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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 207 की प्राप्ति; २-४ से 'ष्क' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति, और २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' का 'क्' होकर 'पोक्खरिणी' रूप सिद्ध हो जाता है। __ "निष्कम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'निक्खं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-४ से 'ष्क' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'ख्ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' का 'क्'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'निक्खं रूप सिद्ध हो जाता है।
स्कन्धः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खन्धो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-४ से 'स्क' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खन्धो' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'स्कन्धावारः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खन्धावारो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-४ से 'स्क' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खन्धावारो' रूप सिद्ध हो जाता है। _ 'अवस्कन्दः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'अवक्खन्दो' होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-४ से 'स्क' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व'ख्ख' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' का 'क्' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'अवक्खन्दो' रूप सिद्ध हो जाता है। __दष्करम' संस्कत विशेषण रूप है। इसका प्राकत रूप 'दुक्कर होता है। इसमें सत्र संख्या २-७७ से 'ष' का लोप: २-८९ से शेष 'क' को द्वित्व 'कक' की प्राप्ति: ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पल्लिग में प्राप्त 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'दुक्कर' रूप सिद्ध हो जाता है।
"निष्कम्पम्' संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'निक्कम्प' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से 'ष' का लोप; २-८९ से शेष 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'निक्कम्प' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'निष्क्रयः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'निक्कआ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से 'ष' का लोप; २-७९ से शेष 'र' का लोप; २-८९ से शेष 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति; १-१७७ से 'य' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'निक्कआ रूप सिद्ध हो जाता है।
'नमोक्कारो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-६२ में की गई है। 'सक्कयं' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२८ में की गई है। सक्कारो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२८ में की गई है। 'तस्करः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'तक्करो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से 'स्' का लोप; २-८९ से शेष 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति; ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'तक्करों रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २-४ ।।
शुष्क-स्कन्दे वा ।। २-५ ।। अनयोः ष्क स्क-योः खो वा भवति।। सुक्खं सुक्कं । खन्दो कन्दो।। __ अर्थः- 'शुष्क' और 'स्कन्द' में रहे हुए 'क' के स्थान पर एवं स्क' के स्थान पर विकल्प से 'ख' होता है। जैसे:शुष्कम् सुक्खं अथवा सुक्कं और स्कन्दः खन्दो अथवा कन्दो।।
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