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________________ 256 : प्राकृत व्याकरण 'उत्पलम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'उप्पलं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'त्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'प्प' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'उप्पल' रूप सिद्ध हो जाता है। 'उत्पातः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'उप्पाओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'त् वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'प्प' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'त्' का लोप और ३-२ प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'उप्पाआ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'मद्गुः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मग्गू होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'द्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'ग' वर्ण को द्वित्व 'ग्ग' की प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर 'मग्गू रूप सिद्ध हो जाता है। 'मोग्गरो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १–११६ में की गई है। 'सुप्तः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सुत्तो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'प' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'त' वर्ण को द्वित्व 'त्त' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'सुत्तो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'गुप्तः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गुत्तो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'प्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'त' वर्ण को द्वित्व 'त्त' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'गुत्तो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'श्लक्ष्णम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'लण्ह' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'श' का लोप; २-७५ से संयुक्त व्यञ्जन 'क्ष्ण' के स्थान पर 'ण्ह' आदेश की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'लण्हं रूप सिद्ध हो जाता है। "निश्चलः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'णिच्चलो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' का 'ण'; २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'श् वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'च' वर्ण को द्वित्व'च्च' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'णिच्चलो' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'श्चुतते संस्कृत अकर्मक क्रिया पद का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'चुअइ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'श' वर्ण का लोप; १-१७७ से प्रथम 'त्' का लोप और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'चुअई रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'गोष्ठी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गोट्ठी' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'ष्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'ठ' को द्वित्व 'ट्ठ' की प्राप्ति और २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ्' को 'ट्' की प्राप्ति होकर 'गोट्ठी' रूप सिद्ध हो जाता है। 'छट्टो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२६४ में की गई है। 'निठुरो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२५४ में की गई है। 'स्खलितः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खलिओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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