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________________ 42: प्राकृत व्याकरण 'अ'; ४ - २२५ से अन्त्य व्यञ्जन 'त्त' के स्थान पर 'च्च'; यहां पर प्रेरक अर्थ होने से 'इत' के स्थान पर सूत्र संख्या ३- १५२ से 'आवि' प्रत्यय की प्राप्ति; १ - १० से 'च्च' में स्थित 'अ' का लोप; १-१७७ से द्वितीय 'त्' का लोप; ३ - १३० से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति; ३ - २६ से 'जस्' प्रत्यय के स्थान पर 'हूँ' का आदेश; तथा पूर्व के स्वर 'अ' को दीर्घता प्राप्त होकर 'नच्चाविआइँ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'तेन' संस्कृत सर्वनाम है; इसका प्राकृत रूप तेण होता है। इसमें सूत्र संख्या १- ११ से मूल शब्द 'तद्' के 'द्' का लोप; ३ - ६ से तृतीया एकवचन में 'ण' की प्राप्ति; ३ -१४ से 'त' में स्थित 'अ' का 'ए' होकर 'तेण' रूप सिद्ध हो जाता है। 'अस्माकम् ' संस्कृत सर्वनाम है। इसका प्राकृत रूप 'अम्ह' होता है। इसमें सूत्र संख्या ३ - ११४ से मूल शब्द अस्मद् को षष्ठी बहुवचन के 'आम्' प्रत्यय के साथ अम्ह आदेश होता है। यों ' अम्ह' रूप सिद्ध हो जाता है। वाक्य 'तेण अम्ह' में 'ण' में स्थित 'अ' के आगे 'अ' आने से सूत्र संख्या १-१० से 'ण' के 'अ' का लोप होकर संधि हो जाने पर 'ते म्ह' सिद्ध हो जाता है। 'अक्षीणि' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'अच्छीई' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- १७ से 'क्ष' का 'छ'; २-८९ से प्राप्त 'छ' का द्वित्व 'छ्छ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'छ्' का 'च्'; ३ - २६ से द्वितीया बहुवचन में 'शस्' प्रत्यय के स्थान पर 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति और इसी सूत्र में अन्त्य स्वर को दीर्घता प्राप्त होकर 'अच्छीई' रूप सिद्ध हो जाता है। 'एषा' संस्कृत सर्वनाम है। इसका प्राकृत रूप 'एसा' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - ११ से मूल शब्द एतत् के अंतिम 'तू' का लोप; ३-८६ से 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर प्रथमा एकवचन में 'एत' का 'एस' रूप होता है । २-४ -१८ से लौकिक 'से स्त्रीलिंग का 'आ' प्रत्यय जोड़कर संधि करने से 'एसा' रूप सिद्ध हो जाता है। सूत्र 'अक्षि: ' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'अच्छी' होता है। इसमें सूत्र संख्या २ - १७ से 'क्ष' का 'छ'; २-८९ से प्राप्त 'छ' का द्वित्व 'छ्छ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'छ्' का 'च्' ; १ - ३४ से इसका स्त्रीलिंग निर्धारण; ३ - १९ से प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व 'इ' को दीर्घ 'ई' प्राप्त होकर 'अच्छी' रूप सिद्ध हो जाता है। 'चक्षुष्' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'चक्खू' 'चक्खू' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या २ - ३ से 'क्ष' को 'ख'; २-८९ से प्राप्त 'ख' का द्वित्व 'ख्ख'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख्' का 'क्' ; १ - ११ से 'स्' का लोप; १-३३ से 'चक्खू' शब्द को विकल्प से पुल्लिंगता प्राप्त होने पर ३ - १९ से 'सि' प्रथमा एकवचन के प्रत्यय के स्थान पर ह्रस्व 'उ' को दीर्घ 'ऊ' होकर चक्खू रूप सिद्ध हो जाता है एवं पुल्लिंग नहीं होने पर याने नपुंसकलिंग होने पर ३ - २८ से प्रथमा बहुवचन के 'जस' प्रत्यय स्थान पर 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति के साथ पूर्व हस्व स्वर को दीर्घता प्राप्त होकर 'चक्खूइं' रूप सिद्ध हो जाता है। 'नयनानि' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'नयणा' और 'नयणाई' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १ - २२८ से 'न' का 'ण'; १-३३ से वैकल्पिक रूप से पुल्लिंगता की प्राप्ति; ३ - ४० से 'जस् शस्' यानें प्रथमा और द्वितीया बहुवचन की प्राप्ति होकर इनका लोप; ३ - १२ से अंतिम 'ण' के 'अ' का 'आ' होकर 'नयणा' रूप सिद्ध होता है एवं जब पुल्लिंग नहीं होकर नपुंसकलिंग हो तो ३ - २६ से प्रथमा द्वितीया के बहुवचन के 'जस्-शस्' प्रत्ययों के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'नयणाई' रूप सिद्ध हो जाता है। 'लोचनानि' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'लोअणा' और 'लोअणाई' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १ - १७७ से 'च्' का लोप; १-२२८ से 'न' का 'ण'; १-३३ से वैकल्पिक रूप से पुल्लिंगता की प्राप्ति; ३-४ से 'जस् - शस्' याने प्रथमा और द्वितीया के बहुवचन की प्राप्ति होकर इनका लोप; ३-१२ से अंतिम 'ण' के 'अ' का 'आ' होकर 'लोअणा' रूप सिद्ध हो जाता है। एवं जब पुल्लिंग नहीं होकर नपुंसकलिंग हो तो ३ - २६ से प्रथमा द्वितीया के बहुवचन के 'जस्-शस्' प्रत्ययों के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'लोअणाई' रूप सिद्ध हो जाता है। 'वचनानि' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'वयणा' और 'वयणाई' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १- १७७ से 'च्' का लोप; १ - १८० से शेष 'अ' का 'य'; १ - २२८ से 'न' का 'ण'; १-३३ से वैकल्पिक रूप से पुल्लिंगता की प्राप्ति; ३-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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