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350 : प्राकृत व्याकरण
हा! धिक् संस्कृत अव्यय है। इसके प्राकृत रूप 'हद्धो' अथवा 'हा धाह' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या २-१९२ से 'हा! धिक्' के स्थान पर 'हद्धी' अथवा हा! धाह! की आदेश प्राप्ति होकर हद्धी और हा धाह रूपों की सिद्धि हो जाती है।। २-१९२॥
वेव्वे भय-वारण-विषादे ।। २-१९३।। भय वारण विषादेषु वेव्वे इति प्रयोक्तव्यम्।। वेव्वे त्ति भये वेव्वे त्ति वारणे जूरणे अ वेव्वे ति।। उल्ला विरीइ वि तुहं वेव्वे त्ति मयच्छि किं णे।। १।। किं उल्लावेन्तीए उअ जुरन्तीए किंतु भीआए। उव्वाडिरीए वेव्वे त्ति तीएँ भणिअंन विम्हरिमो।। २।।
अर्थः- 'वेव्वे' यह अव्यय प्राकृत-साहित्य का है। इसका प्रयोग करने पर प्रसंगानुसार तीन प्रकार की वृत्तियों में से किसी एक वृत्ति का ज्ञान होता है। तदनुसार 'वेव्वे' ऐसा कहने पर प्रसंगानुसार कभी 'भय' वृति का; कभी 'निवारण करने रूप' वृत्ति का अथवा कभी 'जूरना-खेद प्रकट करना-रूप' वृत्ति का भान होता है। उदाहरण इस प्रकार हैं:मूलः- वेव्वे 'त्ति' भये वेव्वे त्ति वारणे जूरणे अ वेव्वे त्ति।।
उल्लाविरीइ वि तुहं वेव्वे त्ति मयच्छि कि णे। १।।
वेव्वे इति भये वेव्वे इति निवारणे (खेदे) विषादे च वेव्वे इति।। उल्लपनशीलया अपि तव वेव्वे इति मृगाक्षि! किम् ज्ञेयं।। १।।
अर्थः- हे हिरण के समान सुन्दर नेत्रों वाली सन्दरि! तुम्हारे द्वारा जो वेव्वे शब्द बोला गया है; यह (शब्द) क्या भय-अर्थ मे बोला गया है? अथवा 'निवारण अर्थ' में बोला गया है ? अथवा 'खिन्नता' अर्थ में बोला गया है ? तदनुसार 'वेव्वे' इसका क्या तात्पर्य समझना चाहिये ? अर्थात् क्या तुम भय-ग्रस्त हो ? अथवा क्या तुम किसी बात विशेष की मनाई कर रही हो? अथवा क्या तुम खिन्नता प्रकट कर रही हो? मैं तुम्हारे द्वारा उच्चारित 'वेव्वे' का क्या तात्पर्य समयूं ? दूसरा उदाहरा इस प्रकार है :मूल :- किं उल्लावेन्तीए उअ जूरन्तीएं किं तु भीआए।।
उव्वाडिरीएँ वेव्वेत्ति तीएँ भणिअंन विम्हरिमो।। २।। संस्कृत :- किं उल्लापयन्त्या उत खिद्यन्त्या किं पुनः भीतया।।
उद्वातशीलया वेव्वे इति तथा भणितं न विस्मरामः।। २।। अर्थः- उस (स्त्री) द्वारा (जो) वेव्वे ऐसा कहा गया है; तो क्या 'उल्लाप-विलाप' करती हुई द्वारा अथवा क्या खिन्नता प्रकट करती हुई द्वारा अथवा क्या भयभीत होती हुई द्वारा अथवा क्या वायु-विकार से उद्धिग्न होती हुई द्वारा ऐसा (वेव्वे) कहा गया है। यह) हमें स्मरण नहीं होता है। अर्थात् हमें यह याद में नहीं आ रहा है कि-वह स्त्री क्या भय-भीत अवस्था में थी अथवा क्या खिन्नता प्रकट कर रही थी अथवा क्या विलाप कर रही थी अथवा क्या वह वायु विकार से उद्धिग्न थी, कि जिससे वह 'वेव्वे' 'वेव्वे ऐसा बोल रही थी।
उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'वेव्वे' अव्यय का प्रयोग भय निवारण और खेद-अर्थ में होता है। वेव्वे प्राकृत-भाषा का अव्यय है। रूढ-अर्थक और रूढ रूपक होने से साधनिका की आवश्यकता नहीं है। त्ति रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-४२ में की गई है।
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