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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित: 255 मोग्गरो ।। प्। सुत्तो । गुत्तो ।। रा । लण्हं । णिच्चलो । चुअइ ।। ष् । गोट्टी । छट्टो । निठुरो ।। स् । खलिओ । नेहो ॥ क्। दुखम्। दुक्खं। प्। अंत-पातः । अंतप्पाओ।। अर्थः- किसी संस्कृत शब्द में यदि हलन्त रूप से 'क्, ग्, ट्, ड्, त्, द्, प्, श्, ष् स्, जिव्हामूलीयक, और उप मानी' में से कोई भी वर्ण अन्य किसी वर्ण के साथ में पहले रहा हुआ हो तो ऐसे पूर्वस्थ और हलन्त वर्ण का प्राकृत-रूपान्तर में लोप हो जाता है। जैसे:- 'क्' के लोप के उदाहरण- भुक्तम् = भुत्तं और सिक्थम् = सित्थं । । ' ग्' के लोप के उदाहरण:-दुग्धम्=दुद्धं और मुग्धम् = मुद्धं । 'ट्' के लोप के उदाहरण: - षट्पदः - छप्पओ और कट्फलम् -कप्फलं।। ‘ड्' के लोप के उदाहरण:- खड्ग :- खग्गो और षड्जः = सज्जो । 'त्' के लोप के उदाहरण:- उत्पलम् - उप्पलं और उत्पातः-उप्पाओ।। 'द्' के लोप के उदाहरणः- मद्गुः- मग्गू और मुद्गरः = मोग्गरो ।। 'प' के लोप के उदाहरण:- सुप्तः = सुत्तो और गुप्तः - गुत्तो ।। 'श' के लोप के उदाहरण :- श्लक्ष्णम्-लण्हं; निश्चलः - णिच्चलो और रचुतते- चुअइ || 'ष्' के लोप के उदाहरण:गोष्ठी-गोट्टी; षष्ठः-छट्टो और निष्ठुरः न्टिठुरो ।। 'स्' के लोप के उदाहरण:- स्खलितः - खलिओ और स्नेह : - नेहो ।। " ४ क्" के लोप का उदाहरण :- दुखम् - दुक्खं और '४ प्' के लोप का उदाहरण:- अंत पातः = अंतप्पाओ।। इत्यादि अन्य उदाहरणों में भी उपरोक्त हलन्त एवं पूर्व स्ववर्णों के लोप होने के स्वरूप को समझ लेना चाहिये ।। 'भुक्तम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'भुत्त' होता है। इसमें सूत्र संख्या २ - ७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'क्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष 'त' को द्वित्व 'त्त' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'भुत्त' रूप सिद्ध हो जाता है। 'सिक्थम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सित्थं होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'क्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष 'थ' को द्वित्व ' थ्थ' की प्राप्ति; २ - ९० से प्राप्त पूर्व ' थ्' को 'त्' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'सित्थं' रूप सिद्ध हो जाता है। 'दुग्धम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'दुद्ध' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'ग्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष 'ध' को द्वित्व ' ध्ध' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व' ध्' को 'द्' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'दुद्ध' रूप सिद्ध हो जाता है। 'मुग्धम्' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मुद्ध' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'ग्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष 'ध' को द्वित्व ' ध्ध' की प्राप्ति २ - ९० से प्राप्त पूर्व ' ध्' को 'द्' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'मुद्ध' रूप सिद्ध हो जाता है। छप्पओ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १ - २६५ में की गई है। 'कट्फलम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'कप्फलं' होता है। इसमें सूत्र संख्या २ - ७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'ट्' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'फ' को द्वित्व 'फ्फ' की प्राप्ति; २ - ९० से प्राप्त पूर्व 'फ्' को 'पू' की प्राप्ति; ३- २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'कप्फलं रूप सिद्ध 'खग्गो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १ - ३४ में की गई है। जाता है। 'षड्जः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सज्जा' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'ष' का 'स'; २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'इ' वर्ण का लोप; २-८९ से शेष रहे हुए 'ज' को द्वित्व 'ज्ज' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'सज्जा' रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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