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________________ 224 : प्राकृत व्याकरण स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'झाणं' रूप सिद्ध हो जाता है। उवज्झाओ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१७३ में की गई है। "स्वाध्यायः' संस्कृत रूप है! इसका प्राकृत रूप 'सज्झाओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १–१७७ से अथवा २-७९ से 'व' का लोप; १-८४ से प्रथम दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'ध्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'झ' को द्वित्व 'झ्झ की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'झ्' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'य' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'सज्झाओ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'साध्यम' संस्कृत विशेषण स्प है। इसका प्राकृत रूप 'सज्झं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से प्रथम दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'ध्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति २-८९ से प्राप्त ‘झ्' को द्वित्व 'झ्झ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व ‘झ्' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'सज्झं रूप सिद्ध हो जाता है। 'विंध्यः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'विझो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'ध्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; १-३० से अनुस्वार को 'झ' वर्ण आगे होने से 'ज्' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'विझो' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'सह्यः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'सज्झो' होता है; इसमें सूत्र संख्या २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'झ' को द्वित्व 'झ्झ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'झ' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'सज्झो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'मह्यम्' संस्कृत सर्वनाम अस्मद् का चतुर्थ्यन्त रूप है। इसका प्राकृत रूप मज्झं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह्य के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'झ' को द्वित्व 'झ्झ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'झ्' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति और १-२३ से अन्त्य हलन्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'मज्झं रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'गुह्यम्' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गुज्झं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'झ्' को द्वित्व 'झ्झ की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'झ्' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'गुज्झं रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'नह्यति' संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप ‘णज्झइ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' का 'ण'; २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन ‘ह्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'झ' को द्वित्व 'झ्झ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'झ्' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'णज्झइ' रूप सिद्ध हो जाता है।।२-२६।। ध्वजे वा ॥ २-२७।। ध्वज शब्दे संयुक्तस्य झो वा भवति ।। झओ धओ ॥ अर्थः- 'ध्वज' शब्द में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'ध्व' के स्थान पर विकल्प से 'झ' होता है। जैसे:- ध्वजः-झओ अथवा धओ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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