________________
46 : प्राकृत व्याकरण
___ 'अञ्जलिः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप (एसा) 'अञ्जली' और (एस) 'अञ्जली' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-३५ से अञ्जली विकल्प से स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों लिंगों में प्रयुक्त किये जाने का विधान है। अतः ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में और स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर का दीर्घ स्वर हो जाता है; यों (एसा) 'अञ्जली' और (एस) 'अञ्जली' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
"पृष्ठमः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पिट्ठी' और 'पिटुं होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-१२९ से 'ऋ' की 'इ'; २-३४ से 'ष्ठ' का 'ठ'; २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठ्ठ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ्' का 'ट'; १-४६ से 'ठ्ठ' में स्थित 'अ' की 'इ'; १-३५ से स्त्रीलिंग में होने पर और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य स्वर 'इ' की दीर्घ 'ई होकर 'पिट्ठी' रूप सिद्ध हो जाता है। १-३५ से विकल्प से नपुंसक होने की दशा में ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति; १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'पिट्ठ रूप सिद्ध हो जाता है।
'अच्छी'-शब्द सूत्र संख्या १-३३ में सिद्ध किया जा चुका है।
'अक्षिम् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'अच्छि होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७ से 'क्ष' का 'छ'; २-८९ से द्वित्व'छ्छ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'छ' का 'च'; १-३५ से विकल्प से स्त्रीलिंग नहीं होकर नपुंसकलिंग होने पर; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'अच्छि' रूप सिद्ध हो जाता है।
'प्रश्नः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पण्हा' और 'पण्हो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-७५ से 'श्न' का 'ह' आदेश; १-३५ से स्त्रीलिंग विकल्प से होने पर प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर सिद्ध हेम व्याकरण के २-४-१८ के सूत्रानुसार 'आ' प्रत्यय प्राप्त होकर 'पण्हा' रूप सिद्ध हो जाता है। एवं लिंग में वैकल्पिक विधान होने से पुल्लिंग में ३-२ से प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'पण्हो' रूप सिद्ध हो जाता है। __'चौर्यम्' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'चोरिआ' और 'चोरिअं होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-१५९ से औ' का 'ओ'; २-१०७ से 'इ' का आगम होकर 'र' में मिलने पर 'रि' हुआ। १-१७० से 'य' का लोप; सिद्ध हेम व्याकरण के २-४-१८ से स्त्रीलिंग वाचक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य 'म्' का लोप होकर 'चोरिआ रूप सिद्ध हो जाता है। दूसरे रूप में सूत्र संख्या १-३५ में जहाँ स्त्रीलिंग नहीं गिना जायगा; अर्थात नपुंसकलिंग में ३-२५ से प्रथमा एकवचन में नपुंसकलिंग का 'म्' प्रत्यय; १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर वहां 'चोरिअं रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'कुक्षि' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'कुच्छी है। इसमें सूत्र संख्या २-१७ से 'क्ष्' का 'छ्'; २-८९ से प्राप्त 'छ' का द्वित्व'छ्छ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'छ्' का 'च'; १-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण; ३-१९ से प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई होकर कुच्छी' रूप सिद्ध हो जाता है। - 'बलि' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'बली' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण; ३-१९ से प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई' होकर 'बली' रूप सिद्ध हो जाता है।
'निधि' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'निही होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'ध' का 'ह'; १-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण; ३-१९ से प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व 'इ' का 'ई' होकर 'निही रूप सिद्ध हो जाता है। __ "विधि संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'विही होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'ध' का 'ह'; १-३५ से
स्त्रीलिंग का निर्धारण; ३-१९ से प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व 'इ' का 'ई' होकर 'विही रूप सिद्ध • हो जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org