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208 : प्राकृत व्याकरण
'शुष्कम् संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप 'सुक्खं' और 'सुक्क होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; २-५ से 'क' के स्थान पर विकल्प से 'ख'; २-८९ से प्राप्त 'ख' का द्वित्व 'ख्ख'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' का 'क्'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप 'सुक्खं सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; २-७७ से'' का लोप; २-८९ से शेष 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप 'सुक्क' भी सिद्ध हो जाता है। ___ 'स्कन्दः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'खन्दो' और 'कन्दो' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-५ से 'स्क' के स्थान पर विकल्प से 'ख' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'खन्दा' सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप 'कन्दो' में सूत्र संख्या २-७७ से 'स्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप 'कन्दो' भी सिद्ध हो जाता है। ।। २-५।।
क्ष्वेटकादौ ।। २-६ ।। क्ष्वेटकादिषु संयुक्तस्य खो भवति ।। खेडओ ॥ श्वेटक-शब्दो विष-पर्यायः । क्ष्वोटकः। खोडओ ।। स्फोटकः। खोडओ । स्फेटकः । खेडओ ॥ स्फेटिकः । खेडिओ ।।
अर्थः- विष-अर्थ वाचक श्वेटक शब्द में एवं क्ष्वोटक, स्फोटक, स्फेटक और स्फेटिक शब्दों में आदि स्थान पर रहे हुए संयुक्त अक्षरों का अर्थात् 'क्ष्व'; तथा 'स्फ' का 'ख' होता है। जैसे:- श्वेटकः-खेडओ; क्ष्वोटकः-खोडओ; स्फोटकः खोडओ; स्फेटकः खेडओ और स्फटिकः खेडिओ।।
'क्ष्वेटकः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'खेडओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-६ से 'क्ष्व' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति: १-१९५ से 'ट' का 'ड':१-१७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खेडओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'क्ष्वोटकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खोडओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-६ से 'क्ष्व् के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; १-१९५ से 'ट' का 'ड'; १-१७७ से 'क्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खोडओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
'स्फोटकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खोडओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-६ से 'स्फ्' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; १-१९५ से 'ट' का 'ड'; १-१७७ से 'क्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खोडआ' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'स्फेटकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खेडओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-६ से 'स्फ्' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति: १-१९५ से 'ट' का 'ड':१-१७७ से'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'खेडआ' रूप सिद्ध हो जाता है। __ "स्फेटिकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'खेडिओ' होता है। इसमें 'स्फेटकः' के समान ही साधनिका-सूत्रों की प्राप्ति होकर 'खेडिओ' रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २-६ ॥
स्थाणावहरे ।। २-७ ।। स्थाणो संयुक्तस्य खो भवति हरश्चेद् वाच्यो न भवति ।। खाणू ।। अहर इति किम्। थाणुओ रेहा ॥
अर्थः- स्थाणु शब्द के अनेक अर्थ होते हैं:- ठूठ, वृक्ष,, खम्भा, पर्वत और महादेव आदि जिस समय में स्थाणु शब्द का तात्पर्य 'महादेव' नहीं होकर अन्य अर्थ वाचक हो; तो उस समय में प्राकृत रूपान्तर में आदि संयुक्त अक्षर 'स्थ्' का 'ख' होता है।
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