिं 'उदाहरणों में नहीं हुई है। अर्थात् प्राप्त रूप-'की, जी, नी, के स्थान पर 'का, जा, ता 'रूपों की प्राप्ति 'बहुलम्' सूत्र के अधिकार से जानना; ऐसा तात्पर्य ग्रंथकर्ता का है। उपर्युक्त सप्तमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्त प्रत्यय 'हिं' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप में बतलाई गई है; तदनुसार जहां पर 'हिं प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होगी वहां पर सूत्र-संख्या ३-५९ के विधानानुसार 'स्सिं, म्मि, त्थ' प्रत्यय की प्राप्ति होगी। जैसे:- सर्वस्मिन् सव्वस्सिं, सव्वम्मि और सव्वत्थ; यों अन्य उदाहरणों की भी कल्पना कर लेना चाहिये। स्त्रीलिंग वाले सर्वनामों में भी जहां सप्तमी विभक्ति के एकवचन में 'हिं' प्रत्यय की वैकल्पिक पक्ष होने से प्राप्ति नहीं होगी; वहां पर सूत्र-संख्या ३-२९ के अनुसार 'अ, (आ), इ और 'ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होती है। जैसे:-- कस्याम्-काए अथवा कीए; यस्याम् जाए अथवा जीए और तस्याम्=ताए अथवा तीए इत्यादि। प्रश्न:- इदम्-इम और एतत् एअ सर्वनामों को 'अकारान्त होने पर भी' उपर्युक्त 'हिं' प्रत्यय के विधान से प्रथक् क्यों रखा गया है? उत्तरः- चूंकि प्राकृत भाषा के परम्परात्मक प्रवाह मे उपर्युक्त 'इम' और 'एअ सर्वनामों में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इ' के स्थान पर 'हिं' (आदेश)-प्राप्ति का अभाव दृष्टिगोचर होता है; अतएव अभावात्मक स्थित में 'हिं' प्रत्यय का निषेध किया जाना न्यायोचित और व्याकरणीय विधान के अनुकूल ही है। जैसे:- अस्मिन् इमस्सि और एतस्मिन् एअस्सि इत्यादि। यों सप्तमी विभक्ति के एकवचन में सर्वनामों में प्राप्तव्य प्रत्यय 'हिं' की स्थित को समझ लेना चाहिये, सर्वस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप सव्वहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से'' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'व' को द्वित्व'व्व' की प्राप्ति और ३-६० से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सव्वहिं रूप सिद्ध हो जाता है। ___अन्यस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप अन्नहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७८ से 'य' का लोप; होकर २-८९ से लोप हुए। 'य' के पश्चात् शेष रहे हुए 'न' को द्वित्व 'न्न' की प्राप्ति और ३-६० से प्राप्तांग 'अन्न' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'डि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं प्रत्यय की प्राप्ति होकर अन्नहिं रूप सिद्ध हो जाता है। कस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत-रूप कहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम् के स्थान पर 'क' अंग की प्राप्ति और ३-६० से प्राप्तांग 'क' में सप्तमी विभक्ति के एकचवन में संस्कृत प्रातव्य प्रत्यय 'ङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कहिं रूप सिद्ध हो जाता है। ___ यस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप जहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२४५ से मूल संस्कृत शब्द 'यत्' में स्थित 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य व्यञ्जन 'त्' का लोप और ३-६० से प्राप्तांग 'ज' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इ' के स्थान पर प्राकृत में हिं' प्रत्यय की (आदेश) प्राप्ति होकर जहिं रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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