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362 : प्राकृत व्याकरण
'नभस्तले' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'नहयले' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'भ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; २-७७ से 'स्' का लोप; १ - १७७ से 'त्' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'त्' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति और ३-११ से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में अकारान्त में संस्कृत प्रत्यय 'डि' के स्थान पर प्राकृत में 'डे=ए' प्रत्यय की प्राप्ति; प्राप्त प्रत्यय 'डे' में 'ड्' इत्संज्ञक होने से 'नहयल' के अन्त्य स्वर 'अ' इत्संज्ञा होने से लोप; एवं १-५ से अन्त्य हलन्त रूप 'नहयल' में पूर्वोक्त 'ए' प्रत्यय की संधि होकर 'नहयले' रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २-२०३।। अव्वो सूचना - दुःख - संभाषणापराध - विस्मयानन्दारद - भय - खेद - विषाद पश्चात्तापे ।। २-२०४।।
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अव्वो इति सूचनादिषु प्रयोक्तव्यम्।। सूचनायाम्। अव्वो दुक्करयारय ।। दुःखे । अव्वो दलन्ति हिययं।। संभाषणे। अव्वो किमिणं किमिणं ।। अपराध विस्मययोः ॥
अव्वो हरन्ति हिअयं तह वि न वेसा हवन्ति जुवईण ।
अव किं पि रहस्सं मुणन्ति धुत्ता जणब्भहिआ ।। १ ।। आनन्दादर भयेषु ।
अव्वो सुपहाय मिणं अव्वो अज्जम्ह सप्फलं जीअं । अव अअमितुमे नवरं जइ सा न जूरिहि ।। २॥ खेदे | अव्वो न जामि छेत्तं । । विषादे ।
अव्वो नासेन्ति दिहिं पुलयं वड्ढेन्ति देन्ति रणरणयं ।
हि तस्से अगुणा ते च्चिअ अव्वो कह णु एअं|| ३ || पश्चात्तापे ।
अव्वो तह तेण कया अहयं जह कस्स साहेमि ।।
अर्थः- प्राकृत साहित्य का 'अव्वो' अव्यय ग्यारह अर्थों में प्रयुक्त होता है। उक्त ग्यारह अर्थ क्रम से इस प्रकार हैं:(१) सूचना, (२) दुःख, (३) संभाषण, (४) अपराध, (५) विस्मय, (६) आनन्द, आदर, (८) भय, खेद (१०) विषाद और (११) पश्चाताप; तदनुसार प्रसंग को देखकर 'अव्वो' अव्यय का अर्थ किया जाना चाहिये। इनके उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं। सूचना-विषयक उदाहरण:- अव्वो दुष्कर-कारक-अव्वो दुक्कर यारय अर्थात् (मैं) सूचना ( करती हूं कि) (ये) अत्यन्त कठिनाई से किये जाने वाले हैं। दुःख-विषयक उदाहरण:- अव्वो दलति हृदय-अव्वो दलन्ति हिययं अर्थात् दुःख है कि वे हृदय को चीरते हैं- पीड़ा पहुंचाते हैं। संभाषण विषयक उदाहरणः-अव्वो किमिदं किमिदं अर्थात् अरे! यह क्या है ! यह क्या है ? अपराध और आश्चर्य विषयक उदाहरण:
संस्कृत:
प्राकृत:
अव्वो हरति हृदयं तथापि न द्वेष्याः भवति युक्तीनाम् ॥ अव्वो किमपि रहस्यं जानं ति धूर्ताः जनाभ्यधिकाः ॥ १ ॥ अव्वो हरन्ति हिअयं तहवि न वेसा हवन्ति जुवईण || अव्वो किं पि रहस्सं मुणन्ति धुत्ता जणब्भहिआ।। २॥
अर्थात् (कामी पुरुष) युवती स्त्रियों के हृदय को हरण कर लेते हैं; तो भी (ऐसा अपराध करने पर भी ) ( वे स्त्रियां) द्वेष भाव करने वाली - (हृदय को चुराने वाले चोरों के प्रति) (दुष्टता के भाव रखने वाली) नहीं होती है। इसमें 'अव्वो' का प्रयोग उपरोक्त रीति से अपराध-सूचक है। जन-साधारण से (बुद्धि की अधिकता रखने वाले ये (कामी) धूर्त पुरुष आश्चर्य है कि कुछ न कुछ रहस्य जानते हैं। 'रहस्य का जानना' आश्चर्य-सूचक है-विस्मयोत्पादक है, इसी को 'अव्वो' अव्यय से व्यक्त किया गया है।
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