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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 217
प्रश्नः- मूल-सूत्रकार ने सूत्र में कौ' ऐसा क्यों लिखा है ?
उत्तरः- चूकि 'क्षमा' शब्द के संस्कृत भाषा में दो अर्थ होते हैं; एक तो पृथिवी अर्थ होता है और दूसरा शान्ति अर्थात् सहनशीलता। अतः जिस समय में 'क्षमा' शब्द का अर्थ 'पृथिवी' होता है; तो उस समय में प्राकृत-रूपान्तर में 'क्षमा में स्थित 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति होगी; और जब 'क्षमा' शब्द का अर्थ सहनशीलता याने क्षान्ति होता है; तो उस समय में 'क्षमा' शब्द में रहे हुए 'क्ष' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति होगी। इस तात्पर्य-विशेष को बतलाने के लिए ही सूत्रकार ने मूल-सूत्र में 'कौ' शब्द को जोड़ा है-अथवा लिखा है। जैसे:- क्षमा=(क्षान्तिः)-खमा अर्थात् सहनशीलता।।
'क्षमा' (पृथिवी) संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'छमा' होता है इसमें सूत्र संख्या २-१८ से संयुक्त व्यञ्जन 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति होकर 'छमा' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'क्ष्मा' (पृथिवी) संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'छमा' होता है इसमें सूत्र संख्या २-१८ से हलन्त और संयुक्त व्यञ्जन 'क्ष्' के स्थान पर 'छ्' की प्राप्ति; २-१०१ से प्राप्त हलन्त 'छ्' में 'अ स्वर की प्राप्ति होकर 'छमा रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'क्षमा'-(क्षान्ति) संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खमा' होता है इसमें सूत्र संख्या २-३ से संयुक्त व्यञ्जन 'क्ष' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति होकर 'खमा' रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २-१८।।
ऋक्षे वा ॥ २-१९।। ऋक्ष शब्दे संयुक्तस्य छो वा भवति ।। रिच्छं । रिक्खं । रिच्छो । रिक्खो । कथं छूढं क्षिप्तं । वृक्ष-क्षिप्तयो रूक्ख-छूढी (२-१२७) इति भविष्यति।। __अर्थः- ऋक्ष शब्द में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'क्ष' का विकल्प से 'छ' होता है। जैसे:- ऋक्षम्=रिच्छं अथवा रिक्ख।। ऋक्षः-रिच्छो अथवा रिक्खो।।
प्रश्न:- 'क्षिप्तम्' विशेषण में रहे हुए स्वर सहित संयुक्त व्यञ्जन 'क्षि' के स्थान पर 'छू' कैसे हो जाता है ? एवं 'क्षिप्तम्' का 'ढ' कैसे बन जाता है ?
उत्तर:- सूत्र संख्या २-१२७ में कहा गया है कि 'वृक्ष के स्थान पर 'रूख' आदेश होता है और 'क्षिप्त' के स्थान पर 'छूढ' आदेश होता है। ऐसा उक्त सूत्र में आगे कहा जायेगा।।
'ऋक्षम् -संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'रिच्छ' और 'रिक्ख' होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-१४० से 'ऋ' की 'रि' प्रथम रूप में २-१९ से 'क्ष' के स्थान पर विकल्प से 'छ': २-८९ से प्राप्त 'छ' को द्वित्व'छछ' की प्राप्ति: २-९० से प्राप्त पूर्व'छ्' को 'च' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप 'रिच्छे सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त 'ख' को 'क्' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप 'रिक्खं सिद्ध हो जाता है।
रिच्छो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१४० में की गई है।
'ऋक्षः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'रिक्खो ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१४० से 'ऋ' की 'रि'; २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क्की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'रिक्खो' रूप सिद्ध हो जाता है।
"क्षिप्तम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'छूट होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१२७ से संपूर्ण 'क्षिप्त' के स्थान पर 'छूढ' का आदेश; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'छूढं रूप सिद्ध हो जाता है।
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