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206 : प्राकृत व्याकरण
क्षः खः क्वचितु छ-झौ ।। २-३ ।। क्षस्य खो भवति। खओ । लक्खणं ।। क्वचितु छझावपि खीणं । छीणं । झीणं। झिज्जइ ।।
अर्थः-'क्ष' वर्ण का 'ख' होता है। जैसे:-क्षयः-खओ।। लक्षणम् लक्खणं।। किसी किसी शब्द में 'क्ष' का 'छ' अथवा 'झ' भी हो जाता है। जैसेः- क्षीणम् खीणं अथवा छीणं अथवा झीणं।। क्षीयते झिज्जइ।। ___ 'क्षयः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खआ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-३ से 'क्ष' का 'ख'; १-१७७ से 'य' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारांत पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खओ' रूप की सिद्धि हो जाती है।
'लक्षणम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'लक्खण' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-३ से 'क्ष' का 'ख'; २-८९ से प्राप्त 'ख' का द्वित्व 'ख्ख; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' का 'क्'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'लक्खणं' रूप सिद्ध हो जाता है।
'क्षीणम्' संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप 'खीणं', 'छीणं' और 'झीण' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-३ से'क्ष' के स्थान पर विकल्प से 'ख' की अथवा 'छ' की अथवा 'झ' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'खीणं', 'छीण' और 'झीणं' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
'क्षीयते' संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप झिज्जइ होता है। इसमें सूत्र संख्या २-३ से 'क्ष' का 'झ'; ३-१६० से संस्कृत भाव कर्मणि प्रयोग में प्राप्त 'ईय' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में 'इज्ज' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'झिज्जइ' रूप सिद्ध हो जाता है। ।।२-३।।
क-स्कयो म्नि ।। २-४ ।। अनयोर्नाम्नि संज्ञायां खो भवति ।। ष्क । पोक्खरं । पोखरिणी । निक्खं ।। स्क। खन्धो । खन्धावारो । अवक्खन्दो । नाम्नीति किम् । दुक्करं । निक्कम्पं । निक्कओ। नमोक्कारो । सक्कयं । सक्कारो । तक्करो ।।
अर्थः- यदि किसी नामवाचक अर्थात् संज्ञा वाचक संस्कृत शब्दों में 'ष्क' अथवा 'स्क' रहा हुआ हो तो उस 'क' अथवा 'स्क' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में 'ख' होता है। जैसे 'क' के उदाहरण इस प्रकार है :- पुष्कर-पोक्खरं; पुष्करिणी-पोक्खरिणी; निष्कम् निक्खं इत्यादि।। 'स्क' संबंधी उदाहरण इस प्रकार है:- स्कन्ध खन्धो; स्कन्धावारः खन्धावारो।। अवस्कन्दः अवक्खन्दो।। इत्यादि।।
प्रश्नः- नामवाचक अथवा संज्ञा वाचक हो, तभी उसमें स्थित 'ष्क' अथवा 'स्क' का 'ख' होता है ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तरः- यदि 'ष्क' अथवा 'स्क' वाला शब्द नामवाचक एवं संज्ञा वाचक नहीं होकर विशेषण आदि रूप वाला होगा तो उस शब्द में स्थित 'क' के अथवा 'स्क' के स्थान पर 'क' होता है। अर्थात् 'ख' नहीं होगा। जैसे दुष्करम्-दुक्कर; निष्कम्पम् निक्कम्प; निष्क्रयः-निक्कओ; नमस्कारः नमोक्कारो; संस्कृतम्=सक्कय; सत्कारः-सक्कारो और तस्करः तक्करा।।
पोक्खरं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११६ में की गई है। 'पुष्करिणी' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'पोक्खरिणी' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११६ से 'उ' को 'ओ'
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