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________________ 282 : प्राकृत व्याकरण हुए संयुक्त व्यञ्जनों के अन्त्य व्यञ्जन के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति होती है। जैसे-'ह" से संबंधित शब्दों के उदाहरणः- अर्हति-अरिहइ।। अर्हाः अरिहा।। गर्दा गरिहा। बर्हः बरिहो।। इत्यादि।। श्री-सिरी।। ही-हीरी।। हीतः हिरीओ।। अहीकः अहिरीओ।। कृत्स्नः कसिणो।। क्रिया किरिआ।। आर्ष-प्राकृत में क्रिया का रूप किया' भी देखा जाता है। जैसे:- हतम् ज्ञानम् क्रिया-हीनम् हयं नाणं किया-हीण।। दिष्टया दिद्विआ।। इत्यादि।। ___ 'अर्हति' संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'अरिहइ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र' में आगम रूप'इ' की प्राप्ति; और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'अरिहइ' रूप सिद्ध हो जाता है। __'अर्हाः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप अरिहा होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारांत पुल्लिंग में प्राप्त 'जस' का लोप और ३-१२ से प्राप्त और लुप्त 'जस' प्रत्यय के पूर्व में अन्त्य हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति होकर 'अरिहा' रूप सिद्ध हो जाता है। 'गो' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गरिहा होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'हो' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति होकर 'गरिहा' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'बर्हः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'बरिहो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'बरिहो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'श्री' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सिरी' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन श्री में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'श्' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति और १-२६० से प्राप्त शि' में स्थित 'श्' का 'स्' होकर 'सिरी' रूप सिद्ध हो जाता है। __ हीः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'हिरी होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ही' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'ह' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति और ३-२८ से दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति; तदनुसार वैकल्पिक पक्ष होकर प्राप्त 'आ' प्रत्यय का अभाव होकर 'हिरी' रूप सिद्ध हो जाता है। 'हीतः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'हिरीओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ही' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'ह' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'हिरीओ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'अहीकः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'अहिरीओ' होता है। इसकी साधनिका में 'हिरीओ उपरोक्त रूप में प्रयुक्त सूत्र ही लगकर 'अहिरीओ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'कसिणो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-७५ में की गई है। 'क्रिया' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'किरिआ होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'क्रि' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'क्' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; और १-१७७ से 'य' का लोप होकर 'किरिआ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'हयं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२०९ में की गई है। 'ज्ञानम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'नाणं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-४२ से 'ज्ञ' के स्थान पर 'ण' की "प्राप्ति; प्राकृत व्याकरण में व्यत्यय का नियम साधारणतः है; अतः तदनुसार प्राप्त 'ण' का और शेष 'न' का परस्पर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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