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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 335 के एकवचन में अकारान्त स्त्रीलिंग में प्राप्त संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थानीय प्रत्यय रूप विसर्ग का-हलन्त व्यञ्जन रूप होने से-लोप होकर 'गोला' सिद्ध होता है। ___ 'गोदावरी' संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'गोआवरी' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'द्' का लोप; ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य दीर्घ 'ई' की यथा रूप स्थिति की प्राप्ति होकर 'गोआवरी रूप सिद्ध हो जाता है। आहित्य, लल्लक्क, विड्डिर, पचड्डिअ, उप्पेहड, मडप्फर, पड्डिच्छिर, अट्ट मट्ट, विहडफ्फड, और हल्लप्फल्ल इत्यादि शब्द सर्वथा प्रान्तीय होकर रूढ़ अर्थ वाले हैं; अतः इनके पर्यायवाची शब्दों का संस्कृत में अभाव है; किन्तु इनकी अर्थ-प्रधानता को लेकर एवं इनके लिये स्थानापन्न शब्दों का निर्माण करके काम चलाऊ साधनिका निम्न प्रकार से हैं : विलितः, कुपितः अथवा आकुलः संस्कृत विशेषण रूप है। इनके स्थान पर प्रान्तीय भाषा में 'आहित्यो' रूप का निपात होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आहित्यो रूढ़-रूप सिद्ध हो जाता है। भीष्मः अथवा भयंकरः संस्कृत विशेषण रूप है। इनका प्रान्तीय भाषा रूप लल्लक्को होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से मूल संस्कृत रूप भीष्म अथवा भंयकर के स्थान पर रूढ़ रूप'लल्लक्क' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रूढ़-रूप 'लल्लक्को' सिद्ध हो जाता है। 'आनकः' (वाद्य-विशेष) संस्कृत रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप 'विड्डिरो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से मूल संस्कृत रूप 'आनक' के स्थान पर रूढ़ रूप 'विड्डिर' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रूढ़-रूप 'विड्डिरो सिद्ध हो जाता है। 'क्षरितः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप 'पच्चडिओ' होता है। इसकी साधनिका भी उपरोक्त "विड्डिरो' के समान ही होकर 'पच्चड्डिओ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'उद्भटः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप 'उप्पेहडो' होता है। इसकी साधनिका भी उपरोक्त 'विड्डिरो' के समान ही होकर 'उप्पेहडो' रूढ़ रूप सिद्ध हो जाता है। 'गर्वः' संस्कृत रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप ‘मडप्फरो' होता है। इसकी साधनिका भी उपरोक्त 'विड्डिरो' के समान ही होकर 'मडप्फरो' रूढ़ रूप सिद्ध हो जाता है। 'सद्दक संस्कृत रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप 'पड्डिच्छिर होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से मूल संस्कृत शब्द 'सद्दक के स्थान पर प्रान्तीय भाषा में पड्डिच्छिर' रूढ़ रूप का निपात; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर रूढ़ रूप 'पड्डिच्छिर सिद्ध हो जाता है। __'आलवालम्' संस्कृत रूप है। इसकी प्रान्तीय भाषा रूप 'अट्टमट्ट' होता है। इसकी साधनिका उपरोक्त पड्डिच्छिरं के समान ही होकर रूढ़ रूप 'अट्टमट्ट सिद्ध हो जाता है। __'व्याकुलः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप 'विहडप्फडो' होता है। इसकी साधनिका उपरोक्त 'विडिरो' के समान ही होकर रूढ़ रूप 'विहडप्फडो' सिद्ध हो जाता है। 'हठः' संस्कृत रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप 'अज्जल्लं' होता है। इसकी साधनिका उपरोक्त पडिच्छिरं के समान होकर रूढ़ रूप 'अज्जल्लं' सिद्ध हो जाता है। ___ 'औत्सुक्यम्' संस्कृत रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप 'हल्लप्फल्ल' होता है। इसकी साधनिका उपरोक्त 'पडिच्छिर' के समान ही होकर रूढ़ रूप 'हल्लप्फल्लं' सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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