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________________ 244 : प्राकृत व्याकरण प्राप्ति; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिग में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति होकर लोप; और ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस्' प्रत्यय के कारण से अन्तिम हस्व स्वर 'अ' को दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'कम्भारा' सिद्ध हो जाता है। कम्हारा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०० में की गई है। ।।२-६०।। न्मो मः ।। २-६१॥ न्मस्य मो भवति ।। अधोलोपापवादः ।। जम्मो । वम्महो । मम्मणं ।। अर्थः- जिन संस्कृत शब्दों में संयुक्त व्यञ्जन 'न्म' होता है; तो ऐसे संस्कृत शब्दों के प्राकृत रूपान्तर में उस संयुक्त व्यञ्जन 'न्म' के स्थान पर 'म' की प्राप्ति होती है। सूत्र संख्या २-७८ में बतलाया गया है कि अधो रूप में स्थित अर्थात् वर्ण में परवर्ती रूप से संलग्न हलन्त 'न्' का लोप होता है। जैसे-लग्नः लग्गो। इस उदाहरण में 'ग' वर्ण में परवर्ती रूप से संलग्न हलन्त 'न्' का लोप हुआ है। जबकि इस सूत्र संख्या २-६१ में बतलाते हैं कि यदि हलन्त 'न्' परवर्ती नहीं होकर पूर्ववर्ती होता हुआ 'म' के साथ में संलग्न हो; तो ऐसे पूर्ववर्ती हलन्त 'न्' का भी (केवल 'म' वर्ण के साथ में होने पर ही) लोप हो जाया करता है। तदनुसार इस सूत्र संख्या २-६१ को आगे आने वाले सूत्र संख्या २-७८ का अपवाद रूप सूत्र माना जाये। जैसा कि ग्रंथकार 'अधोलोपापवादः' शब्द द्वारा कहते हैं। उदाहरण इस प्रकार हैं:- जन्मन्=जम्मो।। मन्मथः=वम्महो और मन्मनम् मम्मण।। इत्यादि।। 'जम्मो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११ में की गई है। 'वम्महो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२४२ में की गई है। 'मन्मनम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मम्मणं' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-६१ से संयुक्त व्यञ्जन 'न्म' के स्थान पर 'म' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'म' को द्वित्व ‘म्म' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' को अनुस्वार की प्राप्ति होकर 'मम्मणं' रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २-६१।। ग्मो वा ।। २-६२॥ ग्मस्य मो वा भवति ।। युग्मम् । जुम्म जुग्गं । तिग्मम् । तिम्मं तिग्ग। अर्थः- संस्कृत शब्द में यदि 'ग्म' रहा हुआ हो तो उसके प्राकृत रूपान्तर में संयुक्त व्यञ्जन 'ग्म' के स्थान पर विकल्प से 'म' की प्राप्ति होती है। जैसे-युग्गम्=जुम्मं अथवा जुग्गं और तिग्मम् तिम्मं अथवा तिग्ग।। इत्यादि।। 'युग्मम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'जुम्म' और 'जुग्ग' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२४५ से 'य' का 'ज'; २-६२ से संयुक्त व्यञ्जन 'ग्म' के स्थान पर विकल्प से 'म' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'म' को द्वित्व 'म्म' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' को अनुस्वार होकर प्रथम रूप 'जुम्मं सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या २-२४५ से 'य' का 'ज'; २-७८ से 'म्' का लोप; २-८९ से शेष 'ग' को द्वित्व 'ग्ग' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप 'जुग्गं भी सिद्ध हो जाता है। "तिग्मम्' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'तिम्म' और 'तिग्ग' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-६२ से संयुक्त व्यञ्जन 'ग्म' के स्थान पर विकल्प से 'म' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'म' को द्वित्व 'म्म' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप तिम्मं सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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