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258 : प्राकृत व्याकरण
सर्वत्र ल-ब-रामवन्द्रे ।। २-७९।। वन्द्र शब्दादन्यत्र लबरां सर्वत्र संयुक्तस्योर्ध्वमधश्च स्थितानां लुग् भवति।। ऊर्ध्व। ल। उल्का। उक्का।। वल्कलम्। वक्कलं।। ब। शब्दः। सद्दो। अब्दः। अद्दो।। लुब्धकः। लोद्धओ।। । अर्कः। अक्को। वर्गः। वग्गो। अधः। श्लक्षणम्। सण्ह। विक्लवः। विक्कवो।। पक्कम्। पक्कं पिक्क।। ध्वस्त। धत्थो।। चक्रम्। चक्क। ग्रहः। गहो।। रात्रिः। रत्ती।। अत्र द्व इत्यादि संयुक्तानामुभयप्राप्तो यथा दर्शनं लोपः।। क्वचिदूर्ध्वम्। उद्विग्नः। उव्विग्गो।। द्विगुणः। वि-उणो। द्वितीयः। बीओ। कल्मषम्। कम्मसं। सर्वम्। सव्वं। शुल्बम्। सुव्बं। क्वचित्त्वधः। काव्यम्। कव्वं। कुल्या। कुल्ला।। माल्यम्। मल्लं।। द्विपः। दिओ।। द्विजातिः। दुआई। क्वचित्पर्यायेण। द्वारम्। बारं। दारं।। उद्विग्नः। उव्विग्गो। उव्विण्णो।। अवन्द्र इति किम्। वन्द्र। संस्कृतसमोयं प्राकृत शब्दः। अत्रोत्तरेण विकल्पोपि न भवति निषेध सामर्थ्यात्।।
अर्थः- संस्कृत शब्द 'वन्द्र को छोड़कर के अन्य किसी संस्कृत शब्द में 'ल' 'ब'-(अथवा व्) और 'र' संयुक्त रूप-से हलन्त रूप से-अन्यवर्ण के पूर्व में अथवा पश्चात् अथवा ऊपर, कहीं पर भी रहे हुए हों तो इन का लोप हो जाया करता है। वर्ण के पूर्व में स्थित हलन्त 'ल' 'ब' और 'र' के लोप होने के उदाहरण इस प्रकार हैं:- सर्वप्रथम 'ल' के उदाहरणः- उल्का-उक्का और वल्कलम् वक्कलं।। 'ब' के लोप के उदाहरणः- शब्द: सद्दो और लुब्धकः-लोद्धओ।। 'र' के लोप के उदाहरण अर्कः अक्को और वर्गः-वग्गो।। वर्ण के पश्चात् स्थित संयुक्त एवं हलन्त 'ल्' 'ब' और 'र' के लोप होने के उदाहरण इस प्रकार हैं:- सर्वप्रथम 'ल' के उदाहरणः श्लक्ष्णम्=सण्हं; विक्लवः विक्कवो।।'' के लोप के उदाहरणः पक्वम्-पक्कं अथवा पिक्क। ध्वस्तः धत्थो।। ' के लोप के उदाहरणः चक्रम्-चक्क; ग्रहः=गहो और रात्रिः-रत्ती।। __ जिन संस्कृत शब्दों में ऐसा प्रसंग उपस्थित हो जाता हो कि उनमें रहे हुए दो हलन्त व्यञ्जनों के लोप होने का एक साथ ही संयोग पैदा हो जाता हो तो ऐसी स्थिति में 'उदाहरण में जिसका लोप होना बतलाया गया हो-दिखलाया गया हो-उस हलन्त व्यञ्जन का लोप किया जाना चाहिये। ऐसी स्थिति में कभी-कभी व्यञ्जन के पूर्व में रहे हुए संयुक्त हलन्त व्यञ्जन का लोप हो जाता है। कभी-कभी व्यञ्जन के पश्चात् रहे हुए संयुक्त हलन्त व्यञ्जन का लोप होता है। कभी-कभी उन लोप होने वाले दोनों व्यञ्जनों का लोप क्रम से एवं पर्याय से भी होता है; यों पर्याय से-क्रम से-लोप होने के कारण से उन संस्कृत शब्दों के प्राकृत में दो-दो रूप हो जाया करते हैं। उपरोक्त विवेचन के उदाहरण इस प्रकार हैं:- लोप होने वाले दो व्यञ्जनों में से पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'द्' के लोप के उदाहरण:-उद्विग्नः उव्विग्गो, द्विगुणः-वि-उणो।। द्वितीयः=बीओ। लोप होने वाले दो व्यञ्जनों में
ओ। लोप होने वाले दो व्यञ्जनों में से पर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'ल' के लोप का उदाहरण:कल्मषम्-कम्मसं।। इसी प्रकार से 'र' के लोप का उदाहरणः- सर्वम् सव्वं।। पुनः 'ल' का उदाहरणः-शुल्बम् सुब्ब।। लोप होने वाले दो व्यञ्जनों में से पश्चात स्थित हलन्त व्यञ्जन के लोप होने के उदाहरण इस प्रकार हैं; 'य' के लोप होने के उदाहरणः-काव्यम्=कव्वं।। कुल्या कुल्ला और माल्यम्=मल्ल।। 'व' के लोप होने के उदाहरण:- द्विपः-दिओ और द्विजातिः दुआई।। लोप होने वाले दो व्यञ्जनों में से दोनों व्यञ्जनों का जिन शब्दों में पर्याय से लोप होता है; ऐसे उदाहरण इस प्रकार हैं:-द्वारम्बारं अथवा दारं। इस उदाहरण में लोप होने योग्य 'द' और 'व' दोनों व्यञ्जनों को पर्याय से-क्रम से दोनों प्राकृत रूपों में लुप्त होते हुए दिखलाये गये हैं, इसी प्रकार से एक उदाहरण और दिया जाता है:-उद्विग्नः उव्विग्गो और उविण्णो। इस उदाहरण में लोप होने योग्य 'ग्' और 'न्' दोनों व्यञ्जनों को पर्याय से-क्रम से-दोनों प्राकृत रूपों में लुप्त होते हुए दिखलाये गये हैं। यों अन्य उदाहरणों में भी लोप होने योग्य दोनों व्यञ्जनों की लोप-स्थिति समझ लेना चाहिये।
प्रश्नः- 'वन्द्र' में स्थित संयुक्त और हलन्त 'द्' एवं 'र' के लोप होने का निषेध क्यों किया गया है?
उत्तरः- संस्कृत शब्द 'वन्द्र' जैसा है; वैसा ही रूप प्राकृत में भी होता है; किसी भी प्रकार का वर्ण-विकार, लोप, आगम, आदेश अथवा द्वित्व आदि कुछ भी परिवर्तन प्राकृत-रूप में जब नहीं होता है; तो ऐसी स्थिति में 'जैसा-संस्कृत में वैसा प्राकृत में होने से उसमें स्थित 'द्' अथवा 'र' के लोप का निषेध किया गया है और वृत्ति में यह स्पष्टीकरण कर दिया गया है कि-यह प्राकृत शब्द 'वन्द्र' संस्कृत शब्द 'वन्द्रम्' के समान ही होता है।
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