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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 257 हलन्त 'स्' वर्ण का लोप; १-१७७ से 'त्त्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खलिओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'स्नेहः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'नेहो होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'स्' वर्ण का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'नेहो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'दुक्खं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-७२ में की गई है।
'अंत-पातः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'अंतप्पाओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त उपध्मानीय वर्ण चिह्न का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'प' वर्ण को द्वित्व 'प्प' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'त्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'अंतप्पाओ' रूप की सिद्धि हो जाती है।।२-७७।।
अधो मनयाम् ॥२-७८॥ मनयां संयुक्तस्याधो वर्तमानानां लुग् भवति।। म। जुग्गं। रस्सी। सरो। सेरं।। न। नग्गो।। लग्गो। या सामा। कुड्। वाहो ।
अर्थः- यदि किसी संस्कृत शब्द में 'म','न' अथवा 'य' हलन्त व्यञ्जन वर्ण के आगे संयुक्त रूप से रहे हुए हों तो इनका लोप हो जाता है। जैसे-'म' वर्ण के लोप के उदाहरण:-युग्मम्-जुग्ग।। रश्मिः -रस्सी।। स्मरः-सरो और स्मेरम् से।। 'न' वर्ण के लोप के उदाहरणः- नग्नः नग्गो और लग्नः लग्गो।। 'य' वर्ण के लोप के उदाहरणः- श्यामा सामा। कुड्यम्=कुड्डः और व्याधः-वाहो।।
"जुग्गं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-६२ में की गई है। 'रस्सी' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-३५ में की गई है। 'सरो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-७४ में की गई है।
'स्मेरम्' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सेरं' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'म्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग. में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'सरं रूप सिद्ध हो जाता है।
'नग्नः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'नग्गो' होता है। इसमें सत्र संख्या २-७८ से द्वितीय 'न' का लोप: २-८९ से शेष रहे हए 'ग' को द्वित्व 'गग' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'नग्गो' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'लग्नः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'लग्गा' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'न्' का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'ग' को द्वित्व 'ग्ग' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'लग्गो' रूप सिद्ध हो जाता है।
'सामा' रूप की सिद्धि सत्र संख्या १-२६० में की गई है।
'कुड्यम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'कुड्ड' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'य' का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'ड' को द्वित्व 'ड्ड' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'कुड्ड' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'व्याधः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'वाहो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'य' का लोप; २-८९ से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'वाहो' रूप सिद्ध हो जाता है।।२-७८||
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