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60 : प्राकृत व्याकरण
से 'ष' का 'स'; १-५० से 'मय' में 'म' के 'अ' के स्थान पर 'अइ' आदेश की विकल्प से प्राप्ति; १-१७७ से 'य' का लोप; और ३-२ से पुल्लिंग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से 'विसमइओ' और 'विसमओरूप सिद्ध हो जाते हैं।।१-५०।।
ई हरे वा ॥ १-५१ ॥ हर शब्दे आदेरत ईर्वा भवति। हीरो हरो।। अर्थः-हर शब्द में आदि के 'अ' की 'ई' विकल्प से होती है। जैसे-हरः-हीरो और हरो।।
'हरः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'हीरो' और 'हरो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-५१ से आदि 'अ' की विकल्प से 'ई'; और ३-२ से पुल्लिंग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर क्रम से 'हीरो' और 'हरो रूप सिद्ध हो जाते हैं।।१-५१॥
ध्वनि-विष्वचोरुः ।।१-५२ ।। अनयोरादेरस्य उत्वं भवति।। झुणी। वीसुं। कथं सुणओ। शुनक इति प्रकृत्यन्तरस्य।। श्वन् शब्दस्य तु साणो इति प्रयोगौ भवतः।। __ अर्थः-ध्वनि और विष्वक् शब्दों के आदि 'अ' का 'उ' होता है। जैसे-ध्वनिः-झुणी। विष्वक्-वीसुं।। 'सुणओ' रूप कैसे हुआ? उत्तर-इसका मूल शब्द भिन्न है; और वह शुनक है। इससे 'सुणओ बनता है और 'श्वन्' शब्द के प्राकृत रूप 'सा' और 'साणो' ऐसे दो रूप होते हैं। __ 'ध्वनिः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'झुणी' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१५ से 'ध्व' का 'झ'; १-५२ से आदि 'अ' का 'उ'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-१९ से स्त्रीलिंग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य स्वर हस्व 'इ' की दीर्घ 'ई' होकर 'झुणी' रूप सिद्ध हो जाता है।
'वीसु' शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १-२४ में की गई है।
'शुनकः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सुणआ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स' १-२२८ से 'न' का 'ण'; १-१७७ से 'क'का लोप; ३-२ से पुल्लिग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ होकर 'सणओ रूप सिद्ध हो जाता है।
'श्वन्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सा' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'व्' का लोप; १-२६० से 'श्' का 'स्'; १-११ से अन्त्य व्यञ्जन 'न्' का लोप और ३-४९ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति होकर 'सा' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'श्वन्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'साणो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'व' का लोप; १-२६० से 'श्' का 'स्'; ३-५६ से 'न्' के स्थान पर 'आण' आदेश की प्राप्ति; १-४ से 'स' के 'अ' के साथ में आण' के 'आ' की संधि और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ होकर 'साणो' रूप सिद्ध हो जाता है।॥१-५२॥
वन्द्र-खण्डिते णा वा ।। १-५३ ।। अनयोरादेरस्य णकारेण सहितस्य उत्वं वा भवति।। वुन्द्रं वन्द्र। खुडिओ। खण्डिओ।
अर्थः-वन्द्र शब्द में आदि 'अ' का विकल्प से 'उ' होता है। सूत्रानुसार यहाँ पर 'ण' तो दिखलाई नहीं देता है परन्तु प्राकृत व्याकरण की हस्तलिखित पाटन की प्रति में वन्द्र' के स्थान पर चण्ड' लिखा हुआ हैं। अतः ‘चण्ड' और खण्डित में 'ण' के साथ आदि 'अ' का 'उ' विकल्प से होता है। जैसे वन्द्रम् का वुन्द्रं और वन्द्रं और चन्द्र। खण्डितः का खुडिओ और खण्डिओ।
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