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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 299
की स्थिति में होने पर ही होती है। यदि 'ईषत्' शब्द गौण नहीं होकर मुख्य रूप से स्थित होगा तो इसका रूपान्तर 'ईसि' होगा; न कि 'कूर' आदेश; यह पारस्परिक-विशेषता ध्यान में रहनी चाहिये।
'चिंचा' देशज भाषा का शब्द है। इसका प्राकृत-रूपान्तर 'चिंच' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति होकर चिंच रूप सिद्ध हो जाता है।
'व्व' अव्यय की सिद्धि सूत्र संख्या १-६ में की गई है।
'ईषत्-पक्वा' संस्कृत वाक्यांश है। इसका प्राकृत रूप 'कूर-पिक्का' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१२९ से 'ईषत्' अव्यय के स्थान पर गौण रूप से रहने के कारण से 'कर' रूप आदेश की प्राप्ति; १-४७ से 'प' में स्थित 'अ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति: २-७९ से 'व' का लोप और २-८९ से शेष द्वितीय 'क' को द्वित्व'क्क' की प्राप्ति होकर 'कर-पिक्का ' रूप सिद्ध हो जाता है।।२-१२९||
स्त्रिया इत्थी ॥ २-१३०।। स्त्री शब्दस्य इत्थी इत्यादेशो वा भवति ।। इत्थी थी।
अर्थः- संस्कृत शब्द 'स्त्री' के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'इत्थी' रूप आदेश की प्राप्ति होती है। जैसे:- स्त्री-इत्थी अथवा थी।
'स्त्री' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'इत्थी' और 'थी' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप की प्राप्ति सूत्र संख्या २-१३० से 'स्त्री' शब्द के स्थान पर आदेश रूप से होकर प्रथम रूप 'इत्थी' सिद्ध हो जाता है। __ द्वितीय रूप-(स्त्री-) थी' में सूत्र संख्या २-४५ से 'स्त्' के स्थान पर 'थ्' की प्राप्ति; और २-७९ से '' में स्थित '' का लोप होकर द्वितीय रूप 'थी' भी सिद्ध हो जाता है।। २-१३०।।
धृतेर्दिहिः ॥ २-१३१।। धृति शब्दस्य दिहिरित्यादेशो वा भवति।। दिही धिई।।
अर्थः- संस्कृत शब्द 'धृति' के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'दिहि' रूप आदेश होता है। जैसे:-धृतिः-दिही अथवा धिई।।
दिही रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२०९ में की गई है। धिई रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १–१२८ में की गई है।। २-१३१।।
मार्जारस्य मञ्जर-वजरौ ।। २-१३२।। मार्जार शब्दस्य मञ्जर वञ्जर इत्यादेशौ वा भवतः।। मञ्जरो वञ्जरो। पक्षे मञ्जारो।।
अर्थः- संस्कृत शब्द 'मार्जार' के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से दो आदेश 'मञ्जरो और वञ्जरो' होते हैं। जैसे-मार्जारः मञ्जरो अथवा वञ्जरो।। पक्षान्तर में व्याकरण सूत्र सम्मत तीसरा रूप 'मज्जारो' होता है।
'मार्जारः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'मञ्जरो', 'वञ्जरो' और 'मज्जारो' होते हैं। इनमें से प्रथम दो रूप सूत्र संख्या २-१३२ से आदेश रूप से और होते हैं। तृतीय रूप-'मञ्जारो की सिद्धि सूत्र संख्या १-२६ में की गई है।। २-१३२।।
वैर्यस्य वेरुलिअं ।। २-१३३।। वैडूर्य शब्दस्य वेरुलिअ इत्यादेशो वा भवति।। वेरुलिवेडुज्ज।।
अर्थः- संस्कृत शब्द 'वैडूर्य' के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में वैकल्पिक रूप से 'वेरूलिय' आदेश होता है। जैसे:-वैडूर्यम्= (आदेश रूप) वेरुलिअं और पक्षान्तर में- (व्याकरण-सूत्र-सम्मत रूप)- वेडुज्ज।।
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