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________________ 198 : प्राकृत व्याकरण तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर दोनों रूपों में क्रम से 'दहरहो' और 'दसरहो' रूपों की सिद्धि हो जाती है। 'एआरह' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२१९ में की गई है। 'बारह' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२१९ में की गई है। 'तेरह' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१६५ में की गई है। 'पाषाणः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'पाहाणो' और 'पासाणो' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२६२ से विकल्प से 'श' का 'ह' और द्वितीय रूप में १-२६० से 'श' का 'स' तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति दोनों रूपों में होकर क्रम से 'पाहाणो' एवं 'पासाणो' रूपों की सिद्धि हो जाती है। ।।१-२६२।। दिवसे सः ।।१-२६३।। दिवसे सस्य हो वा भवति ।। दिवहो । दिवसो ।। अर्थः- संस्कृत शब्द 'दिवस' में रहे हुए 'स' वर्ण के स्थान पर विकल्प से 'ह' होता है। जैसे:- दिवसः दिवहो अथवा दिवसो।। "दिवसः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'दिवहो' और 'दिवसो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२६३ से 'स' का विकल्प से 'ह' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति दोनों रूपों में होकर क्रम से 'दिवहो' और 'दिवसो' रूपों की सिद्धि हो जाती है। ।।१-२६३।। हो घोनुस्वारात् ॥१-२६४॥ अनुस्वारात् परस्य हस्य घो वा भवति ।। सिंघो । सीहो ।। संघारो । संहारो । क्वचिद-ननुस्वारादपि । दाहः । दाघो।। अर्थः- यदि किसी शब्द में अनुस्वार के पश्चात् 'ह' रहा हुआ हो तो उस 'ह' का विकल्प से 'घ' होता है। जैसे:सिंह: सिंघा अथवा सीहा।। संहा:-संघारा अथवा संहारा।। इत्यादि।। किसी किसी शब्द में ऐसा भी देखा जाता है कि 'ह' वर्ण के पूर्व में अनुस्वार नहीं है; तो भी उस 'ह' वर्ण का 'घ' हो जाता है। जैसे:- दाहः-दाघो।। इत्यादि।। सिंघो और सीहा रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-२९ में की गई है। __ 'संहारः' संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप 'संघारा' और 'संहारा' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२६४ से विकल्प से 'ह' का 'घ' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति दोनों रूपों में होकर क्रम से 'संघारा' और 'संहारो' रूपों की सिद्धि हो जाती है। 'दाहः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'दाघो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६४ की वृत्ति से 'ह' का 'घ' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'दाघो' रूप की सिद्धि हो जाती है। ।।१-२६०।। षट्-शमी-शाव-सुधा-सप्तपर्णेष्वादेश्छः ॥१-२६५।। एषु आदेर्वर्णस्य छो भवति ।। छट्ठो । छट्ठी । छप्पओ । छम्मुहो । छमी । छावो। छुहा । छत्तिवण्णो॥ __ अर्थः- षट्, शमी, शाव, सुधा और सप्तवर्ण आदि शब्दों में रहे हुए आदि अक्षर का अर्थात् सर्वप्रथम अक्षर का 'छ' होता है। जैसे:- षष्ठः छट्ठो। षष्ठी-छट्ठी।। षट्पदः छप्पआ। षण्मुखः छम्मुहा। शमी-छमी। शावः छावो। सुधा-छुहा और सप्तपर्णः छत्तिवण्णा इत्यादि।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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