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________________ उच्चार्हति ।। २-१११।। अर्हत्-शब्दे संयुक्तस्यान्त्य व्यञ्जनात् पूर्वी उत् अदितौ च भवतः ।। अरुहो अरहो अरिहो । अरूहन्तो अरहन्तो अरिहन्तो ।। प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 291 अर्थः- संस्कृत शब्द 'अर्हत्' के प्राकृत रूपान्तर में संयुक्त व्यञ्जन 'ह' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र्' में कभी आगम रूप 'उ' की प्राप्ति होती है; कभी आगम रूप 'अ' की प्राप्ति होती है; तो कभी आगम रूप 'इ' की प्राप्ति होती है। इस प्रकार 'अर्हत्' के प्राकृत में तीन रूप हो जाते हैं। उदाहरण इस प्रकार हैं:- अर्हन्- अरूहो, अरहो और अरिहो।। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:- अर्हन्तः - अरूहन्तो, अरहन्तो और अरिहन्तो ।। = 'अर्हन्' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'अरूहो,' 'अरहो' और 'अरिहो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २- १११ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र' में क्रम से पक्षान्तर रूप से आगम रूप 'उ'; 'अ' और 'इ' की प्राप्ति; १ - ११ से अन्त्य व्यञ्जन 'न्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारांत पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से 'अरूहो;' 'अरहो' और 'अरिहा' ये तीनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'अर्हन्तः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'अरूहन्ता,' 'अरहन्तो' और 'अरिहन्ता' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २ - १११ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह' के पूर्व 'में' स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र' में क्रम से पक्षान्तर रूप से आगम रूप 'उ'; 'अ' और 'इ' की प्राप्ति; और १ - ३७ से अन्त्य विसर्ग के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति होकर क्रम से 'अरूहन्ता,' 'अरहन्तो' और 'अरिहन्ता; ' ये तीनों रूप सिद्ध हो जाते हैं । ।। २- १११ ।। पद्म - छद्म- मूर्ख -द्वारे वा ।। २-११२ ।। एषु संयुक्तस्यान्त्यव्यञ्जनात् पूर्व उद् वा भवति ।। पउमं पोम्मं ।। छउमं छम्मं ।। मुरुक्खो मुक्खो । दुवारं । पक्षे । वारं । दे। दारं ।। अर्थः- संस्कृत शब्द पद्म, छद्म, मूर्ख और द्वार में प्राकृत रूपान्तर में संयुक्त व्यञ्जन 'द्म' के पूर्व में स्थि हलन्त व्यञ्जन 'द्' में, संयुक्त 'ख' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र्' में और संयुक्त 'द्वा' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'द्' में वैकल्पिक रूप से आगम रूप 'उ' की प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार है:- · पद्मम्=पउमं अथवा पोम्मं।। छ्दमम्=छउमं अथवा छम्मं । । मूर्ख :- मुरुक्खो अथवा मुक्खो ।। द्वारम् - दुवारं और पक्षान्तर में द्वारम् के वारं, देरं और दारं रूप भी होते हैं। पउमं और पोम्मं दोनों रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १- ६१ में की गई है। 'छद्मम्' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'छउमं' और 'छम्मं' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-११२ से संयुक्त व्यञ्जन 'द्म' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'द्' में वैकल्पिक रूप से आगम रूप 'उ' की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त 'दु' में से 'द्' का लोप; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारांत नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप 'छउमं' सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप- (छद्मम्=) 'छम्मं' में सूत्र संख्या २- ७७ हलन्त व्यञ्जन 'द्' का लोप; २-८९ से शेष 'म' को द्वित्व 'म्म' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप 'छम्मं' भी सिद्ध हो जाता है। 'मूर्खः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप 'मुरुक्खो' और मुक्खो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २- ११२ से संयुक्त व्यञ्जन 'ख' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'र्' में वैकल्पिक रूप से आगम रूप 'उ' की प्राप्ति; २-८९ से शेष 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति; २- ९० से प्राप्त पूर्व 'ख' के स्थान पर 'क्' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'मुरूक्खो' सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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