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________________ 334 : प्राकृत व्याकरण पर देशज प्राकृत में द्वित्व 'ड' का निपात; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'खेड्ड' रूप सिद्ध हो जाता है। ___'पौष्पं-रजः' (पुष्प-रजः) संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप तिलिच्छि होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत शब्द 'पौष्पं-रज' के स्थान पर देशज प्राकृत में तिङ्गिच्छि रूप का निपात होकर तिङ्गिच्छि रूप सिद्ध हो जाता है। "दिनम् संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'अल्लं' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत शब्द 'दिन' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'अल्ल' रूप का निपात; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार होकर 'अल्लं' रूप सिद्ध हो जाता है। 'समर्थः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'पक्कलो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण पक्कल' रूप का निपात और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'पक्कलो' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'पण्डकः संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'णेलच्छो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत शब्द 'पण्डक' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'णेलच्छ' रूप का निपात और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'णेलच्छो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'कांसः' संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'पलही' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत शब्द 'कर्पास' के स्थान पर देशज प्राकृत में पलही' रूप का निपात और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में दीर्घ ईकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर दीर्घ 'ई' को यथा रूप दीर्घ 'ई' की स्थिति प्राप्त होकर पलही' रूप सिद्ध हो जाता है। - 'बली' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप उज्जल्लो होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत शब्द 'बली' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'उज्जल्ल' रूप का निपात और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर उज्जल्लो रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'ताम्बूलम्' संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'झसुरं' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत रूप 'ताम्बूल' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'झसुर' रूप का निपात; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'झसुरं रूप सिद्ध हो जाता है। 'पुंश्चली' संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'छिछई' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत रूप 'पुंश्चली' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'छिंछई' रूप का निपात और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य दीर्घ 'ई' की यथा रूप स्थिति की प्राप्ति होकर 'छिछई रूप सिद्ध हो जाता है। 'शाखा' संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप 'साहुली' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत रूप 'शाखा' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'साहुली' रूप का निपात और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य दीर्घ 'ई' की यथा रूप स्थिति की प्राप्ति होकर 'साहुली' रूप सिद्ध हो जाता है। गउओ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-५४ में की गई है। 'गोला' संस्कृत रूप है। इसका देशज प्राकृत रूप भी 'गोला' ही होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११ से प्रथमा विभक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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