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250 : प्राकृत व्याकरण से संयुक्त व्यञ्जन (जिव्हा मूलीय चिन्ह सहित) ':ख' के स्थान पर विकल्प से 'ह' की प्राप्ति ३-२५ से प्रथमा विभक्ति
न में अकारान्त नपंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति होकर १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप 'दुहं' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप (दुःखम् ) दुक्खं में सूत्र संख्या २-७७ से जिव्हा मूलीय चिन्ह ' :क्' का लोप; २-८९ से 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क्' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप 'दुक्खं भी सिद्ध हो जाता है।
'पर-दुःखे संस्कृत सप्तम्यन्त रूप है। इसका प्राकृत रूप 'पर-दुक्खे' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से जिव्हा मूलीय चिन्ह 'क' का लोप; २-८९ से 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्राप्ति और ३-११ से मूल रूप 'दुक्ख' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'पर-दुक्ख' रूप सिद्ध हो जाता है। _ 'दुःखिताः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'दुक्खिआ होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से जिव्हा मूलीय चिन्ह ':क्' का लोप; २-८९ से 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क्' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त्' का लोप; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में प्राप्त 'जस्' प्रत्यय का लोप और ३-१२ से लुप्त 'त्' में से शेष रहे हुए (मूल रूप अकरांत होने से) हस्व स्वर 'अ' को दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति होकर 'दुक्खिआ' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ "विरलाः' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'विरला' होता है। यह मूल शब्द 'विरल' होने से अकारांत है। इसमें सूत्र संख्या ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में पुल्लिंग अकारान्त में प्राप्त 'जस्' प्रत्यय का लोप और ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस्' प्रत्यय के कारण से अन्त्य हस्व स्वर 'अ' को दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति होकर 'विरला' रूप सिद्ध हो जाता है।
'दाहिणो' और 'दक्खिणो' रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १- ४५ में की गई है। 'तूह' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०४ में की गई है। "तित्थं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-८४ में की गई है। ।। २-७२।।
कूष्माण्ड्यां ष्मो लस्तु ण्डो वा ॥ २-७३॥ कूष्माण्डयां ष्मा इत्येतस्य हो भवति। ण्ड इत्यस्य तु वा लो भवति ।। कोहली कोहण्डी।।
अर्थः- संस्कृत शब्द कूष्माण्डी में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'ष्मा' के स्थान पर 'ह' रूप आदेश की प्राप्ति होती है तथा द्वितीय संयुक्त व्यञ्जन ‘ण्ड' के स्थान पर विकल्प से 'ल' की प्राप्ति होती है। जैसे:-कूष्माण्डी-कोहली अथवा कोहण्डी।। वैकल्पिक पक्ष होने से प्रथम रूप में 'ण्ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति हुई है और द्वितीय रूप में 'ण्ड' का ‘ण्ड' ही रहा हुआ है। यों स्वरूप भेद जान लेना चाहिये।। कोहली और कोहण्डी रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-१२४ में की गई है। ।। २-७३।।
पक्ष्म-श्म-ष्म-स्म-हमां म्हः ।। २-७४।। पक्ष्म शब्द संबन्धिनः संयुक्तस्य श्मष्मस्मयां च मकाराक्रान्तो हकार आदेशो भवति।। पक्ष्मन्। पम्हाइं। पम्हल-लोअणा।। श्म। कुश्मानः। कुम्हाणो।। कश्मीराः। कम्हारा।। ष्म। ग्रीष्मःगिम्हो। ऊष्मा। उम्हा। स्म। अस्मादृशः। अम्हारिसो।। विस्मयः। विम्हओ।। ह्म ब्रह्मा-बम्हा।। सुझाः। सुम्हा।। वम्हणो। बह्मचे।। क्वचित् म्भोपि दृश्यते। बम्भणो। बम्भचेरं। सिम्भो। क्वचिन्न भवति। रश्मिः। रस्सी। स्मरः। सरो॥ - अर्थ:- संस्कृत शब्द 'पक्ष्म' में स्थित संयुक्त व्यञ्जन 'क्ष्म' के स्थान पर हलन्त 'म्' सहित 'ह' का अर्थात् 'म्ह' का
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