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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 45
'कररुहः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'कररुह' और 'कररुहो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-३४ से विकल्प रूप से नपुंसकत्व की प्राप्ति होने से ३-२५ प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'कररूह' रूप सिद्ध हो जाता है। जब पुल्लिगत्व होता है; तब ३-२ से प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्राप्त होकर 'कररुहो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'वृक्षाः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'रुक्खाई' और 'रुक्खा ' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या २-१२७ से वृक्ष का आदेश 'रूक्ख' हो जाता है; १-३४ से विकल्प रूप से नपुंसकत्व की प्राप्ति ३-२६ से प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन में 'जस्-शस्' प्रत्ययों के स्थान पर 'ई का आदेश सहित अन्त्य स्वर को दीर्घता प्राप्त होकर याने 'ख' का 'खा' होकर 'रुक्खाइं रूप सिद्ध हो जाता है। जब पुल्लिंगत्व होता है; तब ३-४ से प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन के प्रत्यय 'जस्-शस्' की प्राप्ति और इनका लोप; ३-१२ से अन्त्य स्वर की दीर्घता होकर 'रुक्खा ' रूप सिद्ध हो जाता है।१-३४।।
वेमाजल्याद्याः स्त्रियाम् ॥ १-३५ ।। इमान्ता अञ्जल्यादयश्च शब्दाः स्त्रियां वा प्रयोक्तव्याः।। एसागरिमा एस गरिमा। एसा महिमा एस महिमा। एसा निल्लज्जिमा एस निल्लज्जिमा। एसा धुत्तिमा एस धुत्तिमा।। अञ्जल्यादि। एसा अञ्जली एस अञ्जली। पिट्ठी पिटुं| पृष्ठमित्वे कृते स्त्रियामेवेत्यन्ये॥ अच्छी अच्छि। पण्हा पण्हो। चोरिआ चोरिओं एवं कुच्छी। बली। निही। बिही। रस्सी गण्ठी। इत्यञ्जल्यादयः।। गड्डा गड्डो इति तु संस्कृतवदेव सिद्धम्। इमेति तन्त्रेण त्वादेशस्य डिमाइत्यस्य पृथ्वादीम्नश्चसंग्रहः। त्वादेशस्य स्त्रीत्वमेवेच्छन्त्येके। अर्थः-जिन शब्दों के अंत में 'इमा' है; वे शब्द और अञ्जली आदि शब्द प्राकृत में विकल्प रूप से स्त्रीलिंग में
य जाने चाहिये। जैसे-'एसा गरिमा एस गरिमा से लगाकर 'एसा धुत्तिया-एस धुत्तिया' तक जानना। अंजली आदि शब्द भी विकल्प से स्त्रीलिंग में होते हैं। जैसे-एसा अज्जली एस अज्जली। 'पिट्ठी पिटुंगे। लेकिन कोई कोई 'पृष्ठम्' के रूप पिटुं में 'इत्व' करने पर इस शब्द को स्त्रीलिंग में ही मानते हैं। इसी प्रकार अच्छी से गण्ठी तक 'अंजल्यादय' के कथनानुसार विकल्प से इन शब्दों को स्त्रीलिंग में जानना। गड्डा और गड्डो शब्दों की लिंग सिद्धि संस्कृत के समान ही जान लेना। 'इमा' तन्त्र से युक्त इमान्त शब्द और 'त्व' प्रत्यय के आदेश में प्राप्त 'इमा' अन्त वाले शब्द; यों दोनों ही प्रकार के 'इमान्त' शब्द यहां पर विकल्प रूप से स्त्रीलिंग में माने गये हैं। जैसे-पृथु+इमा= प्रथिमा आदि शब्दों को यहां पर इस सूत्र की विधि अनुसार जानना। अर्थात् इन्हें भी विकल्प से स्त्रीलिंग में जानना। किन्हीं किन्हीं का मत ऐसा है कि 'त्व' प्रत्यय के स्थान पर आदेश रूप से प्राप्त होने वाले 'डिमा' के 'इमान्त' वाले शब्द नित्य स्त्रीलिंग में ही प्रयुक्त किये जाँय।।
'एसा' शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १-३३ में की गई है।
'गरिमा' संस्कृत रूप है। इसका मूल शब्द 'गरिमन्' है। इसमें सूत्र संख्या १-१५ से 'न्' का लोप होकर 'आ' होता है। यों 'गरिमा' रूप सिद्ध हो जाता है।
'एस' शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १-३१ में की गई है।
'महिमा' संस्कृत रूप है। इसका मूल शब्द 'महिमन्' है। इसमें सूत्र संख्या १-१५ से 'न्' का लोप होकर 'आ' होता है यों 'महिमा' रूप सिद्ध हो जाता है।
"निर्लज्जत्वम्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'निल्लज्जिमा' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'ल' का द्वित्व 'ल्ल'; २-१५४ से त्वम् के स्थान पर 'डिमा' अर्थात 'इमा' का आदेश १-१० से 'ज' में स्थित 'अ' का लोप होकर 'ज' में 'इमा' मिलकर 'निल्लज्जिमा' रूप सिद्ध हो जाता है।
'धूर्तत्वम्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'धुत्तिमा' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'त' का द्वित्व 'त्त'; १-८४ से 'धू' के दीर्घ ऊ का हस्व उ; २-१५४ से त्वम्' के स्थान पर 'डिमा' अर्थात 'इमा' का आदेश; १-१० से 'त' में स्थित 'अ' का लोप होकर 'त्' में 'इमा' मिलकर 'धुत्तिमा' रूप सिद्ध हो जाता है।
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