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410 : प्राकृत व्याकरण
लज्जालुआ स्त्री (लज्जावती) लज्जावाली; २-१५९। वइएहो वि (वैदहः) मिथिला देश का निवासी विशेष; लज्जालुइणी स्त्री. (लज्जावती) लज्जावाली;२-१७४ ।
१-१५१। लज्जिरो वि (लज्जावान्) लज्जा शील; २-१४५। वइजवणो __ वि. (वैजवनः) गोत्र-विशेष में उत्पन्न; १-१५१। लट्ठो स्त्री (यष्टिः ) लाठी, छड़ी; १-२४७; २-३४। वइदब्भो पु. (वैदर्भ) विदर्भ देश का राजा आदि। लण्हं न (श्लक्ष्णम्) लोहा, धातु-विशेष; २-७७। वइरं न (वज्रम) रत्न-विशेष, हीरा, ज्योतिष् प्रसिद्ध
एक योग; १-६; २-१०५। लब्भइ सक (लभते) वह प्राप्त करता है; १-१८७। वइरं न (वैरम्) शत्रुता, दुश्मनी की भावना; १-१५२। लिच्छइ सक (लिप्सते) वह लालसा करता है, वइसम्पायणो पु. (वैशम्पायनः) व्यास ऋषि का शिष्य; १-१५२। प्राप्त करना चाहता है; २-२१॥
वइसवणो पु. (वैश्रवणः) कुबेर; १-१५२। लल्लक्क वि देशज, (?) भीम, भयंकर; २-१७४ । वइसालो वि (वैशालः) विशाला में उत्पन्न; १-१५१। लवण नं (लवण) नमक; १-१७१ ।
वइसाहो पु. (वैशाखः) वैशाख नामक मास विशेष लहुअं न (लघुक) कृष्णागुर, सुगन्धित धूप द्रव्य विशेष;
१-१५१। २-१२२।
वइसिअं न (वैशिकम्) जैने तर शास्त्र विशेष लहवी स्त्री वि (लध्वी) मनोहर, सुन्दर; छोटी; २-११३।
काम-शास्त्र; १-१५२। लाउं लाऊ न (अलाबुम्) तुम्बड़ी, फल-विशेष; वइस्साणरो पुं. (वैश्वानरः) वह्नि, चित्रक, वृक्ष, सामवेद का १-६६।
अवयव विशेष; १-१५१। लायण्णं न (लावण्यम्) शरीर-सौन्दर्य, कान्ति; १-१७७, वसिओ वि (वांशिकः) बांस-वाद्य बजाने वाला; १-७० १८०
वंसो पुं. (वंशः) संतान-संतति, साल-वृक्ष, बांस; लासं न (लास्यम्) वाद्य, नृत्य और गीतमय नाटक
१-२६० विशेष; २-९२।
वक्क न. (वाक्य) पद समुदाय; शब्द-समूह; २-१७४ लाहइ सक (श्लाघते) वह प्रशंसा करता है; १-१८७।।
न. (वल्कलम्) वृक्ष की छाल; २-७९/ लाहलो पु. (लाहलः) म्लेच्छ-जाति-विशेष; १-२५६। वक्खाणं न (व्याख्यानम्) कथन, विवरण, विशद रूप से लिहइ सक (लिखति) वह लिखता है; १-१८७।
अर्थ-प्ररूपण, २-९०। लित्तो वि (लिप्तः) लीपा हुआ; लगा हुआ; १-६। वग्गो पु. (वर्ग:) जातीय समूह; ग्रन्थ-परिच्छेद-सर्ग, लिम्बो पुं. (निम्बः) नीम का पेड़; १-२३०॥
अध्ययन, १-१७७,२-७९। लुक्को वि (रूग्णः ) बीमार, रोगी, भग्न; १-२५४; २-२। वग्गे पुं. (वर्ग) वर्ग में, समूह में; १-६।। लुग्गो वि (रूग्णः ) बीमार, रोगी, भग्न; २-२।
पुं. (व्याघ्र) बाघ, एरण्ड का पेड़, करंच वृक्ष; लेहेण वि (लेखेण) लेख से; लिखे हुए से; २-१८९।
२-९०॥ लोओ पुं. (लोकः) लोक, जगत् संसार; १-१७७; २-२००। वंक वि न (वक्रम्) बांका, टेढा, कुटिल; १-२६। लोअस्स
पुं. (लोकस्य) लोक का; प्राणी वर्ग का; १-१८०। वच् लोअणा पुन (लोचनानि) आंखे अथवा आंखों को;
वोत्तुं हे कृ. (वक्तुम्) बोलने के लिये; २-२१७ १-३३;२-७४।
वाइएण वि (वाचितेन) पढ़े हुए से, बांचे हुए से; लोअणाई पुन (लोचनानि) आंखे अथवा आंखों को;
२-१८९ १-३३॥
न (वक्षस्) छाती, सीना; २-१७) लोअणाणं पुन (लोचनानाम्) आंखो का, की, के; वच्छो पुं. (वृक्षः) पेड़, द्रुमः; २-१७, १२७॥ २-१८४।
वच्छं पुं. (वृक्षम्) वृक्ष को; १-२३। लोगस्स पुं. (लोकस्य) लोक का, संसार का, प्राणी वर्ग वच्छस्स पुं. (वृक्षस्य) वृक्ष का; १-२४९। का; १-१७७।
वच्छाओ
पुं. (वृक्षात्) वृक्ष से; १-५॥ लोणं न (लवणम्) नमक; १-१७१।
वच्छेण वच्छेण पुं. (वृक्षेन) वृक्ष द्वारा, वृक्ष से; १-२७/ लोद्धओ पुं. (लुब्धकः) लोभी, शिकारी; १-११६; २-७९। वच्छेसु वच्छेसु पुं. (वृक्षेषु) वृक्षों में; वृक्षों के ऊपर; १-२७।
वज्जं
नः (वज्रम्) रत्न-विशेष, हीरा, एक प्रकार का अ. (वा) अथवा, १-६७।
लोहा; १-१७७; २-१०५। व्व
व अ. (इव) उपमा, सादृश्य, तुलना, उत्प्रेक्षार्थक वज्ज न (वर्यम्) श्रेष्ठ; २-२४। अव्यय विशेष; २-३४; १८२।
वज्झए कर्मणि व विध्यते) मारा जाता है; २-२६ । वइआलिओ वि (वैतालिकः) मंगल-स्तुति आदि से जगाने वजरा पु. (मार्जारः) मंजार, बिल्ला, बिलाव: २-१३२। वाला मागध आदि; १-१५२।
न (वृत्तम्) गोलाकार; १-८४ । वइआलीअं न (वैतालीयम) छन्द-विशेष; १-१५१। वटा
स्त्री (वार्ता) बात, कथा; २-३०। वइएसो वि (वैदेशः) विदेशी, परदेशी; १-१५१। वट्टी स्त्री (वर्तिः) बत्ती, आंख में सुरमा लगाने की
सलाई; २-३०।
वग्यो
वच्छं
वर्ट
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