SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 303 शुक्तिः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'सिप्पी' और 'सुत्ती' होते हैं; इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-१३८ से शुक्ति के स्थान पर 'सिप्पि' रूप की आदेश प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में हस्व इकारान्त स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'सिप्पी' सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(शुक्तिः ) सुत्ती में सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; २-७७ से 'क्ति' में रहे हुए हलन्त व्यञ्जन 'क' का लोप; २-८९ से शेष रहे हए 'त' को द्वित्व 'त्त की प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति एकवचन में हस्व इकारान्त स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप 'सुत्ती' सिद्ध हो जाता है। छुप्तः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप 'छिको' और 'छुत्तो' होते हैं; इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-१३८ से 'छुप्त' के स्थान पर 'छिक्क' का आदेश और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'छिक्को' सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(छुप्त=) छुत्तो में सूत्र-संख्या २-७७ से हलन्त व्यञ्जन 'प्' का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'त' को द्वित्व 'त्त की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारांत पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप 'छुत्तो' सिद्ध हो जाता है। 'आरब्धः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप 'आढत्तो' और 'आरद्धो' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-१३८ से 'आरब्ध' के स्थान पर आढत्त' रूप की आदेश-प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'आढत्तो' सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(आरब्धः=) 'आरद्धो' में सूत्र संख्या २-७९ से हलन्त व्यञ्जन 'ब्' का लोप; २-८९ से शेष 'ध' को द्वित्व 'ध्ध' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व'ध्' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप 'आरद्धो' सिद्ध हो जाता है। 'पदातिः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'पाइक्का' और 'पयाई' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-१३८ से 'पदाति' के स्थान पर 'पाइक्क' रूप की आदेश-प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'पाइक्को' सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(पदातिः=) 'पयाइ' में सूत्र संख्या १–१७७ से 'द्' और 'त्' दोनों व्यञ्जनों का लोप; १-१८० से लोप हुए 'द्' में से शेष रहे हुए 'आ' को 'या' की प्राप्ति; और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में हस्व इकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप 'पयाई' सिद्ध हो जाता है। ।। २-१३८।। दंष्ट्राया दाढा ।।२-१३९।। पृथग्योगाद्वेति निवृत्तम्। दंष्ट्रा शब्दस्य दाढा इत्यादेशो भवति।। दाढा। अयं संस्कृते पि।। अर्थः- उपरोक्त सूत्रों में आदेश-प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है; किन्तु इस सूत्र से प्रारम्भ करके आगे के सूत्रों में वैकल्पिक रूप से आदेश-प्राप्ति का अभाव है; अर्थात् इन आगे के सूत्रों में आदेश प्राप्ति निश्चित रूप से है; अतः उपरोक्त सूत्रों से इन सूत्रों की पारस्परिक-विशेषता को अपर नाम ऐसे 'पृथक् योग' को ध्यान में रखते हुए 'वा' स्थिति की-वैकल्पिक स्थिति की-निवृत्ति जानना इसका अभाव जानना। संस्कृत शब्द 'दंष्ट्रा' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'दाढा' ऐसी आदेश-प्राप्ति होती है। संस्कृत साहित्य में 'दंष्ट्रा' के स्थान पर 'दाढा' शब्द का प्रयोग भी देखा जाता है। 'दंष्ट्रा' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'दाढा' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१३९ से 'दंष्ट्रा' के स्थान पर 'दाढा' आदेश होकर 'दाढा' रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २-१३९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy