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________________ 280 : प्राकृत व्याकरण द्वितीय रूप 'खाणू' की सिद्धि सूत्र संख्या २७ में की गई है। 'थिण्णं' और 'थीण' रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-७४ में की गई है। 'अस्मदीयम्' संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप 'अम्हक्केर' और 'अम्हकेरं' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७४ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्म' के स्थान पर 'म्ह' रूप आदेश की प्राप्ति; १ - १७७ से 'द्' का लोप; २ - १४७ से संस्कृत ‘इदमर्थक' प्रत्यय ‘इय' के स्थान पर प्राकृत में 'केर' प्रत्यय की प्राप्ति २ - ९९ से अन्त्य व्यञ्जन 'क' को वैकल्पिक रूप से द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'अम्हक्केर' और 'अम्हकेरं' दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है। तं च्चेअ और तं चेअ रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-७ में की गई है। सो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १ - ९७ में की गई है। चिअ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-८ में की गई है। एव संस्कृत अव्यय है। इसके स्थान पर प्राकृत में चिअ होता है। इसमें सूत्र संख्या २ - १८४ से 'एव' के स्थान पर आदेश रूप से चित्र की प्राप्ति होकर चिअ रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २-९९।। शार्ङ्ग ङातपूर्वोत् ।। २ - १००।। शार्ङ्गत पूर्वी अकारो भवति ।। सारंगं ॥ अर्थः- संस्कृत शब्द 'शार्ङ्ग' के प्राकृत रूपान्तर में 'ड्' वर्ण के पूर्व में (अर्थात् हलन्त 'र्' व्यञ्जन में) 'अ' रूप आगम की प्राप्ति होती है। जैसे:- शार्ङ्गम् सारङ्ग।। 'शार्ङ्गम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सारङ्ग' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स' ; २ - १०० से हलन्त व्यञ्जन 'र्' में आगम रूप 'अ' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'सारङ्ग' रूप सिद्ध हो जाता है । । २ - १०० ॥ क्ष्मा-श्लाघा-रत्नेन्त्यव्यञ्जनात् ।। २-१०१।। एषु संयुक्तस्य यदन्त्यव्यञ्जनं तस्मात् पूर्वोद् भवति।। छमा । सलाहा। रयणं ।। आर्षे सूक्ष्मेऽपि। सुमं ।। अर्थः- संस्कृत शब्द 'क्ष्मा, श्लाघा और रत्न' के प्राकृत रूपान्तर में इन शब्दों में स्थित संयुक्त व्यञ्जन के अन्त्य व्यञ्जन के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन में आगम रूप 'अ' की प्राप्ति होती है। जैसे:- क्ष्मा-छमा; श्लाघा - सलाहा और रत्नम् = रयणं ।। आर्ष-प्राकृत में 'सूक्ष्म' शब्द के रूप में भी संयुक्त व्यञ्जन 'क्ष्म' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'क्ष' में आगम रूप 'अ' की प्राप्ति होती है। जैसे:- सूक्ष्मम् - सुहमं । छम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २ -१८ में की गई है। 'श्लाघा' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सलाहा' होता है। इसमें सूत्र संख्या २ - १०१ से हलन्त व्यञ्जन 'श्' में आगम रूप 'अ' की प्राप्ति; १ - २६० से प्राप्त 'श' का 'स'; और १ - १८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' रूप आदेश की प्राप्ति होकर 'सलाहा' रूप सिद्ध हो जाता है। 4 'रत्नम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'रयणं' होता है। इसमें सूत्र संख्या २ - १०१ से हलन्त 'त्' आगम रूप 'अ' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त्' का लोप; १ - १८० से शेष रहे हुए एवं आगम रूप से प्राप्त हुए 'अ' को 'य' की प्राप्ति; १ -२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'रयणं' रूप सिद्ध हो जाता है। 'सूक्ष्मम्' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका आर्ष-प्राकृत रूप 'सुहमं' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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