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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 21 स्त्रियामादविद्युतः ॥ १-१५।। स्त्रियां वर्तमानस्य शब्दस्यान्त्यव्यञ्जनस्य आत्वं भवति विद्युच्छब्दं वर्जयित्वा। लुगपवादः।। सरित्। सरिआ।। प्रतिपद्। पाडिवआ।। संपद् संपआ।। बहुलाधिकाराद् ईषत्स्पृष्टतर य श्रुतिरपि। सरिया। पाडिवया। संपया।। अविद्युत् इति किम्॥ विज्जू॥ ___ अर्थः- 'विद्युत्' शब्द को छोड़ करके शेष अन्त्य हलन्त-व्यञ्जन वाले संस्कृत स्त्रीलिंग (वाचक) शब्दों के अन्त्य हलन्त व्यञ्जन के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर 'आत्व आ' की प्राप्ति होती है। यों व्यञ्जनान्त स्त्रीलिंग वाले संस्कृत शब्द प्राकृत में आकारान्त हो जाते हैं। यह सूत्र पूर्वोक्त (१-११ वाले) सूत्र का अपवाद रूप सूत्र है। उदाहरण इस प्रकार है:- सरित्सरिआ; प्रतिपद्-पाडिवआ; संपद्-संपआ इत्यादि। बहुलं' सूत्र के अधिकार से हलन्त व्यञ्जन के स्थान पर प्राप्त होने वाले 'आ' स्वर के स्थान पर सामान्य स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ने वाले ऐसे 'या' की प्राप्ति भी होती हुई पाई जाती है। जैसे:- सरित्सरिआ अथवा सरिया; प्रतिपद्=पाडिवआ अथवा पाडिवया और संपद्-संपआ अथवा संपया इत्यादि। प्रश्न:- “विद्युत्' शब्द का परित्याग क्यों किया गया है ? उत्तरः- चूंकि प्राकृत-साहित्य में 'विद्युत्' का रूपान्तर 'विज्जू' पाया जाता है; अतः परम्परा का उल्लंघन कैसे किया जा सकता है? साहित्य की मर्यादा का पालन करना सभी वैयाकरणों के लिये अनिवार्य है; तदनुसार 'विद्युत् विज्जू' को इस सूत्र-विधान से पृथक् ही रक्खा गया है इसकी साधनिका अन्य सूत्रों से की जायगी। 'सरित्' संस्कृत स्त्रीलिंग रूप है। इसके प्राकृत रूप 'सरिआ' और 'सरिया होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१५ से प्रथम रूप में हलन्त व्यञ्जन 'त्' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति और द्वितीय रूप में हलन्त व्यञ्जन 'त्' के स्थान पर 'या' की प्राप्ति होकर क्रम से 'सरिआ' और 'सरिया' रूप सिद्ध हो जाते हैं। ___ 'प्रतिपद्' संस्कृत स्त्रीलिंग रूप है। इसके प्राकृत रूप 'पाडिवआ' और 'पाडिवया' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-४४ से प्रथम 'प' में स्थित 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति; १-२०६ से 'त' के स्थान पर 'ड' आदेश; १-२३१ से द्वितीय 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति और १-१५ से हलन्त अन्त्य व्यञ्जन 'त्' के स्थान पर क्रम से दोनों रूपों में 'आ' और 'या' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'पाडिवआ' तथा 'पाडिवया सिद्ध हो जाते हैं। 'संपद्' संस्कृत स्त्रीलिंग रूप है। इसके प्राकृत रूप 'संपआ' और 'संपया होते हैं इनमें सूत्र संख्या १-१५ से हलन्त अन्त्य व्यञ्जन 'त्' के स्थान पर क्रम से दोनों रूप 'संपआ' और 'संपया' सिद्ध हो जाते हैं। "विद्युत् संस्कृत स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप 'विज्जू होता है। इसमें सूत्र संख्या २-२४ से 'द्य' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ज्' को द्वित्व 'ज्ज' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य व्यञ्जन 'त्' का लोप और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में उकारान्त स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर 'विज्जू' रूप सिद्ध हो जाता है। १-१५।। रो रा ।। १-१६ ॥ स्त्रियां वर्तमानस्यान्त्यस्य रेफस्य रा इत्यादेशो भवति। आत्त्वापवादः। गिरा। धुरा। पुरा।। अर्थः- संस्कृत भाषा में स्त्रीलिंग रूप से वर्तमान जिन शब्दों के अन्त में हलन्त रेफ 'र' रहा हुआ है; उन शब्दों के प्राकृत रूपान्तर में उक्त हलन्त रेफ रूप 'र' के स्थान पर 'रा' आदेश-प्राप्ति होती है। जैसे:- गिर्-गिरा; धुर् धुरा और पर-परा। इस सत्र को सत्र संख्या १-१५ का अपवाद रूप विधान समझना चाहिये। क्योंकि सत्र संख्या १-१५ में अन्त्य व्यञ्जन के स्थान पर 'आ' अथवा 'या' की प्राप्ति का विधान है; जबकि इसमें अन्त्य व्यञ्जन सुरक्षित रहता है और इस सुरक्षित रेफ रूप 'र' में 'आ' की संयोजना होती है; अतः यह सूत्र १-१५ के लिये अपवाद रूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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